अयोध्या राम मंदिरः अदावत के बाद अब शहादत मोड में आए मुस्लिम!
बेंगलुरू। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने 6 अगस्त, 2019 को अयोध्या राम मंदिर विवाद पर सुनवाई शुरू की है और अब जब ट्रायल पूरे होने में महज 5 दिन शेष रह गए हैं, तो एक बार कोर्ट से बाहर मुद्दे पर मध्यस्थता की कवायद शुरू हो गई है। यह कवायद मुस्लिमों के सेक्शन द्वारा शुरू की गई है।
मुस्लिम फॉर पीस संस्था ने विवादित परिसर पर चर्चा के लिए लखनऊ में एक मीटिंग बुलाई थी. बताया जाता है इस मीटिंग में इत्तेहादे मिल्लत कौंसिल के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना तौकीर रजा खां समेत कई उलेमा और मुस्लिम धर्मगुरू शामिल हुए और सभी ने एकराय होकर प्रस्ताव पास किया कि विवादित भूमि केंद्र सरकार को दी जानी चाहिए।
इस दौरान मीटिंग में जमा हुए मुस्लिम उलेमाओं और धर्मगुरूओं ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्ष जीत भी जाए तो भी अयोध्या का विवादित जमीन राम मंदिर के लिए दे दी जाए। इस दौरान उलेमाओं और मुस्लिम धर्म गुरूओं ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हर हाल में स्वागत होगा, लेकिन बेहतर होगा कि मामले का हल आपसी मध्यस्थता और सुलह से हो।
इसके अलावा उन्होंने सरकार से अपील की है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पूर्व मुस्लिमों के अन्य धार्मिक स्थलों की सुरक्षा सुनिश्चित करे। मालूम हो, 17 अक्टूबर को अयोध्या राम मंदिर विवाद की सुनवाई पूरी हो जाएगी और माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट एक माह बाद यानी 17 नंबवर तक अपना फैसला सुना सकती है।
मध्यस्थता मीटिंग में शामिल रिटायर्ड आईएएस अनीस अंसारी ने कहा कि मध्यस्थता के जरिए ही अयोध्या मामले को हल करना चाहिए और विवादित जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड के जरिए केंद्र सरकार को सौंप दी जाए और मस्जिद के लिए अलग जगह दी जाए। उन्होंने आगे कहा कि जिन्होंने मस्जिद को शहीद किया, उन्हें जल्द सजा मिले। अयोध्या में दूसरी मस्जिदों के रखरखाव की मंजूरी मिले। लेकिन जब तक सभी पक्ष राजी नहीं होंगे, मामला हल नहीं होगा, क्योंकि देश का एक बड़ा तबका चाहता है कि मामले को सुलह के जरिए सुलझाया जाए।
वहीं, पूर्व मंत्री मोईद अहमद ने कहा कि मीटिंग में रखे गए प्रस्तावों को सेटेलमेंट कमिटी के पास भेजेंगे, क्योंकि अगर मोहब्बत के लिए मस्जिद की जगह छोड़ते हैं तो किसी को क्या दिक्कत हो सकती है। यह सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन को प्रस्ताव भेजा जाएगा, जो विवादित परिसर को लेकर हमेशा आक्रामक रही है।
हालांकि मुस्लिम फॉर पीस संस्था के सुलह के प्रयासों तब पलीता लग गया जब उनके मध्यस्थता के विरोध में इंडियन मुस्लिम लीग ने हजरतगंज स्थित गांधी प्रतिमा पर धरना दिया। मुस्लिम लीग नेता मतीन खान ने कहा कि, कुछ लोग बाबरी मस्जिद की सौदागरी करने पर अमादा हैं। हम कौम की अमानत बाबरी मस्जिद को कतई गिफ्ट नहीं करने देंगे। यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है। कोर्ट में छह पार्टी हैं, पांच पार्टियों ने माना है कि, हम सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को मानेंगे। एक सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड इस बात को नहीं मान रहा है। बोर्ड नहीं, चेयरमैन नकार रहे हैं।
दरअसल, इंडियन मुस्लिम फॉर पीस नामक संगठन ने करोड़ों हिन्दुओं की आस्था को देखते हुए विवादित जमीन राम मंदिर निर्माण के लिए देने का प्रस्ताव किया था। हालांकि इस दौरान कुल चार प्रस्ताव पारित किए गए, जिन्हें बाबरी मस्जिद के पक्षकार सुन्नी वक्फ बोर्ड के जरिए सुप्रीम कोर्ट की मध्यस्थता कमेटी को भेजा जाएगा। संगठन ने प्रस्ताव को विवाद के हल की कोशिश के तहत बनाया है।
बैठक अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति ले.जनरल जमीरुद्दीन शाह की अध्यक्षता में हुई, जिन्होंने ही मीटिंग में कहा कि अगर मुस्लिम सुप्रीम कोर्ट से मुकदमा जीत भी गए तो वहां पर मस्जिद नहीं बना पाएंगे, क्योंकि अदालतें लोगों के जज्बात से बड़ी नहीं होती हैं। वतन में भाईचारा बनाए रखने और अमन के लिए जमीन उपहार के तौर पर हिन्दू भाइयों को दे देनी चाहिए।
उल्लेखनीय है इंडियन मुस्लिम फॉर पीस द्वारा आहुत बैठक में किसी उलमा को नहीं बुलाया गया था, क्योंकि ज्यादातर उलमा मध्यस्थता के पक्ष में नहीं है। बताया जाता है इस मुद्दे को लेकर करीब 10 हजार लोगों से बात की गई है। ज्यादातर लोग चाहते हैं कि जमीन हिन्दू पक्ष को दे दी जाए। हालांकि लोग सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहे हैं, यह उनका नजरिया है, लेकिन इंडियन मुस्लिम फॉर पीस चाहता है कि यह फैसला कोर्ट के बाहर हो। बैठक में सेवानिवृत्त आईपीएस विभूति नारायण राय, पूर्व मंत्री मोईद अहमद, डॉ मंसूर हसन भी मौजूद थे।
हालांकि इससे पहले भी अयोध्या में अतिशीघ्र श्री राम जन्मभूमि स्थान पर राम मंदिर निर्माण के समर्थन में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की सदस्यों ने मेरठ कलेक्ट्रेट में धरना दिया था और जिलाधिकारी के माध्यम से राष्ट्रपति को भेजे ज्ञापन में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की वकालत की थी। यह धरना मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की महिला प्रकोष्ठ की संयोजिका शाहिन परवेज़ के नेतृत्व में दिया गया, जिसमें अति शीघ्र मंदिर निर्माण कराने की मांग की गई थी।
यह भी पढ़ें- अयोध्या: विवादित जमीन पर भगवान राम का मंदिर चाहते हैं मुस्लिम बुद्धिजीवी, बताई वजह
कोर्ट के बाहर मसले का हल करने को तैयार
पूर्व न्यायाधीश बीडी नकवी ने कहा कि हाल ही में राम मंदिर के पक्षकार निर्मोही अखाड़े से भी बात हुई है। उन्होंने कहा, बाबरी मस्जिद को लेकर हिन्दू पक्ष की विचारधारा बन चुकी है कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई है। मुसलमानों को चाहिए कि वह इस विचारधारा को खत्म करें। इसके लिए भले ही उन्हें बाबरी मस्जिद की जमीन उपहार के तौर पर हिन्दू पक्ष को देनी पड़े। रिटायर आईपीएस विभूति नारायण राय ने कहा कि देश में अमन व शांति के लिए इस मसले का हल कोर्ट के बाहर मोहब्बत से होना चाहिए।
बड़ा तबका चाहता है सुलह से सुलझे मुद्दा
उत्तर प्रदेश के पूर्व एपीसी व रिटायर आईएएस अफसर अनीस अंसारी ने अयोध्या राम मंदिर विवाद को देश का सबसे गंभीर साम्प्रदायिक मामला बताते हुए कहा कि इसका हल आपसी बातचीत के जरिए ही निकाला जाए। उन्होंने कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन जफर फारूकी व सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से सुप्रीम कोर्ट को प्रस्ताव भेजा गया है कि बाबरी मस्जिद व राम जन्मभूमि मामले को हल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की जो पहल कोर्ट के बाहर चल रही है, उसमें वह शामिल होना चाहते हैं।
बैठक में पास हुए चार प्रस्ताव पर हुआ विचार
1-कोर्ट
के
बाहर
मंदिर
मस्जिद
मसले
का
हल
हो
2-मस्जिद
बनाने
के
लिए
कोई
अच्छी
जगह
दी
जाए।
3-प्रोटेक्शन
ऑफ
रिलीजन
कानून
1991
के
तहत
तीन
महीने
की
सजा
को
बढ़ाकर
3
साल
या
उम्र
कैद
तक
किया
जाए।
4-अयोध्या
के
रास्ते
में
जितनी
भी
मस्जिदें,
दरगाह
या
इमामबाड़े
हैं,
उनकी
मरम्मत
की
सरकार
इजाजत
दे।
बैठक के विरोध में लखनऊ ने धरना-प्रदर्शन
बैठक का कुछ मुस्लिम संगठनों ने विरोध किया। इसमें इत्तेहादुल मुस्लिम मजालिस संगठन प्रमुख है, जिसने होटल के बाहर प्रदर्शन किया। संगठन का कहना है कि 18 अक्तूबर तक उच्चतम न्यायालय में मामले की सुनवाई होनी है। ऐसे में मध्यस्थता का क्या मतलब है। कुछ लोग सिर्फ अपनी रोटियां सेंकने के लिए आम लोगों को बहका रहे हैं। वहीं, इंडियन मुस्लिम लीग ने भी गांधी प्रतिमा पर प्रदर्शन किया। संगठन के मोहम्मद अतीक ने कहा कि इंडियन मुस्लिम फॉर पीस की उक्त कवायद बाबरी मस्जिद के नाम पर महज एक सौदेबाजी है।