गुजरात में 6 मुख्यमंत्री बदले, 100 करोड़ खर्च के बाद भी नहीं शुरू हुई कल्पसर परियोजना
Gujarat news, गांधीनगर। भले ही गुजरात के छह मुख्यमंत्री बदल गए हों, लेकिन सरकार ने खंबात की खाड़ी की बहुद्देशीय कल्पसर परियोजना के लिए अब तक कोई कार्रवाई शुरू नहीं की है। परियोजना से जुड़े विशेषज्ञों के अनुसार एक बार परियोजना शुरू करने के बाद 10 वर्षों में इसका लाभ उठाया जा सकता है। साथ ही विधानसभा के दो चुनाव के बाद तक लोगों को इनका लाभ मिल सकता है।
पिछले पांच वर्षों में सरकार ने अध्ययन और अलग अलग रिपोर्ट बनाने पर 100 करोड़ रुपये का खर्च किया है। इस परियोजना के शुरू होने से खंभात के दोनों सागर किनारे को जोड़ता 30 किलोमीटर में फैला हुआ सरोवर का मीठा पानी किसानों और लोगों को काम आ सकता है। इसके इलावा गुजरात और सौराष्ट्र को करीब लाने का लक्ष्य भी इसके जरिए पूरा हो सकता है।
गुजरात में पूर्ववर्ती कांग्रेस के शासन में बंद हो चुकी कल्पसर परियोजना की फाइल भाजपा के तत्कालिन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल ने वर्ष 1995 और वर्ष 1999 में खोली थी। उसके बाद नरेन्द्र मोदी की सरकार ने 2002 में परियोजना के लिये सैद्धांतिक अनुमोदन दिया था और 2011 में मोदी की सरकार में ही कल्पसर परियोजना की घोषणा की गई थी।
चीन
और
साउथ
कोरिया
ने
दिखाई
रुचि
1999
में,
कल्पसर
परियोजना
की
अनुमानित
लागत
25
हजार
करोड़
आंकी
गई
थी,
लेकिन
विभिन्न
चरणों
के
अध्ययन
में
देरी
से
परियोजना
की
लागत
90
हजार
करोड़
हो
गई
है।
सरकार
का
दावा
है
कि
अब
चीन
और
दक्षिण
कोरिया
की
कंपनियों
ने
इस
परियोजना
में
रुचि
दिखाई
है।
ससुरालियों के उत्पीड़न से तंग आकर डॉक्टर ने किया धर्म परिवर्तन, मुस्लिम से बना हिंदू
योजना
की
आपूर्ति
के
बाद
ये
हो
सकेगा:
-
सौराष्ट्र
की
10
लाख
हेक्टेयर
भूमि
को
सिंचाई
का
पानी
मिलेगा।
-
भावनगर
और
दक्षिण
गुजरात
की
दूरी
136
किलोमीटर
होगी।
-
पवन
और
सौर
ऊर्जा
पार्क
बनाए
जा
सकते
हैं।
-
सौराष्ट्र
के
लोगों
को
पीने
का
पानी
उपलब्ध
होगा।
-
सौराष्ट्र
और
मध्य
गुजरात
के
तटीय
इलाकों
में
खारा
पानी
मीठा
होगा।
कल्पसर
योजना
46
साल
बाद:
1969
-
गुजरात
राज्य
राजपत्र
में,
समुद्र
में
जाने
वाले
जमीन
के
पानी
को
रोकने
के
लिए
एक
बडा
तालाब
बनाकर
पानी
को
स्टोर
करने
की
योजना
पर
काम
शुरू
किया।
1975
-
संयुक्त
राष्ट्र
मिशनरी
के
प्रोफेसर
एरिक
विल्सन
ने
टाइडल
पावर
के
लिये
केंद्रीय
विद्युत
प्राधिकरण
को
रिपोर्ट
प्रस्तुत
की।
1980
-
डॉ
अनिल
काणे,
जो
इस
परियोजना
के
दूरदर्शी
थे,
उन्होने
परियोजना
को
कल्पसर
नाम
दिया।
उन्होने
इस
प्रोजेक्ट
में
काफी
सारा
अध्ययन
किया।
1988
-
रीकॉनिसन्स
रिपोर्ट
बनाई
गई,
जिसमें
कहा
गया
कि
तकनीकी
रूप
से
नदियों
पानी
रोक
के
बांध
बनाया
जा
सकता
है।
1999
-
कल्पसर
योजना
को
सरकार
ने
मंजूरी
दी
और
छह
विशेष
अध्ययन
शुरू
किए।
2002
-
सरकार
ने
घोषणा
की
कि
परियोजना
का
निर्माण
2011
में
शुरू
होगा।
2012-
कल्पसर
का
काम
इस
साल
शुरू
किए
जाने
की
घोषणा
हुई।
2015
-
परियोजना
के
लिये
सभी
प्रकार
की
प्रशासनिक
स्वीकृति
दिए
जाने
का
वादा
किया
गया।
2018-
सरकार
ने
भाडभूत
परियोजना
का
काम
शूरू
किया
है,
जो
कल्पसर
से
जुडा
है।
लेकिन
कल्पसर
परियोजना
में
कोई
प्रगति
नहीं
हुई
है।
2019-
लोकसभा
के
चुनाव
का
वर्ष
है,
इसलिये
भाजपा
के
मेनिफेस्टो
में
फिर
से
कल्पसर
का
गान
होगा।
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