बिहार: सरकार चला रही जदयू-भाजपा के बीच क्या बढ़ने लगी हैं दूरियाँ?
अरुणाचल में जदयू के सात में से छह विधायकों के बीजेपी में शामिल होने से बिहार में जदयू नेतृत्व नाख़ुश है.
अरुणाचल प्रदेश में हुए पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए जदयू ने सात सीटें जीती थीं. लेकिन, अब उनमें से छह विधायक भाजपा में शामिल हो गए हैं.
इससे बिहार से बाहर अपना आधार मज़बूत करने की कोशिशों में लगी जदयू को बड़ा झटका लगा है. पार्टी का शीर्ष नेतृत्व इससे इतना आहत हुआ कि सार्वजनिक रूप से भाजपा पर गठबंधन धर्म नहीं पालन करने के आरोप लगा रहा है.
बिहार में गठबंधन की सरकार चला रही जदयू और भाजपा के बीच रिश्ते में पिछले तीन-चार दिनों से आई तल्ख़ियों में अरुणाचल प्रदेश की घटना का असर साफ़ दिख रहा है. इस मुद्दे पर दोनों के बीच दूरियाँ बढ़ गई हैं.
जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में अरुणाचल प्रदेश की घटना चर्चा के केंद्र में रही और उसका असर पार्टी के नए फ़ैसलों में भी देखने को मिला चाहे वह आरसीपी सिंह को नया राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाना हो या फिर पश्चिम बंगाल में पूरी ताक़त के साथ चुनाव लड़ने का निर्णय हो.
भाजपा नहीं निभा रही "अटल धर्म"!
जदयू ने बीजेपी पर अरुणाचल प्रदेश के अपने विधायकों को तोड़ने का आरोप लगाया है.
राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद जदयू के प्रधान महासचिव केसी त्यागी ने कहा, "जदयू विधायकों को मंत्रिपरिषद में शामिल करने की बजाय पार्टी में शामिल कर लिया गया, जबकि जदयू ने बिहार में ऐसा कभी नहीं किया है. अरुणाचल प्रदेश की घटना से पार्टी आहत है."
त्यागी कहते हैं, "अरुणाचल प्रदेश का मामला गठबंधन की राजनीति के लिए ठीक नहीं है. भाजपा के साथ हमारा गठबंधन अटल बिहारी वाजपेई के समय से है. भाजपा को अटल धर्म का पालन करना चाहिए."
केसी त्यागी के मुताबिक़ अब जदयू केंद्रीय मंत्रिपरिषद में संख्या के अनुपात में उचित प्रतिनिधित्व चाहता है. जदयू की तरफ़ से ऐसी चाहत पहली बार दिखाई गई है.
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आरसीपी सिंह का अध्यक्ष बनना भाजपा के लिए अच्छा या बुरा!
जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में आरसीपी सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना जाना सबको चौंकाने वाला फ़ैसला था.
कहा जा रहा है कि आरसीपी सिंह के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से नुक़सान भाजपा को है क्योंकि अब उसे जदयू से किसी भी तरह की बातचीत के लिए पहले आरसीपी के पास जाना होगा. जबकि पहले सीधे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से ही बात बात करने की ज़रूरत थी.
हालाँकि, वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर इससे इतर कहते हैं, "आरसीपी सिंह का भाजपा के साथ शुरू से अच्छा संबंध रहा है. याद करिए एक समय था जब आरसीपी को केंद्रीय मंत्री परिषद में शामिल करने की बात चल रही थी. मुझे लगता है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने में भाजपा के साथ उनके अच्छे संबंधों की भूमिका ही सबसे अहम रही."
मणिकांत ठाकुर यह भी कहते हैं, "सुशील मोदी के केंद्र में चले जाने के बाद बिहार की राजनीति में एक जगह ख़ाली हो गई थी. आरसीपी सिंह वह जगह भरने का काम करेंगे. क्योंकि जिस तरह सुशील मोदी नीतीश कुमार को स्वीकार्य थे, उसी तरह आरसीपी भाजपा को स्वीकार्य हैं."
भाजपा को लेकर क्या कहते हैं आरसीपी सिंह?
जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद आरसीपी सिंह ने अपने विरोधियों के साथ-साथ सहयोगियों को भी निशाने पर लिया. उनका इशारा साफ़ तौर पर बीजेपी की ओर था.
आरसीपी सिंह ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में कहा, "हम जिनके साथ रहते हैं, पूरी ईमानदारी के साथ रहते हैं. हमारे संस्कार को कोई हमारी कमज़ोरी न समझे. हम साज़िश नहीं रचते न ही किसी को धोखा देते हैं, सहयोगी के प्रति हम हमेशा से ईमानदार रहते हैं."
वे कहते हैं, "जब भी काम करने का मौक़ा मिलता है, हम काम करते हैं. कोई ऐसा फ़ील्डर नहीं है, जो हमें कैच कर लेगा. अब पूरे देश में पार्टी का विस्तार किया जाएगा. किसी को छूरा भोंकने का मौक़ा अब नहीं देंगे."
अरुणाचल प्रदेश में जदयू के विधायकों के पाला बदलने के बारे में चर्चा करते हुए राज्यसभा सांसद ने कहा, "इस तरह का अवसर आगे नहीं आए, ये तय करने की कोशिश करेंगे."
जैसा कि वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर कहते हैं, "आरसीपी सिंह के भाजपा से अच्छे संबंध हैं", उसकी झलक उनके बयान में भी देखने को मिली. शायद इसलिए उन्होंने सीधे भाजपा के ख़िलाफ़ कुछ नहीं कहा, जबकि उनकी पार्टी के नेता लगातार हमलावर हैं."
बन रही दूरियों के संकेत?
अरुणाचल प्रदेश की घटना के बाद से बिहार की राजनीति और सरकारी काम-काज में लगातार ऐसे मौक़े आ रहे हैं जब बीजेपी और जदयू के बीच बढ़ती दूरियां देखने को मिलीं.
हाल ही में केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद की माँ का देहांत हुआ था. तब तक अरुणाचल की घटना भी सुर्ख़ियों में आ चुकी थी.
नीतीश कुमार रविशंकर प्रसाद की माँ के निधन पर उनके घर नहीं गए जबकि अभी तक ऐसा बहुत कम ही बार हुआ है, जब नीतीश कुमार इस तरह के मौक़ों पर अपने सहयोगी दल के नेताओं के घर न जाते हों. यहाँ तक कि नीतीश इन मौक़ों पर विपक्षी दलों के नेताओं से भी मिलने जाते रहे हैं. स्थानीय मीडिया में इस बात की भी बहुत चर्चा है.
इसके अलावा शुक्रवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बीजेपी के विभागीय मंत्री मंगल पांडेय को अपने साथ लिए बिना ही लोहिया चक्र निरीक्षण किया. ऐसा भी बहुत कम ही देखने को मिलता है कि विभाग के मंत्री को साथ लिए बिना मुख्यमंत्री ने किसी विभाग की योजना का निरीक्षण किया हो.
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लव जिहाद पर बीजेपी-जदयू आमने सामने
बीजेपी और जदयू के बीच दूरियां केवल संबंधों में नहीं बल्कि विचारों में भी आ गई हैं.
इस वक़्त प्रदेश भाजपा यूपी में लागू हुए लव जिहाद क़ानून को बिहार में भी लागू करने की वकालत कर रही है. भाजपा और उसके सहयोगी संगठन इसके लिए सड़क पर निकलकर प्रदर्शन भी कर चुके हैं.
लेकिन, बिहार सरकार में भाजपा की सहयोगी पार्टी जदयू इस क़ानून के ख़िलाफ़ है.
जनता दल यूनाइटेड के नेता केसी त्यागी ने लव जिहाद पर कहा, "देश में 'लव जिहाद' के नाम पर नफ़रत और विभाजन का माहौल बनाया जा रहा है. संविधान और सीआरपीसी के प्रावधान दो वयस्कों को अपनी पसंद के जीवन साथी चुनने की स्वतंत्रता देते हैं. फिर चाहे वो किसी भी धर्म अथवा जाति से संबंध रखते हों."
अरुणाचल की घटना पर क्या कहती है भाजपा?
अरुणाचल प्रदेश में जदयू विधायकों के भाजपा में शामिल होने की चर्चा तो हर तरफ़ है, मगर बिहार भाजपा के नेता इस पर कुछ भी कहने से बच रहे हैं.
प्रदेश भाजपा प्रवक्ता प्रेमरंजन पटेल बीबीसी से कहते हैं, "अरुणाचल प्रदेश में जो भी जदयू के विधायक हमारी पार्टी में आए हैं, उन्होंने स्वयं आग्रह किया था. जहां तक बात गठबंधन धर्म की है तो हमारा जदयू के साथ गठबंधन बिहार में है, अरुणाचल में नहीं. बिहार में हम बख़ूबी गठबंधन धर्म का पालन कर रहे हैं."
जदयू के साथ बढ़ी तल्ख़ियों को लेकर प्रेमरंजन पटेल ने कहा, "यहां कोई तल्ख़ी नहीं है. हम नीतीश कुमार के नेतृत्व में कुशलता के साथ सरकार चला रहे हैं. हो सकता है कि वे किसी ज़रूरी कार्यक्रम में व्यस्त हों इसलिए रविशंकर जी के यहां नहीं जा पाए. अभी श्राद्ध का कार्यक्रम बाक़ी है."
हालांकि, प्रेम रंजन पटेल ने आने वाले दिनों में लव जिहाद क़ानून को बिहार में हर हाल में लागू कराने की बात कही.
अरुणाचल की घटना क्या असर करेगी?
हाल ही में संपन्न चुनाव के बाद बहुत आराम से बिहार की सरकार चला रही भाजपा और जदयू के बीच ये तल्ख़ियां अरुणाचल प्रदेश की घटना के बाद ही आई हैं. ऐसे में आने वाले वक़्त में इसका क्या और कितना असर होगा?
वरिष्ठ पत्रकार फ़ैज़ान अहमद कहते हैं, "असल में अरुणाचल प्रदेश के अंदर जो कुछ हुआ, वह बिहार चुनाव परिणामों का असर था. ज़्यादा संख्या बल के साथ भाजपा इस सरकार में शुरू से हावी रही है. अरुणाचल प्रदेश के ज़रिए उसने जदयू को यह संदेश भी दे दिया है कि उनके विधायकों को अपने पाले में करना भाजपा के लिए कोई मुश्किल का काम नहीं है. आप कह सकते हैं कि नीतीश कुमार भाजपा के रहमो-करम पर मुख्यमंत्री बने हुए हैं."
उधर नीतीश कुमार ने भी अपने मुख्यमंत्री होने को लेकर बयान दिया है, "इस बार मुख्यमंत्री बनने की मेरी ज़रा भी इच्छा नहीं थी. लेकिन मुझ पर दबाव डाला गया तो मैंने इसे स्वीकार कर लिया."
नीतीश ने कहा है, "मुख्यमंत्री कोई भी बने, किसी को भी बना दिया जाए, मुझे इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. इस पद पर बने रहने की मेरी तनिक भी इच्छा नहीं है."
क्या बंगाल के चुनाव में दिखेगा असर?
अरुणाचल प्रदेश में जदयू विधायकों के पाला बदलने के बाद से बिहार की राजनीति दिलचस्प हो गई है. भाजपा से आहत हुई जदयू का अगला स्टैंड क्या होगा, इस पर विपक्षी दलों की भी नज़र है.
जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में इस बात पर भी सहमति बनी है कि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में पार्टी कम से कम 75 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और उन सीटों पर ख़ासतौर पर लड़ेगी जहां से बीजेपी के उम्मीदवार मज़बूत माने जाएंगे.