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हिमाचल में धूमल भितरघात का शिकार, इसीलिए कांग्रेस हुई मजबूत

टिकटों का बंटवारा अपनी मर्जी से किया, जिससे संगठन सकते में आ गया और कई नेताओं को तो फूट- फूट कर रोते भी देखा गया।

By Gaurav Dwivedi
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शिमला। हिमाचल विधानसभा चुनाव के दौरान बात वीरभद्र सिंह हों या भाजपा नेता प्रेमकुमार धूमल की, दोनों नेताओं को अपनी पार्टी के भितरघातियों ने दोनों को ही नहीं बख्शा लेकिन धूमल भितरघात के साथ-साथ सुनियोजित षड्यंत्र का शिकार भी हुए। हालांकि विरोधियों को इसमें अधिक कामयाबी नहीं मिली, लेकिन पार्टी के प्रचार को इससे जरूर नुकसान पहुंचा। दरअसल, मोदी लहर के भरोसे भाजपा हाईकमान इस बार अलग रणनीति लेकर हिमाचल में आया था। उसने प्रदेश के स्थापित नेताओं को नजरंदाज कर हर फैसले लेने का अधिकार अपने पास सुरक्षित रख लिया था। इसमें टिकट आबंटन, चुनाव प्रचार की रणनीति से लेकर मुख्यमंत्री की घोषणा तक सभी कुछ शामिल था। हाई कमान ने परोक्ष रूप से इसकी घोषणा काफी पहले शिमला में हुए पार्टी के सम्मेलन में कर दी थी। नेताओं को कड़ी हिदायत दे दी गई थी कि वे स्वयं को उम्मीदवार घोषित ना करें।

Congress in Strong Position in Himachal Pradesh 2017, this is BJP problem

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा, जिस तरह हाईकमान से अंगसंग थे, उससे साफ हो गया था कि उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाने की योजना पहले से बनी हुई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी कारण जेपी नड्डा के गृहक्षेत्र बिलासपुर में उस प्रस्तावित एम्स के शिलान्यास के लिए पहुंचे, जिसके लिए अभी तक पर्याप्त भूमि की व्यवस्था भी नहीं हो पाई है। हाईकमान ने प्रदेश में पूर्व निर्धारित योजना के तहत टिकटों का बंटवारा अपनी मर्जी से किया, जिससे संगठन सकते में आ गया और कई नेताओं को तो फूट- फूट कर रोते भी देखा गया। पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार के क्षेत्र पालमपुर से टिकट के लिए एकमात्र प्रवीण कुमार का नाम भेजा गया था, लेकिन उनका टिकट काटकर इंदू गोस्वामी को दे दिया गया। धर्मशाला से पूर्व परिवहन मंत्री किशन कपूर का टिकट भी काट दिया गया था, लेकिन बड़े विद्रोह की आशंका को देखते हुए बाद में उन्हें टिकट दे दिया गया। ऐसा ही और भी कई क्षेत्रों में हुआ।

धूमल के साथ षड्यंत्र

नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल को स्टार प्रचारक की पंक्ति से हटाने के लिए एक षड्यंत्र के तहत उनका हमीरपुर से टिकट काटा गया और चुनाव लड़ने सुजानपुर भेज दिया, जहां बिना मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित हुए उन्हें जीतने के लिए कड़ी मेहनत की जरूरत थी। योजना यही थी कि धूमल सुजानपुर में फंस जाएंगे और जेपी नड्डा प्रदेश से एकमात्र स्टार प्रचारक के रूप में हर जगह घूमेंगे और समर्थकों के माध्यम से स्वयं को मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में प्रचारित करवाएंगे।

ऐसी हालत में धूमल और शांता कुमार सहित प्रदेश के सभी बड़े नेताओं को मजबूरन प्रचार के लिए सीमित दायरे में सिमटना पड़ा। भाजपा हाईकमान चुनाव प्रचार के पहले चरण तक अपनी रणनीति पर अडिग था, लेकिन मोदी लहर को लेकर फील्ड से खुफिया तंत्र की रिपोर्ट नकारात्मक आने के कारण, हाईकमान के हाथ पांव फूल गए और उसे मजबूरन धूमल को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करना पड़ा।

हाईकमान के इस फैसले का संगठन में काफी स्वागत तो हुआ, लेकिन पार्टी को प्रचार में इसका पूरा लाभ नहीं मिल पाया। इस फैसले से जेपी नड्डा और उनके समर्थकों के चेहरों पर हताशा के भाव साफ देखने में आए। जेपी नड्डा जिस उत्साह के साथ प्रदेश में प्रचार के लिए आए थे, वह बाद में नजर नहीं आया। मोदी, शाह, योगी की रैलियां अपनी जगह थीं, लेकिन प्रदेश के नेताओं में जोश का अभाव था। प्रो. प्रेम कुमार धूमल ने अपने समर्थक नेताओं के पक्ष में प्रचार के लिए कुछ समय जरूर निकाला, लेकिन ज्यादातर समय उन्हें भी अपने क्षेत्र सुजानपुर में ही लगाना पड़ा।

माना जा रहा है कि धूमल, परिणाम आने के बाद यदि मुख्यमंत्री पद तक पहुंच भी जाएंगे तो भी केन्द्रिय मंत्री जगत प्रकाश नड्डा उनके लिए बड़ी सरदर्द बने रहेंगे। उसी तरह जैसे कांग्रेस में कभी वीरभद्र सिंह के लिए पं. सुखराम बने थे। जिस तरह कभी कांग्रेस हाईकमान पं. सुखराम के साथ खड़ा था, आज उसी तरह भाजपा हाईकमान जगत प्रकाश नड्डा के साथ खड़ा है।

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English summary
Congress in Strong Position in Himachal Pradesh 2017, this is BJP problem
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