Uniform Civil Code बनाने वाली याचिका का केंद्र ने किया विरोध, सुब्रमण्यम स्वामी ने उठाए सवाल
नई दिल्ली, 10 जनवरी: केंद्र सरकार ने समान नागरिक संहिता तैयार करने वाली याचिका का दिल्ली हाई कोर्ट में विरोध किया है। केंद ने कहा है कि विधि आयोग इस मामले को देख रहा है और उसकी रिपोर्ट के बाद ही सरकार इस मामले को देखेगी। इस संबंध में भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर जनहित याचिका का जवाब देते हुए कानून और न्याय मंत्रालय की ओर से अदालत में कहा गया है कि कानून बनाने और लागू करने की संप्रभु शक्ति संसद के पास है और कोई भी बाहरी शक्ति या सत्ता किसी खास विधान लागू करने को लेकर निर्देश जारी नहीं कर सकता।
समान
नागरिक
संहिता
पर
याचिका
का
केंद्र
ने
किया
विरोध
हालांकि
समान
नागरिक
संहिता
लागू
करने
को
लेकर
केंद्र
ने
यह
जरूर
कहा
है
कि
'विभिन्न
धार्मिक
संप्रदायों
के
नागरिक
विभिन्न
संपत्ति
और
वैवाहिक
कानूनों
का
पालन
करते
हैं,
जो
कि
देश
की
एकता
की
अवज्ञा
है।'
लेकिन,
इस
मामले
में
विधायिका
को
किसी
खास
विधान
बनाने
के
लिए
निर्देश
नहीं
दिया
जा
सकता।
मंत्रालय
की
ओर
से
जवाब
में
कहा
गया
है
कि,
'इसपर
फैसला
करना
जनता
के
चुने
हुए
प्रतिनिधियों
के
लिए
नीतिगत
मामला
है
और
अदालत
की
ओर
से
इस
संबंध
में
कोई
निर्देश
नहीं
जारी
किया
जा
सकता।
यह
विधायिका
पर
निर्भर
है
कि
वह
किसी
विशेष
कानून
को
लागू
करे
या
न
करे।'
संविधान
के
आर्टिकल
44
में
है
व्यवस्था
दरअसल,
बीजेपी
नेता
अश्विनी
उपाध्याय
ने
अपनी
याचिका
के
जरिए
हाई
कोर्ट
से
केंद्र
सरकार
को
निर्देश
देने
की
मांग
की
थी
कि
वह
समान
नागरिक
संहिता
बनाने
के
लिए
या
तो
न्यायिक
आयोग
गठित
करे
या
फिर
उच्च
स्तरीय
विशेषज्ञ
समिति
बनाए
जो
कि
यूनिफॉर्म
सिविल
कोड
के
लिए
तीन
महीने
के
अंदर
ड्राफ्ट
तैयार
करे।
उनकी
याचिका
में
दलील
दी
गई
है
कि
संविधान
के
नीति
निदेशक
तत्वों
में
आर्टिकल
44
के
तहत
सरकार
को
यूनिफॉर्म
सिविल
कोड
के
लिए
नीति
बनाने
को
कहा
गया
है।
सरकार
ने
अदालत
की
दखल
का
विरोध
किया
है
हालांकि,
अपने
जवाब
में
केंद्र
ने
माना
है
कि
संविधान
में
आर्टिकल
44
दिए
जाने
के
पीछे
देश
के
'धर्मनिरपेक्ष,
लोकतांत्रिक,
गणराज्य'
के
विचार
को
सशक्त
करना
है,
जो
कि
संविधान
की
प्रस्तावना
में
मौजूद
है।
याचिकाकर्ता
के
एफिडेविट
के
मुताबिक
संविधान
में
यह
प्रावधान
इसलिए
किया
गया
है
ताकि
अलग-अलग
पर्सन
लॉ
की
जगह
एक
समान
कानूनी
प्लेटफॉर्म
तैयार
किया
जा
सके।
क्योंकि,
आर्टिकल
44
धर्म
को
सामाजिक
संबंधों
और
पर्सनल
लॉ
से
अलग
करता
है।
इसी
आधार
पर
याचिका
के
जरिए
विधि
आयोग
से
इसपर
अध्ययन
करके
सुझाव
देने
की
मांग
की
गई
थी।
हाल के समय में भाजपा के विचारों से अलग राय रखने वाले राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए ट्विटर पर लिखा है- तो क्या यदि सरकार संविधान के निर्देशों के तहत कदम उठाने में नाकाम रहती है या इसमें बेवजह की देरी करती है तो हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का उसमें कोई भी अधिकार नहीं है ?