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जन्‍म के बाद नवजात में न थी धड़कन और ना ही चल रही थी सांस, डाक्‍टरों ने ऐसे दिया नया जीवन

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बेंगलुरु, 11 मई। डाक्‍टरों को ऐसे ही नहीं धरती का भगवान का कहा जाता है, बेंगलुरु के प्राइवेट अस्‍पताल के डाक्‍टरों ने ऐसा ही कारनामा कर दिखाया है। जिसके बाद लोग डाक्‍टरों की जमकर तारीफ कर रहे हैं। बेंगलुरु के रेनबो चिल्‍ड्रेन हॉस्पिटल में एक बहुत ही अचंभित करने वाला मामला सामने आया है। दरअसल, अस्‍पताल में एक ऐसे बच्‍चे का जन्‍म हुआ जो जन्‍म के बाद न तो सांस ले रहा था और ना ही उनकी धड़कन चल रही थी लेकिन डाक्‍टरों ने उसका समय रहते इलाज कर उसकी जान बचा ली।

जन्‍म के 11 मिनट तक नवजात ने नहीं ली सांस

जन्‍म के 11 मिनट तक नवजात ने नहीं ली सांस

बेंगलुरू के रेनबो चिल्ड्रेन हॉस्पिटल में जन्‍में बच्‍चे का केस दुर्लभ है। जन्‍म के बाद नवजातसांस भी नहीं ले रहा था और न ही उसकी धड़कन चल रही थी और तो और जन्‍म के 11 मिनट बाद तक बच्‍चा न ही रोया और ना ही कोई हरकत किया, लेकिन रेनबो अस्‍पताल के डाक्‍टरों ने हिम्‍मत नही हारी उन्‍होंने तुरंत नजजा को कूलिंग थैरेपी दी जो सफल रही और बच्‍चे की जान बच गई।

APGAR score से बच्‍चे की कंडीशन का पता लगाया गया

APGAR score से बच्‍चे की कंडीशन का पता लगाया गया

हॉस्पिटल के कंसल्टेंट डॉ. प्रदीप कुमार ने बताया कि जन्म के तुरंत बाद APGAR score में ये पता चल गया था कि उस बच्‍चे की हालत नाजुक थी। जिसके बाद हमने सबसे पहले रिससिटेशन तकनीकी से इलाज किया जिसके 1 मिनट के बाद ही बच्‍चे का दिल धड़कना शुरू हो गया जिससे हमारी उम्मीद और जागी क्‍योंकि बच्‍चे ने जन्‍म के 11 मिनट बाद सांस ली जब उसकी धड़कन सामान्‍य हुई तो हमने उसका बाकी ट्रीटमेंट शुरू किया।

जानें नवजात की क्यों हुई ये दुर्लभ कंडीशन

जानें नवजात की क्यों हुई ये दुर्लभ कंडीशन

नवजात में ऐसी स्थिति प्रेग्नेंसी के दौरान मां में ब्लड सर्कुलेशन की कमी के कारण होती है। मां में ब्लड सर्कुलेशन सही न होने का असर गर्भनाल के जरिए बच्चे पर पड़ता है जिसके कारण उसमें ऑक्‍सीजन की कमी हो जाती है। डॉ. प्रदीप कुमार ने बताया कि ये बच्‍चा भी इस दुर्लभ कंडीशन से लड़ रहा था। उन्‍होंने बताया कि महज 2 फीसदी में ये समस्‍या सामने आती है। वैज्ञानिक भाषा में इसे हायपॉक्सिक इस्केमिक एनसेफेलोपैथी स्टेज-2 कहते हैं।

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थैराप्यूटिक हाइपोथर्मिया तकनीक से नवजात का किया गया इलाज

थैराप्यूटिक हाइपोथर्मिया तकनीक से नवजात का किया गया इलाज

नवजात को ये समस्‍या है इसका पता चलते ही अस्‍पताल के एक्‍सपर्ट डॉक्‍टरों ने थैराप्यूटिक हाइपोथर्मिया मेथड की मदद से नवजात का इलाज किया। इसे कूलिंग थैरेपी भी कहते हैं। जिससे बच्‍चे की जान बचा पाए। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सुषमा कल्याण का कहना है, नवजात को 72 घंटे तक बच्‍चे को कूलिंग थेरेपी के अंतर्गत ठंडे माहौल में रखा गया। इसके बाद बाद धीरे-धीरे 12 घंटे तक तापमान बढ़ाया गया। इस दौरान बच्‍चे की एक्‍टीविटी पर नजर रखी गई। एमआरआई जांच में नवजात जब पूरी तरह स्‍वस्‍थ्‍य दिखाई दिया तब उसे अस्‍पताल से डिस्‍चार्ज किया गया।

APGAR score क्‍या होता है

APGAR score क्‍या होता है

ये जांच जन्‍म के तुरंत बाद की जाती है। इससे नवजात बच्‍चे की हार्ट बीट,हार्ट रेट और बच्‍चे की मांसपेशियों की मजबूती समेत बॉउी की कंडीशन को जांचा जाती है। नवजात की ये जांच जन्‍म के बाद दो बार की जाती है जिसमें पहली जांच 1 मिनट बाद और दूसरी 5 मिनट बाद की जाती है।

English summary
At the time of birth, the newborn's breath was neither heartbeat nor doctors saved lives by cooling therapy; First breath after 11 minutes
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