Bihar Assembly Elections 2020: 15 साल में कितना कम हुआ 'जंगल राज' ?
नई दिल्ली- बिहार में कथित 'जंगल राज' के खिलाफ नारा बुलंद करके नीतीश कुमार की सरकार बने 15 साल हो चुके हैं। आइए समझते हैं कि इन डेढ़ दशकों में बिहार की राजनीति में बाहुबली नेताओं (आपराधिक छवि वाले नेताओं ) के दबदबे पर क्या असर पड़ा है। क्योंकि, जिस वजह से लालू-राबड़ी के शासनकाल को उनके विरोधियों ने 'जंगल राज' का नाम दिया था, उसके पीछे भी तब बाहुबलियों का बिहार के शासन-प्रशासन पर दखल ही सबसे बड़ा कारण माना जाता था। मोहम्मद शहाबुद्दीन जैसे कुख्यात अपराधी जेल से ही सरकार चलाते थे और उसके विरोधियों के आरोपों के मुताबिक नेता-मंत्री को भी उसे रोकने की हिम्मत नहीं थी।
बिहार को लेकर एक आम भावना ये है कि नीतीश के कार्यकाल में कानून-व्यवस्था में उनकी पहले की सरकारों के मुकाबले निश्चित तौर पर सुधार आया है। लेकिन, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ताजा रिपोर्ट से पता चलता है कि 28 अक्टूबर को पहले फेज की 71 सीटों पर जो चुनाव हो रहे हैं, उनमें 30 फीसदी उम्मीदवारों ने खुद पर आपराधिक मुकदमे लंबित होने की जानकारी दी है। 23 फीसदी उम्मीदवारों ने तो खुद पर बेहद गंभीर आपराधिक केस दर्ज होने की बात मानी है। ये ऐसे गैर-जमानती मामले हैं, जिनमें 5 साल या उससे अधिक सजा का प्रावधान है और जिनमें दोषी साबित होने पर उनके चुनाव लड़ने पर भी पाबंदी लग सकती है।
अगर बीते 15 वर्षों के दौरान प्रदेश में हुई लोकसभा और विधानसभा चुनावों में उम्मीदवारों के बैकग्राउंड का विश्लेषण करें तो कुल 10,785 उम्मीदवारों में से 30 प्रतिशत के खिलाफ आपराधिक केस थे, जिनमें से करीब 20 फीसदी के खिलाफ गंभीर आपराधिक धाराओं के तहत मुकदमे पेंडिंग थे। इस अवधि में बिहार में जितने आपराधिक छवि वाले नेता विधायक या सांसद के तौर पर चुने गए, उनमें से 57 फीसदी के खिलाफ आपराधिक केस दर्ज थे। उनमें से भी 36 फीसदी पर बेहद ही संगीन आपराधिक मुकदमे चल रहे थे। ये आंकड़े यह जाहिर करने के लिए काफी हैं कि सियासी दल चाहे राजनीति को अपराध-मुक्त बनाने के जितने भी दावे करें, जब बारी चुनावों की आती है तो वह सिर्फ उनकी जीत की क्षमता देखते हैं। राष्ट्रीय जनता दल ने तो आपराधिक छवि वाले नेताओं को टिकट देने के बारे में आधिकारिक तौर पर सफाई भी यही दी है कि उनके जीतने की संभावना को देखकर ही टिकट दिया गया है।
बिहार में पहले दौर के चुनाव में जो 1,000 से ज्यादा उम्मीदवार मैदान में हैं, उनमें 300 से ज्यादा के खिलाफ आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं। सियासत के अपराधीकरण के हालात कितने गंभीर हैं, यह इसी से पता चलता है कि 164 उम्मीदवारों के खिलाफ हत्या, हत्या की कोशिश, बलात्कार, रंगदारी और अपहरण जैसे संगीन मामले दर्ज हैं। आपराधिक छवि वाले कई उम्मीदवार खुद ही सियासी भाग्य आजमा रहे हैं तो कुछ ने अपना डमी चेहरा खड़ा कर रखा है। इनमें से कई ऐसे नाम हैं, जिनकी पहचान ही उनके बाहुबल की वजह से रही है। यहां कुछ चर्चित नामों का जिक्र कर रहे हैं, जिनपर राजनीतिक दलों ने इसलिए दांव लगाया है कि उनका आपराधिक बैकग्राउंड ही उनकी जीत की गारंटी साबित हो सकती है।
मसलन, मोकामा से राजद उम्मीदवार अनंत सिंह पर हत्या, रंगदारी, अपहरण और अवैध हथियार रखने जैसे 38 मुकदमे दर्ज हैं। लेकिन, आरजेडी ने उनकी मोकामा से जीतने की क्षमता को ही उनकी योग्यता माना है। ये मोकामा से सीटिंग विधायक हैं और पटना के बेऊर जेल में बंद हैं। राजद से एक दूसरा नाम है दानापुर से पार्टी उम्मीदवार रीतलाल यादव का। उनके खिलाफ हत्या, रंगदारी और मनी लॉन्ड्रिंग समेत 33 आपराधिक मामले दर्ज हैं। वो 2003 के बीजेपी पार्षद सत्यनारायण सिन्हा की हत्या के केस में मुख्य आरोपी हैं। उनका मुकाबला इसी सीट से मौजूदा और तीन बार की भाजपा विधायक आशा सिंह के साथ है, जो सत्यनारायण सिन्हा की पत्नी हैं।
राजद के आपराधिक छवि वाले उम्मीदवारों में अगला नाम अजय यादव का है, जो अतरी से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके खिलाफ आपराधिक वारदातों के 14 केस दर्ज हैं। जदयू ने उनके खिलाफ मनोरमा देवी को टिकट दिया है, जिनकी पहचान ये है कि वह एक दिवंगत बाहुबली नेता बिंदेश्वरी प्रसाद यादव की पत्नी हैं। कुछ साल पहले इनका बेटा रोड रेज की वारदात के बाद सुर्खियों में आया था, जिसके चलते जदयू ने मनोरमा को तब सस्पेंड कर दिया था। लेकिन, जब चुनाव का वक्त आया तो सत्ताधारी पार्टी ने सबकुछ भुलाकर उन्हें फिर से जनता का प्रतिनिधि बनने का मौका दे दिया है।
इसी तरह बक्सर की ब्रह्मपुर सीट से लोजपा उम्मीदवार हुलास पांडे पर भी हत्या, हत्या की कोशिश और जबरन उगाही के मुकदमे लंबित हैं। उनकी पहचान ये है कि वो एक और बाहुबली राजनेता सुनील पांडे के छोटे भाई हैं। जदयू ने गया की बेलागंज सीट से अभय कुशवाहा पर दांव लगाया है। उनके सियासी टैलेंट में भी 14 आपराधिक मुकदमे शामिल हैं। नवादा सीट पर राजद ने विभा देवी पर दांव खेला है। उनकी टिकट पाने की योग्यता ये है कि उनके पति और पूर्व आरजेडी विधायक राजबल्लभ यादव रेप केस में सजायाफ्ता मुजरिम हैं और इसके चलते दिसंबर, 2018 में उनकी सदस्यता रद्द की जा चुकी है। इसी तरह राजद ने संदेश विधानसभा क्षेत्र से किरण देवी को उतारा है। उनकी सियासी विशेषता ये है कि वह राजद के सीटिंग एमएलए अरुण यादव की पत्नी हैं। ये पार्टी का ऐसा विधायक है, जिसके खिलाफ बलात्कार का आरोप है और इसलिए वह फरार है।
राजद ने एक और सजायाफ्ता मुजरिम आनंद मोहन सिंह की पत्नी और बेटे को भी इस चुनाव में टिकट दिया है। लवली आनंद सहरसा और उनके बेटे चेतन आनंद शिवहर से प्रत्याशी हैं। यहां उसी आनंद मोहन की बात हो रही है, जो 1994 में गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी कृष्णैया हत्याकांड (लिंचिंग केस) में सहरसा जेल में उम्रकैद की सजा काट रहा है। आरजेडी में आपराधिक छवि वाले उम्मीदवारों की फेहरिस्त यहीं खत्म नहीं होती। उसने राघोपुर की बगल की सीट महनार से वीना देवी को टिकट थमाया है, जो एक और बाहुलबली नेता राम किशोर सिंह उर्फ रामा सिंह की पत्नी हैं। ये वही रामा सिंह हैं, जिनकी राजद में एंट्री के खिलाफ वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद ने लालू यादव को भावुक चिट्ठी लिखकर पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। इसके कुछ दिन बाद ही उनका निधन हुआ था। जानकारी के मुताबिक पार्टी में रघुवंश बाबू के विरोध के बावजूद रामा सिंह की बैकडोर से एंट्री इसलिए करवाई गई है, ताकि राघोपुर सीट तेजस्वी यादव की जीत को फंसा ना दे।
इसी तरह जदयू ने बाहुबली मनोरंजन सिंह धूमल की पत्नी सीता देवी को सारण की एकमा और पूर्णिया की रुपौली सीट से बाहुलबली नेता अवधेश मंडल की पत्नी बीमा भारती को टिकट दिया है। यही नहीं बीजेपी ने भी नवादा सीट से बाहुबली अखिलेश सिंह की पत्नी अरुणा देवी को उम्मीदवार बनाया है। अखिलेश सिंह के खिलाफ करीब 25 आपराधिक केस दर्ज हैं। उनपर चकवाई गांव सामूहिक नरसंहार का भी आरोप है। नवादा जिले में 2004 में हुई इस घटना में 10 लोगों की एक साथ हत्या कर दी गई थी।
गौरतलब है कि 2005 के विधानसभा चुनाव में जब नीतीश की अगुवाई वाले एनडीए गठबंधन ने प्रदेश से 'जंगल राज' मिटाने का वादा किया था, तब एडीआर के आंकड़े के मुताबिक 39 फीसदी उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे लंबित पड़े थे।