राजपूत-गुज्जर-जाट इस बार बदल सकते हैं राजस्थान में भाजपा का गणित
नई दिल्ली। राजस्थान के चुनाव अब अब उल्टी गिनती शुरू हो गई, यहां चुनाव में एक वर्ष से भी कम का समय बचा है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी प्रदेश में एक बार फिर से सरकार बनाने के लिए अपने कमर कसने लगी है। प्रदेश की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के लिए प्रदेश में एक बार फिर से सत्ता की राह आसान नहीं होने वाली है, पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती प्रदेश में उसका मजबूत वोट बैंक राजपूत और गुज्जर हैं, जिनका रुख आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी के लिए काफी अहम है।
20 फीसदी आबादी
पिछले चार वर्षों में वसुंधरा राजे ने राजपूत, गुज्जर और जाटों को काफी लुभाने की कोशिश की है, इसके पीछे की बड़ी वजह यह है कि ये तीनों ही मिलकर प्रदेश की तकरीबन 20 फीसदी आबादी का हिस्सा हैं। राजपूतों की कुल आबादी तकरीबन 5-6 फीसदी, जाटों की 9-10 फीसदी और गुज्जर की 5-6 फीसदी आबादी राजस्थान में है। ऐसे में अगर ये समुदाय वसुंधरा राजे से नाराज होता है तो राजे के लिए फिर से सत्ता में वापासी करना मुश्किल हो सकता है। राजस्थान में राजपूतों के सबसे बड़े नेता भैरो सिंह शेखावत थें, उन्होंने पार्टी के लिए मजबूत आधारशिला रखी थी, वह पार्टी के लिए प्रदेश में काफी अहम नेता रहे हैं।
राजपूतों पर भाजपा का दबदबा
1980 में जब भाजपा यहां पहली बार अस्तित्व में आई तो शेखावत ने प्रदेश में दो बार 1990-1992 में पार्टी की सरकार बनवाने में अहम भूमिका निभाई थी। बाबरी मस्जिद विध्वंश के बाद यहां राष्ट्रपति शासन लग गया था और भाजपा सरकार गिर रगई थी। इससे शेखावत 1977 में राजस्थान के मुख्यमंत्री बने थे जब जनता पार्टी की सरकार यहां आई थी और देश में इंदिरा गांधी द्वारा लगाया गया आपातकाल खत्म हुआ था। शेखावत के प्रयासों की वजह से ही राजस्थान में राजपूत हमेशा से ही भाजपा के समर्थक रहे। इसके बाद हर चुनाव में कम से कम 15-17 राजपूत नेता भाजपा के टिकट पर चुनाव जरूर जीतते हैं। मौजूदा समय में राजस्थान विधानसभा में कुल 27 विधायक हैं जिसमे से 24 भाजपा के हैं।
पिछले दिनों में बढ़ी है नाराजगी
लेकिन जिसस तरह से पिछले वर्ष राजपूतों के आंदोलन के खिलाफ उनपर मामला दर्ज किया गया उसके बाद से हालात काफी बदले हैं। दरअसल गैंगस्टर आनंदपाल सिंह के एनकाउंटर के बाद राजपूत प्रदर्शन करने सड़क पर उतर आए थे। जिसके बाद उनके खिलाफ मामले दर्ज किए गए थे। श्री राजपूत सभा के अध्यक्ष गिरिराज सिंह लोटवारा का कहना है कि 2 अप्रैल को भारत बंद के दौरान हिंसा के दौरान एससी समुदाय के लोग सरकार को यह समझाने में सफल हुए थे कि उनके खिलाफ मामले वापस लिए जाए, लेकिन हमारे नेताओं के खिलाफ से मामले वापस नहीं लिए गए।
राजे के खिलाफ राजपूत
इसके बाद राजपूतों में इस बात को लेकर भी नाराजगी है कि जोधपुर के समरऊ गांव में जाटों ने इस वर्ष की शुरुआत में उनके घरों को जलाया, उनके साथ लूटपाट की लेकिन पुलिस महज मूकदर्शक बनी रही। इसकी वजह से राजे सरकार को राजपूतों की नाराजगी का सामना करना पड़ा। जब राजे आरएसएस की सहयोगी संस्था श्री क्षत्रीय युवक संघ के कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए पहुंची तो राजपूतों ने जसवंत सिंह के समर्थन में पोस्टर दिखाए और उनके खिलाफ नारे लगाए। राजपूतों का दावा है कि भाजपा अजमेर और अलवर उपचुनाव में इसी वजह से हार का सामना करना पड़ा क्योंकि इस वर्ष उन लोगों ने फरवरी माह में सरकार के खिलाफ अभियान चलाया था। संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावत के खिलाफ प्रदर्शन की अगुवाई करने वाले नेता लोकेंद्र सिंह कल्वी का कहना है कि भाजपा हमारी वजह से हारी है।
गुज्जर वोट बैंक पड़ सकता है भारी
पारंपरिक तौर पर गुज्जर भाजपा के वोटर रहे हैं, लेकिन जिस तरह से कांग्रेस नेता राजेश पायलट 1980 में राजनीति में आए उसके बाद वह बड़े गुज्जर नेता के तौर पर उभरे। उन्होंने भरतपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था। उनसे पहले नाथू सिंह गुज्जर के सबसे बड़े नेता के तौर पर जाने जाते थे. जोकि 1977 में भारतीय लोक दल के टिकट से दौसा से सांसद चुने गए थे। ऐसे में गुज्जरों को इस बात का भरोसा है कि इस बार उनके पास सबसे अच्छा अवसर है जब एक गुज्जर प्रदेश का मुख्यमंत्री बन सकता है, जोकि खुद राजेश पायलट का बेटा सचिन पायलट है।
सचिन पायलट अहम
सचिन पायलट 2014 में अजमेर से लोकसभा चुनाव हार गए थे, लेकिन उपचुनाव में कांग्रेस ने भाजपा से यह सीट वापस छीन ली और रघु शर्मा ने भाजपा के रामस्वरूप लांबा को हरा दिया। रामस्वरूप लांबा के पिता संवर लाल ने 2014 में सचिन पायलट को हराया था। इस बार गुज्जर भाजपा से नाराज हैं क्योंकि भाजपा सरकार ने उन्हें नौकरी और विश्वविद्यालय की सीट में आरक्षण नहीं दिया। 2007 और 2008 के बीच जाति संघर्ष में 70 लोगों की जान गंवा चुका गुज्जर समुदाय अभी तक आरक्षण हासिल करने में सफल नहीं हुआ है, वह अभी भी इसकी लड़ाई लड़ रहा है। यही वजह है कि गुज्जर अब कांग्रेस की ओर रुख कर रहे हैं।
कैसे पड़ेंगे जाट भारी
यूं तो जाट पारंपरिक रूप से कांग्रेस के समर्थक हैं, वह कांग्रेस को जागिरदारी व्यवस्था खत्म करने का श्रेय देते हैं, जिसकी वजह से लोगों को अपने जमीन पर अधिकार हासिल हो सका। जाट नेता नाथू राम, राम निवास मिरधा, सीस राम ओला पार्टी के बड़े जाट नेता के रूप में जाने जाते हैं। नाथू राम 1977 में कांग्रेस के एकमात्र सांसद थे जिन्हें पूर्वी भारत से जीत मिली थी। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने इस समुदादय को ओबीसी की श्रेणी में शामिल किया और उन्हें नौकरी और शिक्षा में 1999 में आरक्षण देना शुरू कियाथा, जिसकी वजह से गुज्जर समुदाय ने भाजपा का साथ देना शुरू कर दिया था।
भाजपा से नाराज जाट नेता
बारमेर से भाजपा सांसद सोनाराम चौधरी पार्टी के सबसे वरिष्ठ जाट नेता हैं और वह खुद को पार्टी में नजरअंदाज किए जाने से नाराज हैं, पार्टी ने उन्हें कोई भी बड़ी भूमिका नहीं दी है। यही वजह थी कई वरिष्ठ नेताओं ने कांग्रेस में सम्मान नहीं मिलने की वजह से भाजपा का दामन थाम लिया है, लेकिन अब हमे लगता है कि पार्टी में हमारी कोई आवाज नहीं है। राजस्थान ओबीसी कमिशन के पूर्व सदस्य सत्य नारायण का कहना है कि जाटों को लगता है कि भाजपा राजपूतों की पार्टी है, लिहाजा जाट नेता की जगह अभी भी खाली है।