कर्नाटक को लेकर मोदी और राहुल दोनों हैं व्याकुल
इसके अलावा, कांग्रेस संसाधनों की कमी से लगातार जूझ रही है. पार्टी के कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा मान चुके हैं कि पार्टी ओवरड्राफ़्ट पर चल रही है. सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद मणिपुर और गोवा में सरकार न बना पाने के पीछे पैसों की कमी भी एक बड़ा कारण थी.
अगर पंजाब और कर्नाटक जैसे दो मालदार राज्य कांग्रेस के पास रहे तो 2019 के चुनाव में, बीजेपी के
कर्नाटक में जितना नाटक हो सकता था, हो चुका है.
राहुल गांधी का 'टेंपल रन' पूरा हो चुका है और कर्नाटक ही नहीं, नेपाल के मंदिरों में मोदी झाल-खड़ताल बजा चुके हैं.
लेकिन संस्पेंस अभी बना हुआ है जब तक नतीजे नहीं आ जाते, नतीजे आने पर किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला तो सस्पेंस और लंबा खिंच सकता है.
बहरहाल, नतीजों पर अटकलबाज़ी से बेहतर है उन बातों की चर्चा की जाए जो कर्नाटक के इस विधानसभा चुनाव को ख़ास बनाते हैं और आगे की सियासत पर असर डालेंगे.
सत्ता परिवर्तन के पक्ष में वोट
पहली बात तो ये कि कर्नाटक की जनता ने पिछले तीस सालों में किसी पार्टी को लगातार दो बार बहुमत नहीं दिया है, 1983 और 1988 में लगातार दो बार चुनाव जीतने वाले रामकृष्ण हेगड़े थे.
कर्नाटक के वोटर नेताओं से बेरहमी से पेश आते रहे हैं. एक और बात ग़ौर करने की है कि 2014 के बाद से देश में जितने भी विधानसभा चुनाव हुए हैं, उनमें से ज़्यादातर में लोगों ने सत्ता परिवर्तन के पक्ष में वोट दिया है.
इस नज़रिए से देखें तो सिद्धारमैया के सामने ख़ासी बड़ी चुनौती है इस ट्रेंड को तोड़ने की, अगर वे ऐसा कर पाए तो वे निश्चित तौर पर बड़े नेताओं में गिने जाने लगेंगे.
कर्नाटक को कांग्रेस से छीनने के लिए जान लगाने वाले मोदी ने कहा कि जल्दी ही कांग्रेस की 'पी पी पी' होने वाली है, यानी पुडुचेरी, पंजाब और परिवार रह जाएगा. अगर मोदी-शाह कांग्रेस से कर्नाटक नहीं छीन पाए तो राहुल गांधी मज़बूत होंगे.
खस्ताहाल कांग्रेस!
इसके अलावा, कांग्रेस संसाधनों की कमी से लगातार जूझ रही है. पार्टी के कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा मान चुके हैं कि पार्टी ओवरड्राफ़्ट पर चल रही है. सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद मणिपुर और गोवा में सरकार न बना पाने के पीछे पैसों की कमी भी एक बड़ा कारण थी.
अगर पंजाब और कर्नाटक जैसे दो मालदार राज्य कांग्रेस के पास रहे तो 2019 के चुनाव में, बीजेपी के धनबल का वह किसी हद तक मुक़ाबला कर सकती है, अब इसमें कोई शक की बात नहीं है कि भाजपा देश की सबसे मालदार पार्टी बन चुकी है.
दक्षिणी राज्य के चुनाव नतीजों का 2019 के महा-मुक़ाबले पर असर होगा ये तो सब कह रहे हैं, लेकिन उससे पहले इसी साल होने वाले मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के लिए माहौल बनेगा या बिगड़ेगा, ये भी कर्नाटक से काफ़ी हद तक तय होगा.
इन तीनों राज्यों में भाजपा सत्ता में है. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में तो लंबे समय से है. अगर राहुल गांधी इन राज्यों में कामयाबी हासिल करेंगे तो विपक्ष के नेता के तौर पर उनकी स्वीकार्यता बढ़ेगी वरना शरद पवार, ममता बनर्जी जैसे लोग उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ने को आसानी से तैयार नहीं होंगे.
मोदी-शाह की भी परीक्षा
नरेंद्र मोदी ने कर्नाटक में बीस से ज्यादा चुनावी रैलियाँ की हैं, और अमित शाह ने तो वहाँ काफ़ी समय डेरा डाले रखा, न सिर्फ़ इसलिए कि कर्नाटक का चुनाव बीजेपी के लिए अहम है बल्कि मोदी-शाह के चुनाव लड़ने का ढंग ही यही है.
कर्नाटक का चुनाव तीन-तरफ़ा है और त्रिकोणीय मुक़ाबलों में भाजपा अक्सर फ़ायदे में रहती है, इस बार भी ऐसा होगा या नहीं, ये देखने वाली बात होगी.
किंगमेकर बताए जा रहे एचडी देवेगौड़ा अगर 25 से ज्यादा सीटें जीत पाते हैं तो राष्ट्रीय राजनीति में उनकी हैसियत बढ़ जाएगी और अगर ऐसा नहीं हुआ तो पिता-पुत्र की जोड़ी को नए सिरे से सोचना होगा.
राष्ट्रवाद का मुक़ाबला प्रांतवाद से
सिद्धारमैया ने बीजेपी के हिंदू राष्ट्रवाद की काट के लिए 'कन्नड़ गौरव' का कार्ड जमकर खेला. इस खेल में कुछ नया नहीं है.
बीजेपी ने गुजरात के चुनाव में जिस तरह यह साबित करने की कोशिश की थी कांग्रेस गुजरातियों को अपमानित करती है या उनसे नफ़रत करती है, ऐसा ही माहौल सिद्धारमैया ने बनाने की कोशिश की कि वे 'कन्नड़ गौरव' के झंडाबरदार हैं और भाजपा अपनी संस्कृति थोपना चाहती है.
झंडे का मामला हो या कन्नड़ भाषा को अधिक अहमियत देने का सिद्धारमैया ने आक्रामक तरीक़े से मोर्चा खोला हुआ था, ये देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा के हिंदू राष्ट्रवाद की काट प्रांतीय अस्मिता की राजनीति कर सकती है या नहीं.
जातिगत समीकरणों में तोड़-फोड़ भाजपा की कामयाब रणनीति रही है, दलितों में जाटवों को छोडकर दूसरों को फोड़ना या ओबीसी में यादवों को अलग-थलग करना, इस बार सिद्धारमैया ने लिंगायतों को हिंदू धर्म से अलग अल्पसंख्यक का दर्जा देने की राजनीति छेड़ी वो कितनी कारगर होगी, ये नतीजों से पता चलेगा.
जब कर्नाटक के नतीजे आएँगे तो एक बात तय है कि मोदी-शाह हारें या फिर राहुल गांधी, इसे अपनी हार कोई नहीं मानेगा, हाँ जीत का श्रेय केंद्रीय नेतृत्व को ही दिया जाएगा.