नीतीश के काफ़िले पर हमला, नाराज़गी या साज़िश?
बक्सर के नंदन गांव में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के काफ़िले पर हमला हुआ था.
शुक्रवार 12 जनवरी को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के काफिले पर हुए हमले की जांच पुलिस ने तेज़ कर दी है.
अब तक पुलिस ने इस सिलसिले में 28 लोगों को गिरफ्तार किया है, इनमें दस महिलाएं भी हैं.
बक्सर जिले के नंदन गांव में नीतीश कुमार के काफिले पर विकास कार्यों की समीक्षा यात्रा के दौरान हमला हुआ था.
बीते साल दिसंबर में बगहा से इस यात्रा की शुरुआत ही किसानों के विरोध प्रदर्शन के बीच हुई थी, लेकिन 12 जनवरी को जिस तरीके से मुख्यमंत्री पर हमला हुआ वह हैरान कर देने वाला था.
डुमरांव प्रखंड के इस गांव से जैसे ही मुख्यमंत्री का काफिला लौटने लगा सड़क किनारे खड़े लोगों ने हमला कर दिया.
जिस सड़क पर मुख्यमंत्री के स्वागत में नारे लिखे गए थे उसी सड़क पर ईंट-पत्थर बरसने लगे.
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चल रही है कई 'जांच'
घटना की गंभीरता को देखते हुए आला पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की टीम मामले की जांच कर रही है.
अब तक की कार्रवाई के बारे में बक्सर के पुलिस अधीक्षक राकेश कुमार ने बीबीसी को बताया, "इस मामले में पांच एफआईआर दर्ज हुई हैं जिनमें डेढ़ सौ से अधिक लोगों को नामजद किया गया है. पत्थरबाज़ी की घटना के वीडियो साक्ष्य के आधार पर अब तक की गिरफ्तारियां की गई हैं. घटना के साजिशकर्ता और दूसरे अन्य लोगों की गिरफ्तारी के लिए छापेमारी जारी है."
इस बीच राजनीतिक दल भी अपने स्तर पर जांच कर रहे हैं. जन अधिकार पार्टी के नेता पप्पू यादव जांच कर लौट आए हैं. साथ ही कांग्रेस ने भी पार्टी स्तर पर जांच करने की घोषणा की है.
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'इस चिंताजनक घटना की हो समीक्षा'
हमले में नीतीश कुमार तो घायल नहीं हुए, लेकिन कई सुरक्षाकर्मियों को चोट आई और कुछ गाड़ियां क्षतिग्रस्त हुईं.
सत्तारूढ़ जदयू ने इसे राजद की पूर्व-नियोजित साजिश बताया जिसे राजद ने सिरे से खारिज किया.
पार्टी इन घटनाओं को चिंतनीय बताते हुए इसकी समीक्षा की बात कह रही है.
प्रदेश राजद के प्रधान प्रवक्ता शक्ति यादव कहते हैं, "लोगों की नाराज़गी पत्थरबाजी के रूप में सामने आई है. यह समीक्षा का विषय है कि दलित-महादलित, पिछड़ा-अतिपिछड़ा सरकार के काम से नाराज़ क्यों हैं."
क्या विकास योजनाओं का लाभ आम लोगों तक सही तरीके से नहीं पहुंचने के कारण लोगों की यह नाराज़गी सामने आ रही है?
इस सवाल पर प्रदेश जदयू के मुख्य प्रवक्ता संजय सिंह का जवाब ये था, "मुद्दाविहीन लोग ऐसी बातें कर रहे हैं. अगर योजनाएं डेलीवर नहीं हो रही हैं और काम नहीं हो रहा है तो 2019 और 2020 के चुनाव में बिहार की जनता जवाब देगी."
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विकास समीक्षा यात्राा का पांचवां चरण शुरू
लेकिन जानकार इस नाराज़गी को योजनाओं को सही तरीके से लागू नहीं होने के साथ-साथ कुछ अन्य बातों से जोड़ कर देख रहे हैं.
वरिष्ठ पत्रकार सुरूर अहमद बताते हैं, "नोटबंदी और जीएसटी का असर तो था ही. इधर बिहार में लंबे समय तक कई कारणों से बालू निकालने और उसके व्यापार पर रोक थी. इससे बड़े पैमाने पर कामगार तबका बहुत प्रभावित हुआ और इससे नाराज़गी बहुत है. इन मिले-जुले कारणों से यात्राओं के दौरान ऐसी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं."
इन सबके बीच नीतीश कुमार की 'विकास समीक्षा यात्रा' का पांचवां चरण शुरू हो रहा है.
साल 2005 में मुख्यमंत्री बनने के बाद से सरकारी योजनाओं को जमीनी स्तर पर किस हद तक लागू किया गया है, इसे जानने के लिए वे करीब दस यात्राएं कर चुके हैं जिनमें परिवर्तन यात्रा, विकास यात्रा, निश्चय यात्रा जैसी यात्राएं शामिल हैं. और अमूमन हर यात्रा के दौरान विरोध प्रदर्शन की छोटी से लेकर बड़ी घटनाएं भी सामने आई हैं.