World Cancer Day: यदि समय रहते हो जाये उपचार तो बच सकती है कैंसर पीड़ित की जान
आईसीएमआर-नेशनल सेंटर फॉर डिसीज इंफॉर्मेटिक्स एंड रिसर्च द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि भारत में हर नौ में से एक व्यक्ति को अपने जीवनकाल में कैंसर होने का खतरा रहता है।
कैंसर दुनिया भर में मृत्यु का एक प्रमुख कारण है। 2020 में लगभग 10 मिलियन मौतें कैंसर से हुई थी। अर्थात हर 6 मौतों में एक मौत कैंसर से हुई। सबसे आम कैंसर की बात करें तो ये स्तन, फेफड़े, बृहदान्त्र (colon) और मलाशय (rectum) और प्रोस्टेट कैंसर प्रमुख हैं। कैंसर से लगभग एक-तिहाई मौतें तम्बाकू के उपयोग, हाई बॉडी मास इंडेक्स, शराब के सेवन, कम फल और सब्जियों के सेवन और शारीरिक गतिविधि की कमी के कारण होती हैं।
कैंसर दरअसल रोगों के एक बड़े समूह के लिए एक व्यापक टर्म है जो शरीर के किसी भी हिस्से को प्रभावित कर सकता है। बच्चों में अलग-अलग तरह के लगभग 100 से ज़्यादा के कैंसर होते हैं। हर साल, लगभग 400000 बच्चे कैंसर से प्रभावित होते हैं। वहीं सर्वाइकल कैंसर 23 देशों में सबसे आम है।
कैसे
हुआ
विश्व
कैंसर
दिवस
मनाने
का
आगाज
विश्व
कैंसर
दिवस
का
आयोजन
यूनियन
फॉर
इंटरनेशनल
कैंसर
कंट्रोल
(यूआईसीसी)
द्वारा
किया
जाता
है
और
यह
हर
साल
4
फरवरी
को
मनाया
जाता
है।
साल
2019
से
2021
तक
तीन
साल
के
लिए
विश्व
कैंसर
दिवस
का
विषय
'मैं
हूं
और
मैं
करूंगा'
रहा
था।
जिसका
मतलब
था
कि
हर
किसी
में
क्षमता
है
कि
वह
कैंसर
से
लड़
सकता
है।
यूआईसीसी की स्थापना साल 1933 में हुई थी। इस दिवस पर विभिन्न सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा कैंसर से बचाव के विभिन्न अभियान चलाए जाते हैं। प्रथम विश्व कैंसर दिवस 1993 में जिनेवा, स्विट्जरलैंड में यूआईसीसी के निर्देशन में मनाया गया था। उस समय की रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 12.7 मिलियन लोग कैंसर से पीड़ित थे और लगभग 7 मिलियन लोग हर साल कैंसर के कारण अपनी जान गंवा रहे थे। इस घातक बीमारी को नियंत्रित करने के लिए विश्व कैंसर दिवस मनाया गया।
क्या
कहते
हैं
WHO
के
आंकड़े
विश्व
स्वास्थ्य
संगठन
(WHO)
के
अनुसार
1990
में
कैंसर
के
8.1
मिलियन
नए
मामले
सामने
आए
थे।
वहीं
2000
में
10
मिलियन,
2008
में
12.4
मिलियन,
और
2012
में
14.1
मिलियन
मामले
सामने
आए।
कैंसर
से
दुनिया
भर
में
होने
वाली
वार्षिक
मौतों
की
संख्या
में
भी
वृद्धि
हुई
हैं।
इसमें
वर्ष
1990
में
5.2
मिलियन,
2012
में
8.2
मिलियन,
2018
में
अनुमानित
9.6
मिलियन
लोग
कैंसर
से
अपनी
जान
गवां
चुके
थे।
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विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि यदि कैंसर की इसी दर से वृद्धि जारी रही, तो 2040 तक कैंसर से दुनियाभर में मौतों की संख्या 16.3 मिलियन से अधिक हो जाएगी। हालांकि, WHO के अनुसार, कैंसर से होने वाली 40 प्रतिशत मौतों को रोका जा सकता है।
स्वास्थ्य
और
परिवार
कल्याण
मंत्रालय
की
रिपोर्ट
स्वास्थ्य
और
परिवार
कल्याण
मंत्रालय
भारत
सरकार
की
रिपोर्ट
के
अनुसार
भारत
में
हर
साल
लगभग
800,000
कैंसर
के
नए
मामले
सामने
आते
हैं।
तम्बाकू
से
जुड़े
कैंसर
की
बात
करें
तो
भारत
में
लगभग
35
से
50
प्रतिशत
पुरुषों
में
और
17
प्रतिशत
महिलाओं
में
इस
कैंसर
के
लक्षण
दिखाई
देते
हैं।
इस
कैंसर
को
ठीक
किया
जा
सकता
है
और
बड़े
पैमाने
पर
इस
पर
नियंत्रित
किया
जा
सकता
है।
1981
में
संयुक्त
राज्य
अमेरिका
में
कैंसर
के
कारणों
का
अनुमान
Doll
(British
physician)
और
Peto
(medical
statistician)
द्वारा
लगाया
गया
था।
इस
रिसर्च
में
तंबाकू
को
25-40
प्रतिशत
कैंसर
का
जिम्मेदार
पाया
गया।
वहीं वर्ष 2020 की ICMR की एक रिपोर्ट में बताया गया कि भारतीय महिलाओं में स्तन कैंसर के 14.8 प्रतिशत जबकि गर्भाशय (cervix) के कैंसर के 5.4 प्रतिशत मामले आते है। वहीं पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए आंतों के कैंसर के 19.7 प्रतिशत मामले आए हैं।
2020
में
विश्व
में
आए
18,094,716
मिलियन
मामलें
वर्ल्ड
कैंसर
रिसर्च
इंटरनेशनल
फंड
की
रिपोर्ट
के
अनुसार
वैश्विक
स्तर
पर,
2020
में
कैंसर
के
18,094,716
मामलों
का
पता
लगा।
2020
में
पुरुषों
और
महिलाओं
के
लिए
सभी
कैंसर
के
लिए
यह
दर
संयुक्त
रूप
से
190
प्रति
100,000
थी।
इसमें
पुरुषों
के
लिए
यह
दर
206.9
प्रति
100,000
तो
वहीं
महिलाओं
में
178.1
प्रति
100,000
थी।
डेनमार्क
में
यह
सबसे
अधिक
रही
थी।
वहां
पुरुषों
और
महिलाओं
के
लिए
संयुक्त
रूप
से
उच्चतम
कैंसर
दर
334.9
प्रति
100,000
थी।
वहीं
कैंसर
से
होने
वाली
मौतों
के
मामले
में
विश्व
में
मंगोलिया
सबसे
ऊपर
था।
2020
में
वहां
की
कैंसर
से
मृत्युदर
175.9
प्रति
100,000
थी।
भारत
में
बच्चों
में
कैंसर
नेशनल
कैंसर
रजिस्ट्री
रिपोर्ट
के
मुताबिक,
2012
से
2019
के
बीच
देशभर
में
कैंसर
के
6.10
लाख
से
ज्यादा
मामले
सामने
आए
थे।
कैंसर
के
मरीजों
में
3.19
लाख
पुरुष
और
2.90
लाख
महिलाएं
थीं।
इनमें
से
24,268
बच्चे
थे,
जिनकी
उम्र
14
साल
से
कम
थी।
इनमें
15,549
लड़के
और
8,719
लड़कियां
शामिल
थीं।
रिपोर्ट
के
मुताबिक,
इस
दौरान
11
हजार
300
से
ज्यादा
बच्चे
ल्यूकेमिया
से
जूझ
रहे
थे।
NCDIR
के
डायरेक्टर
डॉक्टर
प्रशांत
माथुर
का
कहना
है
कि
भारत
में
कैंसर
से
जूझ
रहे
बच्चों
का
सर्वाइवल
रेट
40
प्रतिशत
है।
डॉ.
माथुर
का
ये
भी
कहना
है
कि
भारत
में
कैंसर
से
जूझ
49
प्रतिशत
बच्चों
का
इलाज
ही
नहीं
हो
पाता
है।
आपकी
जानकारी
के
लिए
बता
दें
कि
ये
स्टडी
26
राज्यों
और
4
केंद्र
शासित
प्रदेशों
में
की
गई
थी।
इसे
'सिचुएशन
एनालिसिस
ऑफ
चाइल्डहुड
कैंसर
केयर
सर्विस
इन
इंडिया
2022'
के
नाम
से
जारी
किया
गया
था।
कैंसर
का
उपचार
मुमकिन
हाल
ही
में
वैज्ञानिकों
ने
आर्टिफिशियल
इंटेलिजेंस
की
मदद
से
यह
पता
लगाया
है
कि
कैंसर
कैसे
बढ़ता
है
यानी
कैंसर
के
दौरान
डीएनए
में
आए
बदलावों
के
पैटर्न
की
जानकारी
पाना
संभव
हो
गया
है।
लंदन
के
इंस्टीट्यूट
ऑफ
कैंसर
रिसर्च
ICR
और
यूनिवर्सिटी
ऑफ
एडनबर्ग
की
टीम
ने
मिलकर
एक
नयी
तकनीक
की
खोज
की
है,
जिसे
रिवॉल्वर
यानि
'Repeated
Evolution
of
Cancer'
नाम
दिया
गया
है।
यह
तकनीक
कैंसर
के
दौरान
डीएनए
में
आए
बदलाव
को
रिकॉर्ड
करती
है
एवं
इस
जानकारी
को
भविष्य
में
होने
वाले
आनुवंशिक
बदलाव
को
समझने
के
लिये
उपयोग
करती
है।
डॉक्टर
मानते
हैं
कि
यदि
समय
रहते
कैंसर
का
पता
लग
जाए
तो
इसके
सफल
उपचार
की
संभावना
बढ़
जाती
है।
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