नीतीश कुमार की राजद के मुस्लिम चेहरे से गुपचुप मुलाकात के सीक्रेट मायने
पटना। बिहार के परिदृश्य में प्लेइंग इलेवन चाहे जो भी हो कप्तान नीतीश कुमार ही रहेंगे। ये कप्तानी भी नीतीश अपनी शर्तों पर करेंगे। बिना किसी की परवाह किये उन्हों ने अपना गेम प्लान फाइनल कर लिया है। भाजपा या राजद चाहे जो सोचे, वे अपनी खींची लकीर को और लंबी करने की तैयारी में हैं। नीतीश कुमार की राजद नेता अब्दुल बारी सिद्दी से मुलाकात के बाद राजनीतिक फिजां में कयासों के बादल छा गये हैं। 28 जुलाई को राजद के बड़े मुस्लिम नेता रहे अली अशरफ फातिमी जदयू में जाने वाले हैं। नीतीश-सिद्दी की मुलाकात भले औपचारिक हो लेकिन जिस राजनीति हालात में दोनों मिले हैं उससे अटकलों का उछलना लाजिमी है। इन अटकलों का चाहे जो हस्र हो लेकिन भाजपा को एक खास संकेत तो मिल ही गया है। अल्पसंख्यक हितों के लिए नीतीश कुमार प्रतिबद्धता अब और मजबूत होगी, अब भाजपा को जो करना है, करे।
अपनी खींची लकीर और बड़ी करेंगे नीतीश
अब नीतीश माइनोरिटी वोट से आगे की सोच रहे हैं। अल्पसंख्यकों के मन में वे अपने इमेज को मिस्टर भरोसेमंद के रूप में चस्पां करना चाहते हैं। वे खुद को मुस्लिम हितों के सबसे बड़े नेता के रूप में स्थपित करना चाहते हैं। अल्पसंख्यक अगर किसी पर भरोसा करें तो सिर्फ उन पर। लालू की गैरमौजूदगी से जो शून्य पैदा हुई है उस जगह को भरना चाहते हैं नीतीश। हाल ही में दरभंगा के बाढ़ग्रस्त इलाकों का दौरा करते समय नीतीश ने राजद नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी के घर जा कर मुलाकात की थी। चाय-पानी के साथ गपशप भी हुआ। सिद्दीकी इस मुलाकात को निहायत निजी बता रहे हैं। लेकिन वे ये भी कहते हैं- इब्दिता- ए- इश्क है, रोता है क्या ? आगे-आगे देखिए, होता है क्या ? इतना कह कर सिद्दीकी उलझन को सुलझाने की बजाय और बढ़ा देते हैं। इस मुलाकात को वो मीडिया के लिए मसाला बता रहे हैं। लेकिन क्या ये सचमुच तवज्जो देने वाली बात नहीं है ?
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राबड़ी देवी की सफाई
अगर ये मुलाकात इतनी ही औपचारिक है तो आखिर पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी को क्यों सफाई देनी पड़ी। उन्होंने यहां तक कहा दिया कि राजद अटूट है। कहीं कोई नहीं जा रहा । तो क्या राजद पर कोई खतरा है ? राबड़ी देवी ने कहा कि इस मुलाकात से राजद तो नहीं बल्कि भाजपा डर गयी है। तभी तो सुशील कुमार मोदी ने आनन-फानन में घोषणा कर दी कि 2020 का चुनाव नीतीश के नेतृत्व में ही लड़ेंगे। राबड़ी देवी के इस बयान से इस मुलाकात के राजनीतिक महत्व का अंदाजा लगाया जा सकता है।
सिद्दीकी क्या राजद में असहज है ?
जब से तेजस्वी यादव को लालू यादव का उत्तराधिकारी बनाया गया है तब से अब्दुल बारी सिद्दीकी राजद में असहज महसूस कर रहे हैं। 2010 में राजद की करारी हार के बाद सिद्दी ही विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष थे। 2017 में जब नीतीश कुमार ने राजद को सत्ता से बाहर कर दिया था तब लालू प्रसाद ने तेजस्वी को नेता प्रतिपक्ष बना दिया था। इतना ही नहीं जब नीतीश मंत्रिमंडल में सिद्दीकी शपथ ले रहे थे तो उनका क्रम तेजस्वी और तेजप्रताप के बाद आया था। यानी सीनियर लीडर सिद्दीकी को पहली बार विधायक बने तेजस्वी-तेजप्रताप से भी जूनियर बना दिया गया। लोकसभा चुनाव के समय भी सिद्दीकी को दरभंगा से टिकट लेने के लिए खूब भाग दौड़ करनी पड़ी थी। सिद्दी को राजद में हैसियत के हिसाब से इज्जत नहीं मिल रही है, ये बात जदयू को मालूम है। इस लिए नीतीश कुमार हमेशा सिद्दीकी के प्रति नरम रहे हैं। 2020 के लिए नीतीश एक बड़े मुस्लिम चेहरे की तलाश में हैं। लालू के करीबी रहे अली अशरफ फातिमी के बाद अगर अब्दुल बारी सिद्दीकी भी जदयू में आ जाएं तो नीतीश की उम्मीदें उड़ान भरने लगेंगी। राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं होता।