Bihar polls: पुष्पम प्रिया की पार्टी की पहली सूची में उम्मीदवार का नाम नहीं जाति और धर्म है खास
नई दिल्ली- जिस बिहार में हमेशा से उम्मीदवारों की जाति ही राजनीतिक दलों से टिकट पाने का मुख्य आधार रहा है, वहां इस बार एक ऐसी पार्टी पहली बार किस्मत आजमा रही है, जिसने चुनाव से पहले जाति-धर्म के बंधनों को तोड़ दिया है। प्लुरल्स पार्टी ने 40 उम्मीदवारों की जो पहली लिस्ट जारी की है, उसमें सभी प्रत्याशियों का धर्म एक है और उन सबकी जाति वही बताई गई है, जिस पेशे से वो उम्मीदवार जुड़े हैं। भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में शायद ही कोई राजनीति पार्टी ने ऐसी प्रोग्रेसिव सोच दिखाई है। वरना बड़ी-बड़ी बातें करके पार्टी बनाने वालों का असली चेहरा तभी नजर आया है, जब उनपर टिकट के लिए मोटे पैसे लेने के आरोप लगे हैं और जाति-धर्म के आधार पर सीटों का बंटवारा किया गया है।
पुष्पम प्रिया की पार्टी के उम्मीदवारों का धर्म- बिहारी
बिहार विधानसभा चुनाव में पहली बार सियासी किस्मत आजमा रही पुष्पम प्रिया चौधरी की पार्टी ने राज्य की सभी 243 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है। पार्टी ने 28 अक्टूबर को होने वाले पहले चरण की 71 सीटों में से जो 40 उम्मीदवारों की जो पहली लिस्ट जारी की है, उससे इतना जरूर जाहिर होता है कि इस नई-नवेली पार्टी की शुरुआत दूसरे दलों से नेक है। ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि प्लुरल्स पार्टी ने उम्मीदवारों की लिस्ट में सभी प्रत्याशियों के नाम के आगे उनका धर्म 'बिहारी' लिखा है। यानि यह बहस का विषय हो सकता है कि अगर 'भारतीय' लिखा जाता तो और अच्छा होता। लेकिन, इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि पुष्पम प्रिया की पार्टी के लिए ना तो कोई हिंदू है और ना ही मुसलमान और ना ही क्रिश्चियन। सब बिहार के लोग हैं, जो बिहार के मतदाताओं से वोट मांगने निकले हैं।
उम्मीदवारों की जाति है उनका 'पेशा'
बिहार-यूपी या पूरे भारत के नजरिए से भी देखें तो प्लुरल्स पार्टी ने एक और बड़ी क्रांति करने की जोखिम ली है। बिहार में कुछ जातियों के लोग ताल ठोककर कहते सुने जा सकते हैं कि वह वोट और बेटी (बेटी की शादी) बिरादरी को ही देते हैं। लेकिन, अपनी पार्टी से मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार पुष्पम प्रिया की पहल पर उनके दल ने उम्मीदवारों की जाति के आगे उन सबके पेशे के बारे में लिखा है। मसलन, प्लुरल्स पार्टी का कोई उम्मीदवार प्रोफेसर है, तो कोई डॉक्टर, सोशल ऐक्टिविस्ट, टीचर, गृहिणी, किसान, पूर्व छात्र नेता, इंजीनियर, ट्यूशन ट्यूटर, बिजनेसमैन या मुखिया। कोई भी ब्राह्मण, राजपूत, भुमिहार, यादव, कुर्मी, दलित, बनिया या पिछड़ा नहीं है।
'बिहार का खोंइछा' अभियान
हालांकि, पुष्पम राजनीति में दांव आजमाने निकली हैं तो एक मंजे हुए राजनीतिज्ञ की तरह इससे जुड़े भावनात्मक और सामाजिक पहलुओं को भुनाने की कोशिशों में भी दिख रही हैं। मसलन, उन्होंने कुछ दिन पहले से एक 'बिहार का खोंइछा' अभियान चला रखा है, जिससे वह खासकर महिला वोटरों से जुड़ने की कोशिश कर रही हैं। वह बिहार के भविष्य के लिए खोंइछा मांगती हैं। उन्हें इस अभियान में कुछ कामयाबी भी मिलती दिख रही है, लेकिन देखने वाली बात होगी कि राजनीतिक तौर पर बहुत ही सजग बिहार के मतदाता उन्हें खोइंछा के रूप में जो आशीर्वाद दे रहे हैं, वह वोट के रूप में भी देते हैं या नहीं।
लंदन से पढ़कर बिहार की सीएम बनने आई हैं पुष्पम प्रिया
पुष्पम प्रिया की प्रोग्रेसिव सोच के बारे में कहा जा सकता है कि वह विदेश से उच्च शिक्षा लेकर आई हैं और यह इसी का असर है। मसलन, वो अपने बारे में बताती हैं कि वह आईडीएस, यूनिवर्सिटी ऑफ ससेक्स से डेवेलपमेंट स्टडीज में और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस से पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर्स हैं। वह खुद को पॉलिटिक्स, फिलॉसिफी और इकोनॉमिक्स की स्टूडेंट बताने के साथ-साथ मिथिलांचल इलाके से होने के कारण वह खुद को मैत्रेयी-गार्गी-भारती जैसी महान ज्ञान और शास्त्रार्थ परंपरा की वाहक भी बताती हैं।
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