हिमाचल प्रदेश के नवनिर्वाचित CM जय राम ठाकुर की Love Story
धीरे-धीरे मुलाकातों का सिलसिला बढ़ता गया और जयराम ठाकुर, साधना के मुरीद हो गए थे।
शिमला। आज पीएम मोदी और अमित शाह की उपस्थिति में जय राम ठाकुर ने हिमाचल प्रदेश के 13वें मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, साथ ही प्रदेश सरकार में 11 मंत्रियों को भी शपथ दिलाई गई। वहीं प्रदेश के इस नए मुख्यमंत्री के जीवन को गौर से देखें तो ठाकुर की जीवन शैली तो सादी है लेकिन उसमें वो सब है जिसने उन्हें जनता में लोकप्रिय बना दिया है। 52 वर्षीय जय राम ठाकुर के निजी और सार्वजनिक जीवन पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का खासा प्रभाव रहा है। वहीं उनकी जीवन संगनी डॉ. साधना ठाकुर का भी अहम योगदान रहा है। शालीन स्वभाव के जयराम ठाकुर संघ परिवार में कार्य करते हुए ही पहली बार अपनी जीवन संगिनी डॉ. साधना से मिले थे। जयराम ठाकुर की प्रेम कहानी भी खासी दिलचस्प है। जयराम और डॉ. साधना की पहली मुलाकात भी संघ सम्मेलन के दौरान ही हुई थी। नब्बे के दशक में जम्मू में आयोजित संघ प्रचारकों के सम्मेलन में जयराम की मुलाकात राजस्थान की प्रचारक डॉ. साधना से हुई। जिसके बाद दोनों के बीच वैचारिक समानता से दोस्ती हुई। इस दौरान जयराम ठाकुर डॉ. साधना के मुरीद हो गए थे।
धीरे-धीरे साधना के प्यार में डूबते चले गए राम
धीरे-धीरे दोस्ती का रिश्ता प्यार में बदला और फिर दोनों ही साल 1995 में परिणय सूत्र में बंध गए। तब डॉ. साधना राजस्थान के जयपुर की रहती थी वैसे डॉ. साधना मूल रूप से कर्नाटक की रहने वाली हैं। कर्नाटक के शिवमोगा से उनका परिवार है लेकिन बाद में उनके परिवार के लोग जयपुर में आकर बस गए। शादी से पहले साधना राव के नाम से उनकी पहचान थी। उन्होंने अस्सी के दशक में एसएमएस कॉलेज जयपुर में मेडिकल की पढ़ाई पूरी की। इस दौरान साधना ने जयपुर में रक्त दान शिविरों का आयोजन भी किया।
दो बेटियों से संपन्न है दांपत्य जीवन
जयराम और साधना ठाकुर की दो बेटियां हैं। शादी के तीन साल बाद ही जयराम 1998 में पहली बार विधायक बने। यानि शादी के बाद उनकी तकदीर ही बदल गई। इससे पहले वो साल 1993 में विधानसभा चुनाव हारे भी। पहले चुनाव में हारने के बाद जयराम ठाकुर ने आर्थिक दिक्कतों का डटकर सामना किया और फिर मुड़कर पीछे नहीं देखा।
राजनीति में नहीं आना चाहते थे राम
जयराम ठाकुर बताते हैं कि उनके मन में राजनीति में आगे बढ़ने की सोच तो थी लेकिन एक दिन सीएम बनने के बारे में उन्होंने नहीं सोचा था। जयराम का कहना है कि आज मेरे पिता जिंदा होते तो वो जरूर मुझ पर गर्व करते। उन्होंने कहा कि वो एक गरीब परिवार से संबंध रखते थे और बहुत कठिनाइयों के दौर से परिवार ने उन्हें पढ़ाया। कई बार ऐसी परिस्थितियां बनी की पढ़ाई छोड़ कर कोई काम करने की नौबत आई उसके बावजूद भी परिवार ने हौंसला नहीं तोड़ा और उनकी परविश और पढ़ाई में मदद की। जिसकी वजह से वो कड़ी मेहनत से इस मुकाम पर पहुंचे हैं।
काश! पिता जिंदा होते..
उन्होंने कहा कि मुझे इस मुकाम पर पहुंचा हुआ देख मेरी माता बेहद खुश हैं और उनके आशीर्वाद से ही वो यहां पहुंच पाए हैं। उन्होंने कहा कि परिवार चाहता था कि राजनीति में ना आऊं और मैं खुद भी राजनीति में नहीं आना चाहता था। एक वक्त ऐसा था जब मैं राजनीति के लोगों के प्रति अच्छी धारणा नहीं रखता था। आज मैं भी उनमें से एक हूं, कॉलेज में छात्र संगठन से जुड़ने के बाद उस समय राजनीति में आने का लक्ष्य था लेकिन समाज में लोगों के बीच काम करने की भावना थी और उसके साथ-साथ इस दिशा में बढ़ते गए और यहां तक पहुंच गए।
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