
Russian Oil Price Cap: क्या है रूस के तेल निर्यात पर प्राइस कैप का प्रस्ताव, क्या असर होगा भारत पर?
यूरोपीय संघ के देश मिलकर रूस के तेल निर्यात को कमज़ोर करने के लिए रूसी तेल निर्यात पर प्राइस कैप 60 से 70 डॉलर प्रति बैरल कर सकते हैं। यूरोपीय देशों के राजदूतों की हाल ही में हुई बैठक में इस बात पर चर्चा हुई। अगर इस प्रस्ताव को मंजूरी मिल जाती है, तो प्राइस कैप की घोषणा हो जाएगी।

प्राइस कैपिंग क्या हैं?
प्राइस कैपिंग का अर्थ किसी उत्पाद का एक निश्चित मूल्य तय कर देना होता हैं, जिसके बाद उस उत्पाद को अगर उस रेट से ज्यादा या कम कीमत पर खरीदा जाता है तो कई प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता हैं।
लेकिन इस बार पहले के मुकाबले उल्लंघन करने वालों को काफी छूट भी दी गयी है। जहाँ पहले उल्लंघन करने पर जहाजों पर हमेशा के लिए प्रतिबंध लगता था, वहीं अब इसे केवल 90 दिन का कर दिया है।
भारत पर भी रुसी तेल पर कैपिंग का दबाब बनाया जा रहा हैं, लेकिन भारत के पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पूरी ने कहाँ है कि जब प्राइस कैप होगा तब देखा जाएगा, पहले से इसका डर ठीक नहीं है। लेकिन मंत्री के बयान के इतर दुनिया की बड़ी रिफाइनिंग कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज ने 5 दिसंबर के बाद का कोई भी आर्डर नहीं दिया है।
रूस दुनिया में दूसरे नंबर पर तेल उत्पादन करने वाला देश हैं। युद्ध शुरू होने और रूस पर कई वैश्विक प्रतिबंध लगने के बाद रूस भारत को रियाती दरों पर तेल बेच रहा है। फिलहाल रूसी तेल ब्रिटेन के ब्रेंट की तुलना में काफी छूट पर कारोबार कर रहा है। रुसी उरल तेल की कीमत जहां 65 डॉलर प्रति बैरल है, वहीं ब्रिटेन का ब्रेंट लगभग 85 डॉलर प्रति बैरल है।
प्राइस कैपिंग पर पुतिन की नाराजगी
रुसी राष्ट्रपति पुतिन ने इराक के प्रधानमंत्री मोहम्मद शिया अल-सुदानी से मुलाकात के दौरान बातचीत में कहा कि पश्चिमी देशों की तरफ से लाया गया प्राइस कैप बाजार सिद्धांतों का उल्लंघन है। इससे विश्व के ऊर्जा बाजार पर गंभीर संकट आ सकता है।
रूसी तेल पर प्राइस कैप आखिर क्यों?
रूसी अर्थव्यवस्था को ब्रेक लगाने के लिए पश्चिमी देशों के सहयोगी जी-7 विशेष रूप से यूक्रेन के सहयोगी कैपिंग लगाने का समर्थन कर रहे हैं। क्योंकि अगर प्राइस कैपिंग को मंजूरी मिलती है तो रूस का कच्चा तेल तय कीमत से कम या ज्यादा दाम पर ख़रीदा या बेचा जाएगा। जिससे यातायात करने वाली कंपनियां, जो कार्गो और दूसरी तरह की सर्विसेज जैसे इंश्योरेंस, ब्रोकरिंग और आर्थिक मदद कर रही हैं, उन पर प्राइस कैप लगाने वाले देश प्रतिबंध लगा सकते हैं।
प्राइस कैपिंग का मुख्य उद्देश्य रूस की आर्थिक स्थिति को कम करना है। ताकि यूक्रेन युद्ध में रूस की आर्थिक हालत कमज़ोर हो सके। यूएस की मंशा है कि तेल बाजार में रूस की उपस्थिति तो रहे लेकिन उसकी कमाई में भी कमी लाई जाए। इसलिए पोलैंड जैसे देश जिनकी रूस से किसी न किसी बात में ठनी रहती है, रूस पर जल्द नए प्रतिबंध लगाने के लिए जोर दे रहे हैं। इसके अलावा जी-7 देश और यूरोपीय संघ के ज्यादातर देश रूसी कच्चे तेल के आयात को कम करने की योजना बना रहे हैं।
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यूक्रेन-रूस युद्ध के चलते भारत को फायदा
नौ महीनों से चल रहे यूक्रेन रूस युद्ध की वजह से पश्चिमी देशों ने रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए, लेकिन रूस और भारत अपने व्यापारिक रिश्ते बढ़ा रहे हैं। भारत रूस से खाद बड़ी मात्रा में आयात कर रहा है। इसके अतिरिक्त तेल आयात में रूस भारत को काफी सस्ता तेल और सुरक्षित भारत तक पहुचाने का जिम्मा लिया हैं। जिसके कारण तेल आयात में रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी देखने को मिली। भारत जहाँ युद्ध से पहले रूस से केवल 2 प्रतिशत तेल खरीदता था, वहीं आज रूस से कच्चे तेल का आयात 20 प्रतिशत तक पहुंच गया हैं। सस्ती कीमतों में रूस से भारी मात्रा में तेल आयात करने की वजह से भारत की तेल रिफायनरी कंपनी दुनिया भर में मुनाफा कमाने वाली कंपनी साबित हो रही है।
इस वर्ष जुलाई तक भारत-रूस के मध्य 11 अरब डॉलर का व्यापार हुआ। जबकि वर्ष 2021 में कुल व्यापार केवल 13.6 अरब डॉलर का था। 2025 तक भारत रूस ने व्यापार को 30 अरब डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य रखा है।