क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

उत्तर प्रदेश चुनाव: मायावती नदारद पर बसपा को है सत्ता में वापसी की उम्मीद

बसपा मान रही है कि 2007 की तरह सोशल इंजीनियरिंग के सहारे एक बार फिर वो सत्ता में लौट सकती है. जानिए क्या कहते हैं बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा.

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News
सतीश चंद्र मिश्रा
Hindustan Times
सतीश चंद्र मिश्रा

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में जहां भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच एक कड़ा मुक़ाबला होता दिख रहा है वहीं बहुजन समाज पार्टी का दावा है कि राज्य में अगली सरकार उसकी ही बनने जा रही है.

बीएसपी ने उत्तर प्रदेश में आख़िरी बार 2007 में सरकार बनाई थी. इस चुनाव में पार्टी को उत्तर प्रदेश की कुल 403 विधानसभा सीटों में से 206 पर कामयाबी मिली थी. इस चुनाव में बीएसपी की जीत का सेहरा उस सोशल इंजीनियरिंग के सिर बंधा था जिसके तहत पार्टी ब्राह्मण मतदाताओं को अपनी तरह खींचने में कामयाब रही थी.

लगातार दस साल उत्तर प्रदेश की सत्ता से बाहर रहने के बाद 2022 के उत्तर प्रदेश चुनाव में पार्टी ने फिर एक बार ब्राह्मण वोटों पर अपनी नज़रें टिकाई हैं.

पार्टी का मानना है कि पिछले 10 साल में समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी में ब्राह्मणों की उपेक्षा और उनके साथ हुए दुर्व्यवहार के वजह से इस बार ब्राह्मण समुदाय का वोट उसे ही मिलेगा.

बीबीसी ने बहुजन समाज पार्टी के वरिष्ठ नेता और राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा से लखनऊ में बातचीत की.

हमने उनसे पूछा कि राज्य में इतने ज्वलंत मुद्दों के बावजूद क्या बीएसपी की सत्ता में वापसी करने की सारी उम्मीद केवल सोशल इंजीनियरिंग पर ही टिकी है?

सतीश चंद्र मिश्रा ने कहा, "सोशल इंजीनियरिंग तो एक बहुत ही मूल चीज़ है जो होनी ही चाहिए. हमारी पार्टी का नारा है सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय. तो सर्वजन को लेने के लिए सोशल तो होना ही पड़ेगा."

पिछले कुछ महीनों में बसपा ब्राह्मणों को अपनी तरह आकर्षित करने के लिए राज्य में प्रबुद्ध सम्मलेन करती नज़र आई थी. क्या पार्टी को लगता है कि इस बार वो ब्राह्मणों का समर्थन हासिल करने में कामयाब होगी?

सतीश चंद्र मिश्रा कहते हैं, "ब्राह्मण समाज खुली आँखों से देखता है. उसे आप ये नहीं कह सकते कि आँख और कान बंद कर लो. वो हमेशा सोचता रहता है. वो देख रहा है कि एक तरफ बीएसपी का राज था और उसके पहले ब्राह्मणों की क्या दशा थी और बीएसपी ने उसे कहां पहुंचाया. दूसरी तरफ वो देख रहा है कि समाजवादी पार्टी की सरकार में क्या हुआ. जिस भारतीय जनता पार्टी से उन्हें उम्मीद थी उसने तो उन्हें बिल्कुल ही किनारे कर दिया."

मिश्रा का कहना है कि दलित, पिछड़ा वर्ग और मुस्लिम समाज तो पहले से उनके साथ जुड़ा रहा है. "ब्राह्मण समाज को इन लोगों ने जो इधर-उधर करने की कोशिश की थी जिसकी वजह से ब्राह्मण समाज बिलकुल शून्य की स्थिति में पहुंच गया. उनका मान-सम्मान बढ़ाने के लिए और समाज के भेदभाव ख़त्म करने के लिए हमने कोशिश की और हम कामयाब हुए. हमने एक अच्छा फार्मूला चलाया जो कामयाब भी हुआ और जिससे हमारी सरकार भी बनी."

मिश्रा कहते हैं कि अगर सरकार नहीं बनेगी तो सोशल इंजीनियरिंग को अमली जामा नहीं पहनाया जा सकता.

वे कहते हैं, "तो सरकार बनना भी ज़रूरी है और सरकार बनने के लिए अगर समाज के हर वर्ग के लोग ख़ासकर ब्राह्मण जब इकठ्ठा होकर हमारे साथ आएंगे जैसे पहले आए थे तो हम फिर से उसी तरह की सरकार बना कर फिर से वैसा समाज बनाने का काम करेंगे."

चुनाव प्रचार से मायावती गायब क्यों?

पिछले कई हफ़्तों से चल रहे चुनाव प्रचार मैं बीजेपी और समाजवादी पार्टी अपनी पूरी ताकत झोंकते नज़र आए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश में कई रैलियां कर चुके हैं और अखिलेश यादव पूरे राज्य में विजय रथ यात्रा के ज़रिए प्रचार करते दिखे. इन सब के बीच चर्चा इस बात को लेकर रही कि बीएसपी सुप्रीमो मायावती चुनाव प्रचार से नदारद क्यों हैं?

सतीश चंद्र मिश्रा कहते हैं कि उनकी पार्टी की कार्यशैली यही है कि पहले पार्टी के कार्यकर्ता हर ज़िले में जाकर सभाएं करते हैं और मायावती चुनाव की घोषणा हो जाने के बाद हर ज़िले में जाती हैं.

वे कहते हैं. "ये कोई नई बात नहीं है. आप कोई भी पुराना चुनाव देख लीजिए. चुनाव की घोषणा से पहले मायावती जी एक बड़ी सभा करती हैं और चुनाव की घोषणा के बाद हर ज़िले में जाकर प्रचार करती हैं, इस बार भी उन्होंने 9 अक्टूबर को एक जनसभा में पांच लाख लोगों को सम्बोधित किया था."

कोविड संक्रमण की वजह से चुनाव आयोग ने 15 जनवरी तक चुनावी जनसभाओं पर रोक लगाई है. अगर ये रोक हटा ली जाती है तो ये देखना दिलचस्प होगा कि प्रचार के लिए मायावती ज़मीन पर उतरती हैं या नहीं.

मायावती
Hindustan Times
मायावती

बसपा किन मुद्दों पर चुनाव लड़ रही है?

सतीश चंद्र मिश्रा का कहना है कि "पिछले पांच साल और उसके पहले पांच साल में जो अराजकता, लूटमार, डकैती, फिरौती, दंगे, फसाद और बलात्कार जैसी चीज़ें हुईं वो लोगों ने देखी हैं".

वे कहते हैं, "योगी सरकार में रोको और ठोको की नीति के तहत 500 से ज़्यादा ब्राह्मणों की हत्याएं हो गई और 100 ज़्यादा ब्राह्मणों का शूटआउट हो गया. दलितों के साथ अत्याचार हुए. किसान कराह रहा है, उसकी ज़मीन पर कब्ज़ा करने की कोशिश की गई. उसने आंदोलन किया तो उसे कुचलकर मारने का काम किया गया. कहा गया कि किसानों की आमदनी दोगुनी कर देंगे. जब चुनाव आ गया तो गन्ने के दाम 25 रूपए बढ़ा दिए गए."

उनका कहना है कि मायावती ने अपनी सरकार में इन सब वर्गों को सुरक्षा दी.

वे कहते हैं, "महिलाएं सुरक्षित थीं. वो रात के 12 बजे भी घर से निकल सकती थीं. किसानों की आमदनी को दोगुनी करने का काम मायावती जी ने किया."

बसपा को उम्मीद है कि लोगों को मायावती सरकार में किए गए काम याद होंगे और वो पार्टी की तुलना समाजवादी पार्टी और बीजेपी से कर पाएंगे.

अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ
Getty Images
अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ

योगी और अखिलेश पर राय

इस बार के चुनाव प्रचार में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव लगातार सुर्ख़ियों में बने हुए हैं.

हमने सतीश चंद्र मिश्रा से इन दोनों नेताओं के बारे में उनकी राय जाननी चाही.

उन्होंने कहा, "2012 से 2017 के बीच जो हुआ वो सबने देखा है. किस तरह से सैफई में नाच-गाना गाना हो रहा था और किस तरह से मुज़फ्फरनगर में कांड हो रहा था. किस तरह से 134 दंगे हुए. लोग याद करेंगे कि अगर समाजवादी पार्टी की सरकार बनी तो वही सब चीज़ें होंगी. योगी आदित्यनाथ की सरकार में लोगों ने देख लिया कि क्या हो रहा है. रोको और ठोको जैसी बातें हो रहीं हैं. कोई ये उम्मीद नहीं करता कि एक मुख्यमंत्री ऐसे बयान देगा."

मिश्रा के मुताबिक़ योगी सरकार में कोई भी विकास कार्य नहीं हुए. वे कहते हैं, "जो भी काम हुआ वो अख़बारों में हुआ या टीवी में विज्ञापन के माध्यम से दिखाने के लिए हुआ. इन दोनों सरकारों ने सोचा कि वो प्रदेश को भ्रमित कर लेंगे और हर महीने 500 करोड़ रूपए विज्ञापनों पर खर्च करके लोगों को दिखा देंगे कि हमारी सरकार अच्छे से चल रही है. लेकिन लोगों के सामने असली चेहरा आ चुका है. इन दोनों के प्रचार से हम लोगों को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. आज भी ज़मीनी स्तर पर हम मज़बूती से जुड़े हुए हैं और ये लोग हमसे मीलों पीछे हैं."

बसपा की अपनी मुश्किलें

2017 के उत्तर प्रदेश चुनाव के बाद से बसपा की अपनी मुश्किलें भी कम नहीं रही हैं. पार्टी के कई विधायक या तो पार्टी छोड़ कर चले गए या निष्कासित कर दिए गए.

2017 में बसपा ने 19 सीटें जीतीं थीं लेकिन आज उत्तर प्रदेश विधानसभा में उसके केवल तीन ही विधायक बचे हैं. क्या इसका पार्टी के चुनाव प्रचार पर असर नहीं पड़ेगा?

मिश्रा कहते हैं कि इन सभी लोगों को पार्टी से चुनाव प्रचार शुरू होने से पहले ही हटा दिया गया था.

वे कहते हैं, "इन लोगों ने धोखा देने का काम किया था. इन लोगों के ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई और उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया. निकाले जाने के बाद ये कहां जाते हैं, क्या करते हैं उससे पार्टी को फर्क नहीं पड़ता क्योंकि बसपा का इतिहास है कि ज़ीरो से नेता बनाने का काम करती है और नेता बनने के बाद अगर ये लोग पार्टी को धोखा देते हैं तो ये अकेले ही जाते हैं. पार्टी का कोई भी कार्यकर्त्ता, समर्थक या मतदाता इनके साथ नहीं जाता. इसीलिए जब अगला चुनाव होता है तो ये मुँह के बल गिर जाते हैं."

ईवीएम से छेड़खानी की बात क्यों?

मायावती ने हाल ही में कहा कि अगर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हुए तो बीजेपी हार जाएगी. उन्होंने ईवीएम से छेड़खानी की संभावना की बात भी कही. हमने सतीश चंद्र मिश्रा से पूछा कि क्या बीजेपी की हर जीत की वजह ईवीएम से की गई छेड़खानी बता देना सिर्फ एक बहाना नहीं है?

उन्होंने कहा, "अगर इलेक्शन कमिशन सत्ता के दुरूपयोग की अनुमति देगा या सरकार को मनमानी करने देगा तो दिक्कत तो होगी. हमने सिर्फ ये कहा है कि हमारा वोट का प्रतिशत इतना बढ़ रहा है कि अगर ईवीएम से कोई छेड़खानी कर भी लें तो ये जीत नहीं पाएंगे. सरकार में रहकर दुरूपयोग तो कर ही रहे हैं. चुनाव आयोग ने जिस दिन चुनावों की घोषणा की उससे एक दिन पहले मुख्यमंत्री जी उद्घाटन कर रहे थे. क्या ये दुरूपयोग नहीं है?"

क्या मायावती चुनाव लड़ेंगी?

इस सवाल के जवाब में सतीश चंद्र मिश्रा ने कहा, "बहन मायावती चुनाव लड़ेंगी या नहीं, इस बारे में कोई निर्णय न अभी पार्टी ने लिया है न बहन मायावती ने. चुनाव लड़ने या न लड़ने का निर्णय आखिरकार उन्हीं को लेना है."

परिवारवाद का आरोप

सतीश चंद्र मिश्रा की पत्नी कल्पना मिश्रा और उनके पुत्र कपिल मिश्रा भी राजनीति में एक सक्रिय भूमिका निभाते दिख रहे हैं. वे दोनों ही बसपा के प्रबुद्ध सम्मेलन में हिस्सा लेते हुए नज़र आये.

हमने उनसे पूछा कि चूंकि भारत में परिवारवाद पर अक्सर एक बड़ी बहस चलती है, क्या उनकी पत्नी और पुत्र का राजनीति में कूदना परिवारवाद नहीं है?

इसके जवाब में मिश्रा ने कहा, "परिवारवाद किसे कहते हैं मुझे नहीं पता. मुझे लगता है कि परिवारवाद वो है कि हम अपनी पत्नी और बेटे को चुनाव लड़वा रहे हों. वो स्वयं भी कह चुके हैं और मैं भी कह चुका हूँ कि न वो चुनाव लड़ रहे हैं न ही पार्टी के किसी पद पर हैं. वो निकले हैं सिर्फ पार्टी को मज़बूत करने के लिए और जिताने के लिए."

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

BBC Hindi
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
BSP hopes to return to power even after Mayawati's absence
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X