सांसद-विधायक रहते हुए कर सकेंगे वकालत प्रैक्टिस, बार काउंसिल लेगा फैसला
नई दिल्ली। क्या सांसद या विधायक वकालत कर सकेंगे? उनका ऐसा करना बार काउंसलिंग ऑफ इंडिया के नियमों के खिलाफ नहीं है? इस संबंध में बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) को चिट्ठी लिखकर सांसदों और विधायकों के वकील के तौर पर अदालतों में प्रैक्टिस करने से रोक लगाने की गुहार लगाई है। अश्विनी उपाध्याय ने अपनी मांग के समर्थन में बीसीआई नियमों और डॉ हनीराज एल चुलानी बनाम बार काउंसिल महाराष्ट्र और गोवा केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया है।
अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका की प्रति सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश जस्टिस दीपक मिश्रा को भी भेजी है। बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन मिश्रा का कहना है कि मसला तो गंभीर है और जो सवाल उठाये गए हैं वो भी वाजिब ही लग रहे हैं। लेकिन इस बारे में अध्यक्ष अकेले नहीं बल्कि पूरी परिषद अपनी आम बैठक में चर्चा करके तय करेगी क्योंकि बार काउंसिल के नियम तो साफ तौर पर एक साथ दो जगहों से मेहनताना लेने से मना करते हैं। यानी किसी और जगह काम करने के साथ साथ वकालत जैसे फुल टाइम पेशे के साथ अन्याय है।
आपको बता दें कि बार काउंसिल के नियम संख्या 49 के तहत, एक वकील को किसी भी व्यक्ति, सरकार या फर्म के पूर्णकालिक वेतनभोगी कर्मचारी (फुल टाइम सैलरिड एंप्लाई) होने की इजाजत नहीं है, जब तक वो अपना प्रैक्टिस जारी रखता है। लेकिन यदि वो ऐसा करता है तो उसे तब तक एक वकील के रूप में उन्हें अपनी प्रैक्टिस बंद करनी होगी जब तक वो कहीं और या किसी के लिए काम करना जारी रखता है। जनप्रतिनिधियों के वकालत प्रैक्टिस से कई बार बेवजह के विवाद भी खड़े हो जाते हैं। पिछले दिनों बाबरी मस्जिद मामले में कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने सुनवाई के दौरान बतौर वकील पेश होकर सुप्रीम कोर्ट से इसे मुद्दे की सुनवाई 2019 के आम चुनाव तक टालने की अपील की थी। बाद में इसको लेकर देश भर में काफी हंगामा और हल्ला मचा था।