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महाराष्‍ट्र चुनाव: आदित्‍य ठाकरे को हल्‍के में लेना पड़ सकता हैं बीजेपी को भारी!

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PM Modi ने अगर भूल से भी ये गलती की तो Aditya Thackeray मार जाएंगे बाजी | वनइंडिया हिंदी

बेंगलुरु। महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और शिवसेना के बीच गठबंधन का ऐलान तो हो गया है लेकिन चुनाव से ठीक पहले दोनों राजनीतिक पार्टियां मुंबई की आरे कॉलोनी में पेड़ों की कटाई को लेकर अलग-अलग रुख सामने आ रहे हैं। दोनों राजनीतिक पार्टियों में गठबंधन तो है, किन्तु पर्यावरण के मुद्दे पर नहीं। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के बेटे और युवा विंग के प्रमुख आदित्य ठाकरे को पता हैं कि यह भारतीय जनता पार्टी के लिए मेट्रो प्रोजेक्ट बेहद अहम हैं इसलिए पर्यावरण की चिंता जताकर वह अपनी सियासी स्‍टंट चल रहे हैं!

वोट बैंक को साधने की जुगत

वोट बैंक को साधने की जुगत

ठाकरे परिवार वे वर्ली विधानसभा सीट से नामांकन के बाद आदित्य ठाकरे इस मुद्दे पर आक्रोशित रुप रखकर जनता के बीच पहुंच कर राजनीति में औपचारिक पारी शुरू कर दी है। आदित्य ठाकरे चुनाव मैदान की ओर कदम बढ़ाने वाले ठाकरे परिवार के पहले सदस्य ही नहीं हैं बल्कि वो खुद भी चार कदम आगे की राजनीतिक सोच के साथ आगे बढ़ रहे हैं। अब तक की आदित्य ठाकरे की बातों से जो राजनीतिक सोच समझ में आती है वो बाल ठाकरे और राज ठाकरे की राजनीति का एडवांस अपडेटेड-वर्जन हैं। आदित्य ठाकरे ने जमाने के साथ चलने का फैसला किया है। वो पहले ही जान चुके हैं कि शिवसेना की सियासी स्टाइल पुरानी पड़ चुकी है। इसलिए सत्ता पानी हैं तो इसके लिए ऐसा ही कुछ करना होगा जिससे जनता के दिल में जगह बना सके। वर्तमान समय में विश्‍व स्‍तर पर पर्यावरण की सुरक्षा मुद्दा छाया हुआ हैं। ऐसे में पर्यावरण की चिंता करके आदित्‍य ठाकरे अपना वोट बैंक मजबूत कर सियासी दांव खेल रहे हैं।

शिवसेना ऐसे ही मौके का कर रही थीं इंतजार

शिवसेना ऐसे ही मौके का कर रही थीं इंतजार

आदित्य ठाकरे चुनाव मैदान में उतरते ही आरे कालोनी में मेट्रो प्रोजक्‍ट के तहत रातों रात 200 पेड़ो का कटान, इनके लिए भाजपा से सत्ता हथियानें मानो सुनहरा मौका मिल गया हो। बता दें कि प्रधानमंत्री के जम्मू कश्‍मीर से अनुच्‍छेद 370 हटाए जाने का ऐतिहासिक फैसला और ट्रिपल तलाक समेत अन्‍य उपलब्धियों के कारण भाजपा के प्रति जनता का विश्‍वास और पक्का हुआ हैं। ऐसे में महाराष्‍ट्र विधानसभा चुनाव में आदित्‍य ठाकरे के लिए मैदान में भाजपा को टक्कर देना टेढ़ी खीर नजर आ रही थीं। ऐसे में आदित्‍य ठाकरे को भाजपा के पक्ष में बह रही हवा का रुख शिवसेना अपने पक्ष में मोड़ सके इसके लिए वह ऐसा ही मौका तलाश रही थीं।

आरे कालोनी में पेड़ों का कटान का मुद्दा शिवसेना के लिए मुंह मांगी मुराद पूरा होने जैसा साबित हो गया। जिस पर आदित्‍य ठाकरे ने जमकर राजनीति शुरु कर दी हैं। शिवसेना का अपने सहयोगी से चुनाव से पहले ही अलग रुख रखना गठबंधन पर कितना असर डालेगा यह देखने वाली बात होगी। विकास के नाम पर देवेंद्र फडणवीस फिलहाल यह लड़ाई जीतते हुए नजर आते हैं। दरअसल आरे के जंगलों को कटने से बचाने की लड़ाई लड़ रहे लोगों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं को बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले से झटका लगा है।

ये कैसा गठबंधन

ये कैसा गठबंधन

आपको बता दें कि महाराष्ट्र (288 सीटें) में 21 अक्टूबर को मतदान होना है। सत्तारूढ़ भाजपा इस बार भी वर्तमान मुख्यमंत्री के साथ ही अपनी जीत को दोहराना चाहती है। महाराष्ट्र की 288 सीटों वाली विधानसभा में बीजेपी खुद 164 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और शिवसेना को 124 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करने का मौका दिया है। हालांकि, बीजेपी को अपने पास की 164 सीटों में ही आरपीआई, आरएसपी, शिव संग्राम और रयत क्रांति को भी समायोजित करना है।

बीजेपी ने इस बात पर भी हामी भरी है कि वो डिप्टी सीएम की कुर्सी शिवसेना को दे सकती है। हालांकि, कुछ बीजेपी नेता इसे भी चुनावी जुमले की तरह ही समझ और समझा रहे हैं। चुनाव से पहले ही शिवसेना और बीजेपी का आरे के मुद्दे पर मतभेद उभरकर सामने आ गया है। शिवसेना जहां आरे कॉलोनी में पेड़ों की कटान पर आपत्ति जता रही है, वहीं भाजपा के लिए मेट्रो प्रोजेक्ट बेहद आवश्यक है। महाराष्ट्र सीएम देवेंद्र फडणवीस कई बार जता चुके हैं कि मुंबई के आरे में मेट्रो कार शेड हर स्थिति में बनना ही है। इसके लिए आरे के जंगलों के 2700 पेड़ काटे जा सकते हैं, क्योंकि यह इलाका वन क्षेत्र नहीं है।

आदित्‍य ठाकरे को हल्‍के में लेना पड़ सकता हैं बीजेपी को भारी

आदित्‍य ठाकरे को हल्‍के में लेना पड़ सकता हैं बीजेपी को भारी

अगर बीजेपी महाराष्ट्र में फिलहाल अकेले दम पर सरकार बनाने का आत्मविश्वास रखती है तो बिलकुल भी गलत नहीं है, लेकिन अगर वो आदित्य ठाकरे को बहुत हल्के में ले रही है तो ये उसकी भारी भूल हो सकती हैं, क्योंकि आदित्‍य ठाकरे ने उड़ान भरनी शुरु कर दी हैं। आदित्य ठाकरे ये तो अच्छी तरह समझ चुके हैं कि महाराष्ट्र की राजनीति में राज ठाकरे क्यों फेल हुए?
आदित्य ठाकरे को ये भी मालूम है कि शिवसेना को अपने ही गढ़ मुंबई और महाराष्ट्र में नंबर दो पर बने रहने के लिए भी क्यों संघर्ष करना पड़ रहा है?आदित्य ठाकरे ये भी समझ ही चुके हैं कि महाराष्ट्र में बड़ी मजबूती से बीजेपी ने पैर कैसे जमा लिये? आदित्य ठाकरे नये महाराष्ट्र की बात कर रहे हैं। निश्चित रूप से ये महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की स्थापना से आगे की बात है। राज ठाकरे ने पार्टी का नाम तो दिया लेकिन पुराने मॉडल पर ही चलते रहे और अब तक नाकाम रहने की भी यही वजह है। आदित्य ठाकरे वक्त की नजाकत को समझते हैं। आदित्य ठाकरे जानते हैं कि भविष्य किस तरीके की राजनीति का है।

खानदानी राजनीति पैटर्न से जुदा है आदित्‍य की राजनीति

खानदानी राजनीति पैटर्न से जुदा है आदित्‍य की राजनीति

वर्ली में लगे आदित्य ठाकरे के पोस्टर मराठी के अलावा कई और भी भाषाओं में क्यों लगे हैं? आदित्य ठाकरे को न हिंदी से परहेज है न गुजराती और न ही उर्दू या अंग्रेजी से परहेज हैं। बीजेपी अभी भले ही शिवसेना को आस पास टिकने न दे, लेकिन आदित्य ठाकरे दूरगामी सोच के तहत राजनीति के मैदान में उतरे हैं। खानदानी 'ठाकरे पॉलिटिक्स' में वैलेंटाइन डे का विरोध किया जाता रहा है। लेकिन आदित्य ठाकरे ऐसा नहीं करते।

यही दोनों की राजनीतिक शैली में सबसे बड़ा और बुनियादी फर्क है। दरअसल, बाल ठाकरे कार्टून बनाते थे, आदित्य ठाकरे कविता लिखते हैं। आदित्य ठाकरे पूरी तरह सजग रहते हैं। इसका उदाहरण आदित्य ठाकरे के नामांकन के वक्त हाल ही में आदित्य ठाकरे से एक पत्रकार का सवाल रहा। 'क्या मैं अगले मुख्यमंत्री से बात कर रहा हूं?' आदित्य ठाकरे ने कोई हड़बड़ी नहीं दिखायी और मुस्कुराते हुए जवाब दिया, 'आप ऐसे व्यक्ति से बात कर रहे हैं जो हमेशा राज्य की सेवा करेगा। ' साथ ही आदित्य ठाकरे ने जोर देकर कहा कि वो राजनीति में एक बड़े मकसद के साथ उतरे हैं. वो नया महाराष्ट्र बनाना चाहते हैं।

जानिए, कितनी संपत्ति के मालिक हैं शिवसेना नेता आदित्य ठाकरेजानिए, कितनी संपत्ति के मालिक हैं शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे

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English summary
Aditya Thackeray Targeting the Vote Bank by Expressing Environmental Love on the Felling of Trees?
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