उपेंद्र कुशवाहा से लालू यादव की नाराजगी ने महागठबंधन में फंसा दिए ये तीन पेंच
पटना। राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा एनडीए से अलग होने के बाद महागठबंधन के साथ भविष्य बनाने में लगे हैं। कुछ दिनों पहले कुशवाहा आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव से मिलने रांची पहुंचे थे। कुशवाहा ने लालू यादव के साथ मीटिंग के बाद मीडिया से बातचीत में 2019 में एनडीए के सफाए और महागठबंधन की प्रचंड जीत के दावे भी किए। कुशवाहा के बयान से बिल्कुल भी संकेत नहीं मिला कि अंदरखाने कोई गड़बड़ चल रही है, लेकिन हकीकत यही है कि सबकुछ ठीक नहीं है। कारण यह है कि लालू यादव नाराज हैं, कुशवाहा जब आरजेडी सुप्रीमो से मिले तो वह बड़े असहज नजर आए। नाराजगी की दो बड़ी वजह सामने आ रही हैं। पहली- रालोसपा नेता का मीडिया के सामने उपेंद्र कुशवाहा को सीएम के रूप में देखने का ऐलान और दूसरी वजह है शरद यादव की पार्टी के साथ रालोसपा का विलय। लालू की नाराजगी की वजह से उपेंद्र कुशवाहा और शरद यादव की पार्टी के विलय की चर्चा ठंडे बस्ते में चली गई है।
लालू के ख्वाब से टकरा गया रालोसपा नेता का सपना
हाल में बिहार के सियासी गलियारों में उस वक्त राजनीतिक हलचल तेज हो गई, जब रालोसपा नेता नागमणि ने लालू यादव से मुलाकात के बाद मीडिया से बातचीत में कह दिया कि उनका पार्टी के नेता-कार्यकर्ताओं का सपना उपेंद्र कुशवाहा को बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में देखना है। रालोसपा को महागठबंधन में आए अभी जुम्मा-जुम्मा चार दिन हुए हैं और पार्टी नेता उपेंद्र कुशवाहा को सीएम के रूप में देखना चाहते हैं। यूं तो यह ख्वाब देखने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन उस सपने का क्या होगा, जो लालू यादव अपने लाल तेजस्वी के लिए देख रहे हैं। आरजेडी महागठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी है और सभी जानते हैं कि लालू यादव की पार्टी तेजस्वी को सीएम के तौर पर प्रोजेक्ट कर रही है। रालोसपा नेता नागमणि के ऐलान के बाद जब उपेंद्र कुशवाहा रांची में लालू यादव से मिलने गए तो वह बेहद असहज महसूस कर रहे थे।
लालू यादव को पसंद नहीं आया विलय का आइडिया
अब बचा शरद यादव की लोकतांत्रिक जनता दल और रालोसपा के विलय का। रालोसपा सूत्रों का कहना है कि लालू यादव को यह आइडिया पसंद नहीं आ रहा है। रालोसपा की हालत इस समय वैसे भी ठीक नहीं है। एनडीए से बाहर होने के बाद उसके कई बड़े नेता साथ छोड़कर जेडीयू का दामन थाम चुके हैं। स्पष्ट है कि रालोसपा इस समय लालू यादव को नाराज करने की स्थिति में नहीं है। रालोसपा नेता की मानें तो लालू यादव को विलय का आइडिया इसलिए पसंद नहीं आ रहा है, क्योंकि शरद यादव की पार्टी के साथ मर्जर के बाद उपेंद्र कुशवाहा को मजबूती मिल जाएगी। दोनों दलों का विलय एक बड़ी ताकत के तौर पर उभरेगा। अब कारण चाहे भी हो, लेकिन अंतिम सत्य यही है कि लालू यादव को आइडिया पसंद नहीं आया। परिणाम यह हुआ कि रालोसपा ने विलय की चर्चा ठंडे बस्ते में डाल दी। रालोसपा किसी भी सूरत में लालू को नाराज नहीं करना चाहती है, लेकिन विलय की खिचड़ी पक अब भी रही है। कोशिश यह है कि आंच को थोड़ा धीमा कर दिया जाए और धीरे-धीरे काम को आगे बढ़ाया जाए।
रालोसपा के साथ विलय पर लोकतांत्रिक जनता दल के नेता ने कही ये बात
रालोसपा सूत्रों के मुताबिक, शरद यादव के साथ विलय तो होगा, लेकिन लालू यादव को नाराज करके नहीं। दूसरी ओर, इंडियन एक्सप्रेस के साथ बातचीत में लोकतांत्रिक जनता दल के नेता अली अनवर ने कह कि विलय के मुद्दे पर रालोसपा से बात चल रही है। चीजें अपनी जगह पर आ जाएंगी, अब ये थोड़ा जल्दी भी हो सकता है, या थोड़ी देर से। हमारा प्रमुख मकसद एक ही है-बीजेपी के सामने महागठबंधन को मजबूत ताकत के तौर पर लाकर खड़ा करना।
उपेंद्र कुशवाहा और शरद यादव का सीटों को लेकर नहीं बन रहा लालू यादव से तालमेल
उपेंद्र कुशवाहा को सीएम के रूप में देखने वाला रालोसपा नेता का बयान, रालोसपा और शरद यादव की पार्टी के विलय के अलावा सीटों के मुद्दे पर भी महागठबंधन में पेंच फंसा है। 2019 लोकसभा चुनाव के लिए रालोसपा लालू यादव से छह सीटों की मांग कर रही है। दूसरी ओर शरद तीन लोकसभा सीट- सीतामढ़ी, जमुई, मधेपुरा मांग रहे हैं। लालू यादव उन्हें तीन सीटें देना नहीं चाहते हैं। खबर यह भी है कि शरद यादव पांच जनवरी को लालू यादव से मिल सकते हैं। छह सीटों की मांग कर रही रालोसपा 2014 लोकसभा चुनाव में चार सीटों पर लड़ी थी, इनमें से वह तीन सीटों पर जीती थी। कुशवाहा बैकवर्ड कोरी समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं। बिहार की कुल आबादी के हिसाब से देखें इस समुदाय की हिस्सेदारी 5 से 6 प्रतिशत है। करीब 25 से 30 विधानसभा सीटों पर इनका प्रभाव है। यह बात सही है कि रालोसपा ने पिछले लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया था, लेकिन 2015 बिहार विधानसभा चुनाव में वह 23 विधानसभा सीटों में से 21 पर हार गई थी। इस समय रालोसपा टूट की भी शिकार हुई है, उसके कई बड़े नेता जेडीयू में चले गए हैं। ऐसे में रालोसपा की मांगों को कितनी गंभीरता से लिया जाता है, यह तो सीट बंटवारे के बाद ही पताा चलेगा।