महंगा हो रहा है पेट्रोल डीज़ल, क्या रूस के तेल से कम हो सकते हैं दाम?
बीते नौ दिनों में पेट्रोल और डीज़ल की कीमत में प्रति लीटर 5.60 रुपये की बढ़ोतरी हुई है. क्या आगे भी कीमतें बढ़ती रहेंगी या बढ़ते दाम पर किसी तरह काबू किया जा सकता है, क्या कहते हैं एक्सपर्ट, पढ़िए
बीते कुछ दिनों से देश में पेट्रोल और डीज़ल की क़ीमतें लगातार बढ़ रही हैं. दिल्ली में पेट्रोल की क़ीमत बुधवार को 101.01 रुपये प्रति लीटर हो गई और डीज़ल की क़ीमत 92.27 रुपये हो गई.
नौ दिनों में कुल 5 रुपए 60 पैसे प्रति लीटर की बढ़ोतरी हुई. तेल के बढ़ते हुए दामों पर बीबीसी संवाददाता राघवेंद्र राव ने ऊर्जा विशेषज्ञ और बीजेपी नेता नरेंद्र तनेजा से बात की.
पेट्रोल और डीज़ल के दाम करीब चार महीने तक स्थिर थे.
क्यों बढ़ रही है तेल की क़ीमतें
ऊर्जा विशेषज्ञ नरेंद्र तनेजा ने बताया कि तेल के बढ़ते हुए दाम को सिर्फ़ 'क्यूम्यलेटिव प्रभाव' नहीं कहा जा सकता है.
उन्होंने कहा, "हमने चुनाव के दौरान पिछले कुछ महीनों में देखा था कि कीमतें नहीं बढ़ी थी. इस बात को नकारा नहीं जा सकता. लेकिन इसके अलावा भी एक कारण है."
उन्होंने कहा कि चुनाव के दौरान देश में पेट्रोल पंप पर दाम नहीं बढ़े लेकिन ऐसा नहीं है कि दुनिया में तेल की क़ीमतें कहीं नहीं बढ़ी.
नरेंद्र तनेजा ने कहा कि तेल की कीमत बढ़ने का दूसरा कारण रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध है. उन्होंने कहा, "यूक्रेन की वजह से विश्व के ऊर्जा बाज़ार में उथल-पुथल हो चुकी है. काफ़ी सवाल भी सामने आ रहे हैं जैसे कि तेल की आपूर्ति का क्या होगा, तेल जितना चाहिए उतना मिल भी पाएगा या नहीं."
उन्होंने बताया कि जब भी तेल बाज़ार में भू-राजनीति से जुड़ी किसी भी तरह की बड़ी हलचल या घटना होती है तब तेल की कीमतें ऊपर जाने लगती है.
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क्या बढ़ती रहेगी तेल की क़ीमत?
नरेंद्र तनेजा ने बताया कि तेल की क़ीमत को एक झटके में भी बढ़ाया जा सकता था लेकिन अभी क़ीमतें धीरे-धीरे बढ़ रही है.
उन्होंने कहा, "खास तौर पर यूक्रेन को लेकर, तेल का अर्थशास्त्र यही कहता है कि इन कंपनियां को लगभग 15 या 16 रुपए प्रति लीटर का घाटा हुआ है, चाहे वो पेट्रोल हो या डीज़ल."
नरेंद्र तनेजा मानते हैं कि तेल कंपनियों के अनुमानित घाटे के हिसाब से तेल की कीमतें ऊपर जाती रहेंगी.
उन्होंने ये भी कहा कि अगर केंद्र या राज्य सरकार बीच में ना आए और टैक्स को कम ना करें तो धीरे-धीरे ये क़ीमतें ऊपर की दिशा में ही जाएगी.
क्या कर सकती है सरकार?
भारत सरकार के पास मौजूद विकल्पों के बारे में नरेंद्र तनेजा कहते हैं, "सरकार अपने टैक्स कम करें, केंद्र सरकार एक्साइज़ को कम करें और राज्य सरकार वैट यानी मूल्य वर्धित कर को कम करें तब कीमत कम हो सकती हैं लेकिन ऐसा होता अभी नज़र नहीं आ रहा है."
नरेंद्र तनेजा कहते हैं कि सबसे पहले 'पेट्रोलियम सेक्टर में रिफॉर्म और आधुनिकीरण की ज़रूरत है.'
वो ये भी कहते हैं कि राज्य और केंद्र सरकारों को पेट्रोल और डीज़ल से आय पर निर्भरता कम करनी होगी.
उन्होंने कहा, "ग़रीब राज्य सरकारें जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, उड़ीसा, उत्तर पूर्व की अर्थव्यवस्था अगर उठाकर देखें तो पाएंगे कि तेल के टैक्स पर इनकी निर्भरता इतनी है कि अगर तेल का टैक्स कम कर दें, अगर 10 या 15 रुपए भी कम कर दे तो इनकी अर्थव्यवस्था लड़खड़ा जाएगी."
तनेजा ये भी कहा कि पेट्रोल और डीज़ल के क़ीमत के मामले में पारदर्शिता की भी ज़रूरत है. उन्होंने कहा, "जब पेट्रोल पंप पर कोई ग्राहक आए तो वहां लिखा होना चाहिए कि तेल के दाम कैसे तय किए गए है जिससे आप पर भरोसा बना रहे."
उन्होंने कहा, "अगर सरकार चाहती है कि ग्राहक सरकार के बजाय बाज़ार को कोसे तो ये मसला कंपनी और ग्राहक के बीच होना चाहिए."
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भारत की तेल आयात पर निर्भरता
नरेंद्र तनेजा बताते हैं कि यूक्रेन में स्थिरता आने के बाद भी तेल की क़ीमत समस्या का कारण बनी रह सकती हैं.
उन्होंने कहा, "एक बहुत बड़ा कारण ये है कि पिछले चार सालों में तेल के सेक्टर में तेल के खोजने, खनन और उत्पादन के नए भंडारों में जितना निवेश होना चाहिए, उतना निवेश नहीं हुआ."
वो कहते हैं, "सौर ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा के आने के बाद पेट्रोल का इस्तेमाल बंद करने को लेकर काफी कुछ कहा गया."
उन्होंने कहा, "अगले 15 सालों तक तेल का भी कोई विकल्प नहीं है. चाहे कोई कितनी भी कोशिश कर ले, आने वाले समय में तेल महंगा होगा ही."
नरेंद्र तनेजा ने देश के एनर्जी इल्लिटरेसी यानी ऊर्जा से जुड़ी बातों की समझ ना रखने की भी बात की. उन्होंने कहा, "जिस चीज़ पर देश की अर्थव्यवस्था टिकी हुई है, वो आप 86 फीसदी विदेश से मंगाते है, इसका मतलब ये हुआ कि हम मोहताज हो गए हैं और मोहताज अर्थव्यवस्था में विकल्प ज़्यादा नहीं होते."
बढ़ती कीमत का आपकी जेब पर असर
तेल की बढ़ती क़ीमतों का असर आम आदमी के ऊपर और उनके घर के बजट पर भी होता है. कुछ लोगों को तेल की क़ीमतें बढ़ने पर यातायात में भी दिक्कत आती हैं.
दिल्ली के एक पेट्रोल पंप पर मौजूद मिताली ने बीबीसी को बताया, "घर चलाने में बहुत मुश्किल हो रही है, हम उतना कमा नहीं सकते जितना पेट्रोल पर खर्च हो रहा है."
उन्होंने बताया कि कभी-कभी जब उनके पास पैसे नहीं होते तो ऐसी भी स्थिति आ जाती है कि वो स्कूटर के बजाय पैदल चल कर ही जाती हैं.
उसी पेट्रोल पंप पर आकाश भी मौजूद थे. आकाश एक छात्र हैं. उन्होंने बीबीसी को बताया, "बजट पर असर तो पड़ता है लेकिन मजबूरी है तो तेल डलवाना ही पड़ेगा.
क्या रूस से तेल ले सकता है भारत?
देश की शीर्ष तेल कंपनी इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) ने रूस से हाल ही में 30 लाख बैरल कच्चे तेल की ख़रीद की थी.
रूस पर पश्चिम देशों के प्रतिबंध को लेकर नरेंद्र तनेजा कहते हैं कि भारत के लिए ये अच्छा मौका है कि वो रूस से तेल लेकर आए. उन्होंने बताया कि भारतीय कंपनियों ने ही वहां 16 बिलियन डॉलर का निवेश किया है.
उन्होंने कहा, "लेकिन अगर आप रूस के भूगोल को ध्यान से देखे तो वहां से तेल निकालने में थोड़ी परेशानी होती है. वहां से शिपिंग इतनी आसान नहीं है. यही कारण है कि हम वहां से बहुत तेल नहीं मंगाते, हम वहां से ज़्यादा से ज़्यादा 2 फ़ीसदी तेल मंगाते हैं और पिछले तीन महीने के अंदर हमने सिर्फ़ 1 फ़ीसदी तेल मंगवाया है."
उन्होंने बताया कि रूस से तेल मंगवाने में तीन सबसे बड़ी समस्याएं हैं.
1. तेल मंगवाने के लिए इस्तेमाल होने वाले समुद्री जहाज़ के जो टैंकर है वो ज़्यादातर पश्चिम देशों के हैं इसलिए अब आसानी से टैंकर नहीं मिलते. भारत में आने वाला 92 फ़ीसदी तेल विदेशी टैंकर लाता है.
2. जब एक टैंकर तेल लेकर आता है तो बिना बीमे के नहीं चल सकता और बीमा भी ज़्यादातर पश्चिम कंपनियां देती हैं.
3. फ़िलहाल रुपए और रूबल के बीच कारोबार की व्यवस्था बन नहीं पाई है.
नरेंद्र तनेजा बताते हैं कि भारत को रूस से तेल ख़रीदने की ज़रूरत नहीं है और तेल को दूसरी जगहों से लाया जा सकता है.
उन्होंने कहा, "हमें रूस में तेल के कुएँ ख़रीदने चाहिए. क्योंकि अभी दाम कम है और रूस को ख़रीदारों की ज़रूरत है, हमें भविष्य के बारे में सोचना चाहिए."
उन्होंने बताया कि इस तरीके से हम ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर भी बन पाएंगे.
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