भीमा कोरेगांव हिंसा : पुलिस ने पांचों आरोपियों के खिलाफ दाखिल की चार्जशीट
नई दिल्ली। भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में पुलिस ने चार्जशीट दायर कर दी है। पुणे पुलिस ने पांच आरोपियों के खिलाफ पुणे सेशन कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की है। भीमा कोरेगांव मामले में पांच आरोपी वकील सुरेंद्र गाडलिंग, शोमा सेन, महेश राउत, सुधीर धावले और रोना विल्सन के खिलाफ पुणे पुलिस ने पुणे सत्र न्यायालय में चार्जशीट दायर की है। गौरतलब है कि गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत पुणे पुलिस ने कथित माओवादी संपर्कों के चलते अधिवक्ता सुरेंद्र गाडलिंग, नागपुर विश्वविद्यालय में प्राध्यापक शोमा सेन, दलित कार्यकर्ता सुधीर धावले, कार्यकर्ता महेश राउत और केरल के निवासी रोना विल्सन को जून में गिरफ्तार किया था।
इससे पहले बॉम्बे हाई कोर्ट ने कथित नक्सल समर्थक गौतम नवलखा, प्रोफेसर आनंद तेलतुंबडे और पादरी स्टेन स्वामी को राहत देते हुए 21 नवंबर तक गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। बता दें कि 2 नवंबर को हुई सुनवाई के दौरान पुणे पुलिस की ओर से दर्ज मामलों को रद्द करने की मांग को लेकर नवलखा, प्रोफेसर आनंद और स्वामी ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। हाईकोर्ट ने कहा, 'मामले से संबंधित कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। लिहाजा, सुप्रीम कोर्ट के आदेश का इंतजार करना होगा।'
Entire campaigning for Elgaar Parishad and speeches delivered at Elgaar Parishad had aggravated Bhima Koregaon violence. Around 80 witnesses have been examined: Pune Police submits in it's chargesheet https://t.co/iXi3g48LRg
— ANI (@ANI) November 15, 2018
क्या हुआ था और क्यों भड़की थी हिंसा
भीम-कोरेगांव महाराष्ट्र के पुणे जिले में है। इस छोटे से गांव से मराठा का इतिहास जुड़ा है। 1 जनवरी, 1818 को ईस्ट इंडिया कपंनी की सेना ने पेशवा की बड़ी सेना को कोरेगांव में हरा दिया था। पेशवा की सेना का नेतृत्व बाजीराव II कर रहे थे। बाद में इस लड़ाई को दलितों के इतिहास में एक खास जगह मिल गई। साल 2018 इस युद्ध का 200वां साल था। ऐसे में इस बार यहां भारी संख्या में दलित समुदाय के लोग जमा हुए थे।
जश्न के दौरान दलित और मराठा समुदाय के बीच हिंसक झड़प हुई थी। इस दौरान इस घटना में एक शख्स की मौत हो गई, जबकि कई लोग घायल हो गए थे। इस बार यहां दलित और बहुजन समुदाय के लोगों ने 'एल्गार परिषद' के नाम से शनिवार वाड़ा में कई जनसभाएं की। शनिवार वाड़ा 1818 तक पेशवा की सीट रही है। जनसभा में मुद्दे हिन्दुत्व राजनीति के खिलाफ थे। इस मौके पर कई बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाषण भी दिए थे और इसी दौरान अचानक हिंसा भड़क उठी।