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जेएनयू में जिहादियों, राष्ट्रविरोधियों की जड़ें मजबूत, उठे 5 सवाल

By श‍िवानंद द्व‍िवेदी
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कुछ महीनों पहले सुब्रामण‍ियम स्वामी ने ट्वीट किया, "मुझे लगता है कि जेएनयू के परिसर में नारकोटिक्स रोधी ब्यूरो का शाखा कार्यालय खोलने की जरूरत है, जो छात्रावासों में छापे मारे और नक्सलियों, जिहादियों और राष्ट्रविरोधियों को गिरफ्तार करे। बीएसएफ का शिविर भी हो।"

JNU

इस ट्वीट पर जमकर बवाल हुआ, लेकिन जब पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगे, तो एक बार फिर सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या वाकई में जेएनयू राष्ट्रविरोध‍ियों और जिहादियों का गढ़ है।

हालांकि स्वामी के बयान और जेएनयू के वामपंथी छात्र संगठनों में जम्मू-काश्मीर को लेकर राष्ट्र विरोधी सोच का सही मूल्यांकन केवल वर्तमान घटनाक्रम के आधार पर नहीं किया जाना चाहिए। इतिहास में दफ़न उन तमाम तथ्यों से पर्दा उठाने पर यह स्पष्ट होगा कि सुब्रमन्यन स्वामी क्यों ठीक हैं और जेएनयू का वाम धड़ा क्यों राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल है? खैर इतिहास बाद में पढ़ेंगे, अभी वर्तमान में जीते हैं। और वर्तमान कई सवाल खड़े कर रहा है?

पहला सवाल- क्यों नहीं हुई शिनाख्त?

जिस वोटिंग में जम्मू-कश्मीर को भारत का अभ‍िन्न अंग नहीं माना गया, उसमें उन 19 वोटों की शिनाख्त क्यों नहीं की की गई जो कहते हैं जम्मू-काश्मीर हमारा नहीं?

दूसरा सवाल- यह अलगाववाद नहीं तो क्या?

अगर जेएनयू में अलगाववादी ताकतों के लिए बौद्धिक सेल के रूप अकादमिक स्तर पर काम हो रहा है, तो उसे रोका क्यों नहीं जाता है? जम्मू-काश्मीर पर हुई वोटिंग ने यह साबित कर दिया है कि आज भी जेएनयू में अलगावादी ताकतों का बोलबाला है, और उनको रोकने के लिए राज्य अगर सख्ती से पेश नहीं आया तो यह और घातक होगा।

तीसरा सवाल- क्यों नहीं स्थापित करते एंटी-नारकोटिक्स सेल?

स्वामी ने जेएनयू में जिस एंटी-नारकोटिक्स सेंटर की स्थापना की मांग उठाई है, उसमें कोई बुरी बात तो नही। दुनिया के कई देशों के शैक्षणिक संस्थान अपने कैम्पस में एंटी-नारकोटिक्स केंद्र खोलकर सुधार कार्यक्रम चलाते हैं। फिर जेएनयू के वामपंथियों को इससे दर्द क्यों होता है?

चौथा सवाल- रार्ष्टविरोधी विमर्श क्यों?

सही मायने में अगर देखा जाय तो वैचारिकता की खाल ओढ़कर बौद्धिक सेल के तौर पर काम कर रहे इन जेएनयू के वामपंथी संगठनों का एक मात्र उद्देश्य है- देश में राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को विमर्श में हवा देना और देश की मूल संस्कृति के खिलाफ बौद्धिक कु-प्रचार करना। इसके लिए इनको बाकायदे कांग्रेस शासन से परोक्ष मदद मिलती रही है। लेकिन न जाने क्यों सरकार कोई ऐक्शन नहीं लेती।

पांचवां सवाल- क्यों डरते हैं खुलेपन से?

अब चूंकि आंतरिक राजनीति से लगाये प्रतिनिधित्व तक में सभी विचारों के प्रतिनिधित्व वाले लोगों को शामिल करने का अवसर पैदा हो रहा है तो इनके पेट में दर्द उठ रहा है। इस दर्द को ये फासीवाद और भगवाकरण कहकर तो प्रचारित करते हैं, लेकिन यह नहीं बता पाते कि पिछले चालीस-पचास साल में इन्होने दुसरी विचारधारा को अपने आंगन में कितनी जगह दी है? अगर आपको लोकतंत्र में यकीन है तो कॉमरेड विचारधाराओं के खुलेपन से आप इतना डरते क्यों हैं?

Comments
English summary
The smell of Jihadi and anti-nation elements is being felt in Jawaharlal Nehru Campus. If not then answer these five questions.
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