Exclusive : मोदी किस ब्रह्मास्त्र से पार करेंगे धर्मांतरण कसौटी?
देश की संसद इन दिनों धर्मांतरण के मुद्दे पर हंगामेदार बनी हुई है। लोकसभा और राज्यसभा दोनों ही सदनों में धर्मांतरण के मुद्दे पर बहस छिड़ी हुई है। हर दल का सांसद अपनी और अपने दल की राय सदन पटल पर प्रस्तुत कर रहा है और इस पूरी बहस का निचोड़ क्या निकला? बस एक ही निचोड़ निकला और वह यह कि इस मुद्दे पर सरकार की ओर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उत्तर दें।
बिखरा हुआ है विपक्ष
सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को छोड़ देश के तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं-सांसदों की मांग है कि धर्मांतरण के मुद्दे पर नरेन्द्र मोदी जवाब दें। हालाँकि सरकार की ओर से बार-बार कहा जा रहा है कि संबंधित मंत्रालय के मंत्री इस मुद्दे पर जवाब देंगे, परंतु विपक्ष, जो बिखरा हुआ है, के लोग मोदी के जवाब की मांग पर जिस प्रकार अड़ गए हैं, उससे लगता है कि विपक्षी नेताओं की यह केवल मांग नहीं, बल्कि महेच्छा बन गई है।
विपक्ष की यह मांग महेच्छा समान इसलिए लगती है, क्योंकि 2002 तक कट्टर हिन्दुत्व की छवि रखने वाले नरेन्द्र मोदी 2012 के आने तक सद्भावना उपवास के जरिए सबका साथ-सबका विकास की राह चल पड़े और तीसरी बार गुजरात विधानसभा चुनाव जीतने के बाद उनकी इस राह की मंजिल दिल्ली बन गई। लोकसभा चुनाव 2014 की दुंदुभि बजने तक नरेन्द्र मोदी कट्टर हिन्दुत्ववादी की छवि बनाए रखते हुए एक कुशल शासक के रूप में स्वयं को स्थापित करने में सफल हुए और यही कारण है कि आज पूर्ण बहुमत के साथ वे देश के प्रधानमंत्री बन चुके हैं।
पिछले एक दशक में पहली परीक्षा है यह
नरेन्द्र मोदी की पिछले एक दशक में बदली छवि की यह पहली परीक्षा है, जब देश में धर्मांतरण का मुद्दा उग्र बहस के बीच आ चुका है। बस, इसीलिए विपक्ष की मांग सरकार की राय जानने की नहीं, बल्कि विपक्ष की महेच्छा नरेन्द्र मोदी की राय जानने की है कि आखिर मोदी ने पिछले एक दशक में कट्टर हिन्दुत्व से उदारवादी हिन्दुत्व की जो स्वयं की छवि उपजाई है, उसमें कितनी सच्चाई है।
लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि क्या नरेन्द्र मोदी जवाब देंगे? वैसे लगता नहीं है कि प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी धर्मांतरण के मुद्दे पर ऐसा कोई भी बयान देंगे, जो देश में हिन्दुओं के अलावा अन्य धर्मों के लोगों के मन में उनकी कुशल नेतृत्व क्षमता पर संदेह पैदा करे। ऐसा नहीं है कि मोदी इस प्रकार के धर्म संकट में पहली बार पड़े हैं। जब मोदी अपनी हर बात में गुजरात के अनुभव का जिक्र करते हैं, तो इस मुद्दे पर भी वे अवश्य गुजरात के अनुभव से ही काम लेंगे।
गोधरा कांड के बाद आयी थीं दिक्कतें
गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए भी नरेन्द्र मोदी के समक्ष गोधरा कांड और उसके बाद के दंगों को लेकर बनी मुस्लिम विरोधी छवि को सुधारने में कई दिक्कतें आईं। विश्व हिन्दु परिषद् और उसके सहयोगी संगठनों ने नरेन्द्र मोदी को गुजरात में उनके 12 साल के शासन के दौरान कई मुद्दों पर धर्म संकट में डाला। फिर वह अतिक्रमण हटाने के नाम पर मंदिरों को तोड़ने का विरोध हो या दंगों के आरोप में फँसे विश्व हिन्दू परिषद् से जुड़े आरोपियों या अन्य हिन्दू आरोपियों को बचाने की बात हो। लेकिन मोदी इन सारे मुद्दों से खुद को दरकिनार रखते हुए केवल और केवल विकास की धारा बहाते रहे और मोदी के विकास के नारे के आगे तमाम कट्टरवादी ताकतें स्वतः ही ध्वस्त होती चली गईं।
अब जबकि मोदी देश के प्रधानमंत्री बने हैं। भारतीय जनता पार्टी के नेता ही नहीं, बल्कि कट्टर संघी नेता होने के नाते नरेन्द्र मोदी आज भी कट्टर हिन्दुत्ववादी की छवि से पूर्णतः उबर नहीं पाए हैं। उन्होंने विकास के नारे को ही हर समस्या का हल माना हो, लेकिन विपक्ष सहित उनके तमाम विरोधियों को अब भी यही लगता है कि नरेन्द्र मोदी, संघ या भाजपा अपने हिन्दुत्व के मूल एजेंडे से कभी भटक नहीं सकते और इसीलिए विपक्ष के लोग मोदी के मुँह से धर्मांतरण के मुद्दे पर उनके विचार जानना चाहते हैं। यह केवल मांग नहीं, बल्कि एक महेच्छा है कि विपक्ष के लोग धर्मांतरण के मुद्दे पर नरेन्द्र मोदी के बयान को सुन कर उनकी बदली छवि का लेखाजोखा करना चाहते हैं।
कट्टरवादी हिंदुओं का प्रखर समर्थन रहा
प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी के समक्ष भाजपा-संघ की छवि को बनाए रखते हुए समग्र राष्ट्र नेता के रूप में खुद को स्थापित करने की सबसे बड़ी चुनौती उत्पन्न हुई है। चुनाव से पहले तक उन पर हर तरह के आरोप लगे। इसके बावजूद उनके विकास के नारे के आगे तमाम आरोप बेबुनियाद साबित हुए और देश की जनता ने उन्हें पूर्ण बहुमत दिया। भले ही इसमें बहुसंख्यक और अनेक कट्टरवादी हिन्दुओं का प्रखर समर्थन रहा, लेकिन कहीं न कहीं अल्पसंख्यक विशेषकर मुस्लिम मतदाताओं ने भी मोदी पर भरोसा करते हुए भाजपा के पक्ष में मतदान किया।
धर्मांतरण मुद्दा मोदी के समक्ष उनकी बदली छवि को सिद्ध करने की पहली परीक्षा बन कर आया है। अभी तो शुरुआत है। मोदी को अभी अयोध्या में राम मंदिर, काशी में शिव मंदिर तथा मथुरा में कृष्ण मंदिर जैसे कई महत्वपूर्ण हिन्दुत्व से जुड़े मुद्दों पर धर्म संकट से गुजरना होगा। इतना ही नहीं, जम्मू-कश्मीर का मुद्दा भी कमोबेश धारा 370 सहित हर तरह से हिन्दुत्व का ही मुद्दा है, तो बात जब आतंकवाद या पाकिस्तान से मिलने वाली चुनौतियों की आती है, तो वह मुद्दा भी न चाह कर भी राष्ट्रवाद से अधिक हिन्दुत्व का बन जाता है।
ये है मोदी का ब्रह्मास्त्र
इन तमाम चुनौतियों से निपटने के लिए नरेन्द्र मोदी के पास सबसे बड़ी शक्ति क्या है? हाँ जी, नरेन्द्र मोदी के समक्ष सबसे बड़ा शस्त्र है अध्यात्म। प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही नरेन्द्र मोदी के मुँह से भगवान श्री कृष्ण से लेकर गौतम बुद्ध और रामकृष्ण परमहंस से लेकर स्वामी विवेकानंद तक जैसे महापुरुषों के नाम कई बार सुनाई दिए और हमेशा देते रहेंगे। ये तमाम पौराणिक या ऐतिहासिक महापुरुष आध्यात्मिक गुरु थे और नरेन्द्र मोदी के भीतर भी कहीं न कहीं एक आध्यात्मिक पुरुष छिपा हुआ है।
भारतीय अध्यात्म एक ऐसी विधा है, जो मात्र मानव कल्याण की बात करता है। उसमें न किसी हिन्दू की बात होती है और न किसी अन्य धर्म की। मोदी ने जब गुजरात में विकास का नारा दिया, तो वे अक्सर तर्क देते थे कि यदि किसी गाँव में नर्मदा का पानी आएगा, तो वह पूरे गाँव को मिलेगा। फिर उसमें हिन्दू को मिलेगा या मुस्लिम को मिलेगा, इस तरह का प्रश्न ही कहाँ उठता है। बस, मोदी की यही सोच उन्हें धर्मांतरण सहित हर विवादास्पद मुद्दों पर उपजने वाले धर्म संकट से उबारेगी।