बिजनौर: कोर्ट ने पुलिस के दावों की खोली पोल, CAA प्रदर्शन में पुलिस को गोली लगने के नहीं हैं सबूत, आरोपियों को दी जमानत
नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन कानून के दौरान उत्तर प्रदेश के बिजनौर में हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान दंगा भड़काने और हत्या की कोशिश करने के दो आरोपियों को सेशन कोर्ट ने जमानत दे दी है। कोर्ट ने पुलिस के उस दावे को सिरे से खारिज कर दिया जिसमे पुलिस की ओर से कहा गया था कि इन लोगों ने प्रदर्शन के दौरान गोली चलाई थी। कोर्ट ने पुलिस के दावे की धज्जियां उड़ाते हुए कहा कि इन लोगों ने कोई भी सबूत पेश नहीं किया है जिससे साबित हो कि आरोपी गोलीबारी में शामिल थे। कोर्ट ने कहा कि पुलिस पर गोली चलाने का जो आरोप लगाया है, लेकिन पुलिस ने ना तो वो हथियार जब्त किया और ना ही इस बात के सबूत दिए कि पुलिस को गोली लगी।
पुलिस के दावों की खुली पोल
अडिशनल सेशन जज संजीव पांडे ने अपने फैसले में इन अहम बातों का जिक्र किया है और पुलिस के दावों की पोल खोली। जज ने कहा कि अपराध की प्रकृति और परिस्थितियों को देखते हुए आरोपियो को जमानत दी जानी चाहिए। बता दें कि पिछले महीने हुए प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने 100 लोगों को गिरफ्तार किया था और कई एफआईआर दर्ज् की थी जिसमे कहा गया था कि नहतौर, नजीबाबाद, नगीना में ये लोग हिंसा में शामिल थे। पुलिस का कहना था कि 20 वर्षीय मोहम्मद सुलेमान की मौत कॉस्टेबल मोहित कुमार की गोली से हुई है। पुलिस ने दावा किया था कि मोहित कुमार ने आत्मरक्षा में यह गोली चलाई थी। जिसके बाद सुलेमान के परिवार ने 6 पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी।
पुलिस का आरोप
नजीबाबाद पुलिस स्टेशन में शफीक और इमरान के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी, जिसपर 24 जनवरी को कोर्ट ने सुनवाई करते हुए इन दोनों को जमानत दे दी थी। इन दोनों पर दंगे भड़काने और हत्या की कोशिश का आरोप था। एफआईआऱ में कहा गया था कि हमे जानकारी मिली थी कि 100-150 लोगों ने जलालाबाद में एनएच 74 को जाम कर दिया है और सीएए व एनआरसी के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। इन लोगों की अगुवाई शफीक और इमरान कर रहे थे। पुलिस ने लोगों को समझाने की कोशिश की। लेकिन ये लोग मारने की धमकी देने लगे और सड़क पर ही प्रदर्शन करने लगे। जिसके बाद मौके से इमरान को गिरफ्तार कर लिया गया और अन्य लोग भाग गए।
पुलिस ने जमानत का किया विरोध
कोर्ट रिकॉर्ड बताते हैं कि पुलिस ने दावा किया है कि उसने बहुत ही कम बल प्रयोग किया ताकि 20 दिसंबर को प्रदर्शनकारियो को हटाया जा सके। जमानत का विरोध कर रहे पक्ष ने कोर्ट में कहा कि आरोपियों का नाम एफआईआर में है, मौके पर इन लोगों ने पत्थरबाजी की और गोली भी चलाई, जिसकी वजह से पुलिसकर्मी घायल हुए थे। लेकिन पुलिस ने कम से कम बल प्रयोग किया ताकि भीड़ पर काबू पाया जा सके। पुलिस ने .315 बोर की बुलेट भी मौके से बरामद की थी। आरोपी पर गंभीर आरोप हैं, लिहाजा उसकी जमानत रद्द होनी चाहिए।
जज ने पुलिस के दावों की उड़ाई धज्जियां
जज ने कहा कि मैंने दोनों ही पक्ष की दलीलों को सुना और केस की डायरी को भी पढ़ा , मौके से सिर्फ आरोपी इमरान को गिरफ्तार किया गया है। अन्य किसी भी आरोपी को मौके से गिरफ्तार नहीं किया गया है। अभियोजन पक्ष की ओर से कहा गया है कि पुलिसकर्मी पत्थरबाजी में घायल हुए हैं। लेकिन पुलिस ने जो सबूत पेश किए हैं उसमे इसकी पुष्टि नहीं होती है कि आरोपी दुकानों की तोड़फोड़ और घर में आग लगाने में शामिल थे। पुलिस का दावा है कि मौके से .315 बोर की बुलेट मिली है, लेकिन आरोपियों के पास से हथियार जब्त नहीं किए गए हैं। जज ने कहा कि खुद अभियोजन पक्ष ने कहा है कि किसी भी पुलिसकर्मी को गोली नहीं लगी। इसमे कहा गया है कि पुलिस को पत्थरबाजी से चोट लगी है। लेकिन इस तरह के कोई सबूत पेश नहीं किए गए जिससे यह साबित हो कि पुलिसकर्मियों को किसी भी तरह की गंभीर चोट लगी है।