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'कहीं हिंदी दिवस हिंदी श्रद्धांजली दिवस ना बन जाये'

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आँचल प्रवीण

स्वतंत्र पत्रकार
आंचल पत्रकारिता एवं जनसंचार में पोस्ट ग्रेजुएट हैं, आंचल को ब्लोगिंग के अलावा फोटोग्राफी का शौक है, वे नियमित रूप से राष्ट्रीय और अंतरष्ट्रीय मुद्दों पर लिखती रहती हैं|

बड़े दुर्भाग्य की बात है की हिंदी हमारी राष्टभाषा मातृभाषा तो है पर हमारे भीतर से हिंदी का अस्तित्व कहीं खोता सा जा रहा है। हिंदी में बात करना हम अपनी शान के ख़िलाफ़ समझते हैं, लोगों के बीच में हिंदी में बात करना सिर्फ हमारे स्टेटस को लो करता है।

हिंदी दिवस: आज लोग हिंदी नहीं 'हिंगलिश' बोलते हैं, क्यों?हिंदी दिवस: आज लोग हिंदी नहीं 'हिंगलिश' बोलते हैं, क्यों?

वो भाषा जिसने हमारी सोच को नए आयाम दिए आज सिर्फ एक ऐसी भाषा बन कर रह गयी है जिसमे गालियाँ देने में लोगों को फील आता है। किसी अहम् मुद्दे पर बहस हो या किसी कंपनी के लिए हाउस जर्नल में छपा लेख; अंग्रेजी में लिखे और बोले जाने वाली बातें ही गहरी मानी जाने लगी है और बाकी सभी भाषाएँ सतही हो चली है।

हिंदी दिवस: मुझे अपनों ने लूटा.. गैरों में कहां दम था...

पत्रकारिता और मीडिया कई मुामलों में हिंदी भाषा और क्षेत्रीय भाषा को महत्व दे रहे हैं लेकिन यदि जड़ों में देखें तो हिंदी न जाने कहाँ खो गयी है, क्या मालूम गलती किस स्तर पर हुई पर आज उसका असर काफी भयानक नज़र आ रहा है। जिस देश में लोगों को अपने चिन्ह और अपनी भाषा का ज्ञान नहीं उस देश की प्रगति के मार्ग पर सिर्फ रोड़ें ही नज़र आते हैं।

हिंदी ने छुटाये लोगों के पसीने

हिंदी दिवस पर आज कुछ ऐसा ही किस्सा सामने आया। स्नातक के छात्रों से यूँ ही हिंदी के आयाम व स्वरुप पर चर्चा करते हुए जब उन्हें इस विषय पर एक निबंध लिखने के लिए दिया तो बच्चों के पसीने छूट गए। सभी छात्र अच्छे घरों से ताल्लुक रखते थे और सभी ने अच्छे विद्यालाओं से पढाई की थी लेकिन हिंदी लिखने के नाम पर सभी के चहरों पर बारह बजे हुए थे। उनका कहना था की इसी विषय पर वे अंग्रेजी में बड़े से बड़ा लेख लिख सकते हैं| पर न जाने क्यों हिंदी में 100 शब्द भी लिख पाना उनके लिए दूभर हो गया था| आखिर अपनी मातृभाषा से इतना सौतेलापन क्यों?

मातृभाषा से इतना सौतेलापन क्यों?

जहाँ तक मेरी सोच का दायरा जाता है; इस सौतेलेपन की शुरुआत तभी से हो जाती है जब से हम पैदा होते हैं| पैदा होते ही बच्चों को A B C सिखाया जाता है| किसी माँ बाप ने अपने बच्चों को कभी भी क ख ग पढ़ने की ज़हमत नहीं उठाई। आजकल बच्चों को खाने में चपाती ही पसंद है रोटी का मतलब उन्हें नहीं पता, वे रजाई में नहीं कुइल्ट में सोते हैं| उनकी फवोरेट बर्ड पैरेट है, पसंदीदा पक्षी क्या होता है वे नहीं जानते|

गणपति देव उनके लिए लार्ड गणेशा हैं| बा बा ब्लैक शीप तो वो जानते हैं पर काली भेंड़ क्या होती है उन्हें नहीं पता| अभिभावक बोलते हैं बेटा आईज बता दो अंकल को नोज बताओ, टंग बताओ तो बच्चा सब बता लेगा; पर कहीं गलती से किसी ने पूछ लिया की बेटा आँखे बताओ, नाक बताओ या जीभ बताओ तो बेटा पहले अपने घरवालों का चेहरा देखेंगे की यह आउट ऑफ़ दी कोर्स क्वेश्चन क्यों पूछा?

आउट ऑफ़ दी कोर्स क्वेश्चन क्यों पूछा?

आज चाचा ताऊ मामा सो डाउन मार्किट हो गयें हैं| केवल अंकल ही फैशन में हैं| हमारे स्कूलों में भी बच्चों को हिंदी बोलने पर फाइन लगा दिया जाता है| हिंदी विषय में कुछेक कहानियों के सिवाय कुछ और नहीं पढाया जाता जिसे बच्चे रट कर किसी तरह से पास हो जाते हैं| हिंदी विषय में फेल को फेल नहीं माना जाता| मात्राओं और वर्तनी की अशुद्धियों पर तो कभी विचार किया ही नहीं गया| ऐसे में व्याकरण और उच्चारण पर ध्यान देना तो बहुत दूर की बात हो गयी| अब इन हालातों में बच्चे कैसे सीख पाएंगे| और फिर यूँही धीरे धीरे हमारी मातृभाषा बे मौत मारी जाएगी।

धीरे-धीरे हमारी मातृभाषा बे मौत मारी जाएगी

आज लोगों को कोई भी भाषा पूरी नहीं आती| न ही वे हिंदी में पारंगत है और ना ही अंग्रेजी में| हिंदी से तो वो इतनी दूर भागते हैं मानो किसी दुसरे ग्रह का एलियन पीछे पड़ गया हो| हम अब तक अंग्रेजी के लिए पागल पागल फिरते थे और अब हमें फ्रेंच और जर्मन सिखने का भूत सवार है पर हमारे पास जो इतना मूल्यवान साहित्य है उसकी ओर हम देखना भी नही चाहते| किसी भी पुस्तक मेले में अंग्रेजी की स्टाल पर भीड़ रहती है और हिंदी साहित्य केवल पाठको की राह तकते हुए वापस अपने बंडलों में चला जाता है।

हिंदी दिवस मनाते मनाते हम कहीं हिंदी श्रद्धांजली दिवस न मनाने लग जाएं

जो लोग अपनी भाषा को नही सीख पाते वे किसी दूसरी भाषा को कैसे अपना पाएँगे| देश का विकास उसकी भाषा और उसके चिन्हों के विकास से ही संभव है| हिंदी दिवस मनाते मनाते हम कहीं हिंदी श्रद्धांजली दिवस न मनाने लग जाएं इस बात का विशेष ध्यान रखना पड़ेगा|

My Voice: हिंदी हिंदुस्तान की पहचान है इसलिए...

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English summary
Hindi Diwas is an annual literary-day celebrated on 14 September in Hindi speaking regions of India, The event also serves as a patriotic reminder to Hindi-speaking populations of their common roots and unity.
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