Gujarat election 2017: गुजरात में मुस्लिम वोट बैंक को लेकर कांग्रेस और BJP ने बदली रणनीति
अमिताभ श्रीवास्तव
नई दिल्ली। गुजरात में 10 फीसदी मुसलमान हैं लेकिन वो राजनीतिक रूप से ताकतवर नहीं है। आखिर ऐसा क्यों हैं कि 1980 में यानि 27 साल पहले 12 मुस्लिम विधायक थे और आज केवल दो मुस्लिम विधायक हैं। यही नहीं गुजरात से लोकसभा में एक भी मुस्लिम सांसद नहीं। 1980 के चुनाव में 17 मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में थे जिनमें से 12 विधायक चुने गए। 1990 में 11 मुसलमानों को टिकट मिले और तीन विधायक चुने गए। 1998 में बीजेपी ने एक मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट दिया लेकिन उसे जीत हासिल नहीं हो सकी। इसके बाद बीजेपी ने मुसलमानों को टिकट देने से तौबा कर ली। 2012 में पांच उम्मीदवार मैदान में थे जिनमें से दो ही कामयाब हो पाए।
अहमद पटेल इकलौते मुस्लिम राज्यसभा सांसद
मौजूदा हालात ये हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल इकलौते मुस्लिम राज्यसभा सांसद हैं जो गुजरात से प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके अलावा सांसद स्तर पर मुसलमानों का राज्य से कोई प्रतिनिधित्व नहीं। इसमें कोई दो राय नहीं कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने ही ज्यादा अहमियत नहीं दी। ऐसा माना जाता रहा है कि कांग्रेस मुस्लिम हितैषी है और बीजेपी हिंदुओं की। बस यहीं से दोनों दल सीधे सीधे इस वोट बैंक से बचने की कोशिश में रहे हैं। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक बीजेपी की हमेशा ये कोशिश रही कि कांग्रेस मुसलमानों के जितने करीब जाएगी, उसका उतना ही फायदा होगा। इसकी वजह अहमद पटेल ही रहे हैं। गुजरात के चुनाव की कमान उनके हाथ में रही है और पिछले चुनाव तक वो सीधे तौर पर कांग्रेस अभियान के अगुआ रहे हैं जिसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा है और बीजेपी हिंदू वोट पाने में कामयाब रही है लेकिन इस बार कांग्रेस अपनी पुरानी छवि को बदलने की भरपूर कोशिश कर रही है।
मुस्लिम वोटर जीत और हार का बड़ा फैक्टर
उसे पता है कि मुस्लिम वोट बैंक उनका ही है इसीलिए मंदिरों में मत्था टेककर राहुल गांधी हिंदू वोट बैंक को अपनी ओर करने में जुटे हैं। कांग्रेस ने अपनी रणनीति बदलते हुए अहमद पटेल को पर्दे के पीछे रखा है। कमान उन्हीं के पास है लेकिन लीडर के रूप में नहीं, केवल प्रबंधन के रूप में। राज्य में करीब 25 विधानसभा सीट ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार का बड़ा फैक्टर है। इसके बावजूद वोट बैंक के ध्रुवीकरण के कारण मुस्लिम प्रत्याशी विधानसभा में दाखिल नहीं हो पाए। पिछले विधानसभा चुनाव में इनमें से 17 सीट पर बीजेपी के प्रत्याशी जीते। इस बार हालात बदले हैं। एक तरफ कांग्रेस मुस्लिम वोट बैंक को पर्दे के पीछे ही साधने में लगी है और सीधे तौर पर हिंदू वोट बैंक को आकर्षित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है जबकि बीजेपी इस बार अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए मुस्लिम प्रत्य़ाशी उतार सकती है।
वोट बैंक को लेकर कांग्रेस आश्वस्त है तो बीजेपी आशान्वित
बीजेपी का अल्पसंख्यक मोर्चा छह मुस्लिम सीटों से टिकट मांग रहा है। बीजेपी ने गुजरात की कई हाउसिंग सोसायटी के नाम मुसलमानों के नाम पर रखी हैं। तीन तलाक के मुद्दे से बीजेपी मुस्लिम महिलाओं में रुझान बनाने में कामयाब रही है। जो मुस्लिम नेता बीजेपी से जुड़े हैं उन्हें ये जिम्मा सौंपा गया है कि वे मुस्लिम इलाकों में गुजरात और केंद्र सरकार की नीतियों और सुविधाओं की जानकारी पहुंचाएं जिससे बीजेपी के पक्ष में माहौल बन सके। कुल मिलाकर मुस्लिम वोट बैंक को लेकर चित्र विचित्र है। कांग्रेस और बीजेपी दोनों के ही रुख में बदलाव है। इस वोट बैंक को लेकर कांग्रेस आश्वस्त है तो बीजेपी आशान्वित है।
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