अपराध और सियासत के कॉकटेल ने शहाबुद्दीन को बनाया बाहुबली, पढ़िए पूरी क्राइम कुंडली
नई दिल्ली। बिहार के सीवान से निकलकर पूरे राज्य में अपने बाहुबल के दम पर छाने वाले शहाबुद्दीन को आखिरकार 11 साल बाद जेल से बाहर की हवा नसीब होगी। हत्या के आरोप में जेल में बंद शहाबुद्दीन को पटना हाई कोर्ट ने जमानत दे दी है। अपराध और राजनीति का जो कॉकटेल पूर्व आरजेडी सांसद ने किया वह काफी चर्चा में रहा। पढ़िए, शहाबुद्दीन की क्राइम कुंडली...
बाहुबली से नेता बने शहाबुद्दीन 11 साल बाद जेल से हुए रिहा
10 मई 1967 को सीवान के प्रतापपुर में पैदा हुए मोहम्मद शहाबुद्दीन ने राजनीति से पहले अपराध की दुनिया में कदम रखा। कॉलेज के दिनों से ही आपराधिक गतिविधियों में स्टूडेंट पॉलिटिक्स में शहाबुद्दीन का नाम रहा। शहाबुद्दीन के खिलाफ पहला आपराधिक मामला 1986 में दर्ज हुआ था। इसके बाद यह नाम अपराध की दुनिया में छाया रहा और पुलिस के पसीने छूटते रहे। सीवान के हुसैनगंज पुलिस स्टेशन में शहाबुद्दीन का नाम हिस्ट्रीशीटर टाइप 'ए' अपराधियों में दर्ज है। इस कैटेगरी के अपराधियों में सुधार की गुंजाइश नहीं देखी जाती। PICS: धोनी की पत्नी साक्षी संग यह रोमांटिक तस्वीर तेजी से हो रही है वायरल, जानिए वजह
बिहार की राजनीति में शहाबुद्दीन के 'युवा' कदम
बिहार के सियासी गलियारे में शहाबुद्दीन को लालू प्रसाद का साथ मिला। लालू की छत्रछाया में शहाबुद्दीन ने जनता दल की यूथ विंग ज्वाइन की। 1990 और 1995 में विधानसभा चुनाव जीतकर शहाबुद्दीन का कद और बढ़ गया। 1996 में जनता दल के ही टिकट पर शहाबुद्दीन ने लोकसभा चुनाव में किस्मत आजमाई और यहां भी जीत हासिल की। बिहार में उस वक्त लालू प्रसाद का राज था और 1997 में राष्ट्रीय जनता दल के गठन के साथ शहाबुद्दीन की ताकत अचानक और बढ़ गई।
मिलिए कश्मीर के एक और वानी से, जिस पर आपको फक्र होगा
पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज ने 2001 में अपनी रिपोर्ट में लिखा कि 'आरजेडी सरकार ने शहाबुद्दीन को इतनी छूट दी कि पुलिस उसकी ओर आंख उठाने से भी डरती थी। यही मौका था जब शहाबुद्दीन ने सीवान को अपने आतंक के गढ़ में तब्दील कर दिया। उसका खौफ इस कदर बढ़ा कि किसी में उसके खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत नहीं रही। जिन केसों में वह आरोपी था, वह भी दब गए।'
जब पुलिस और शहाबुद्दीन के बीच चली गोली
मार्च 2001 में पुलिस ने आरजेडी के स्थानीय नेता मनोज कुमार 'पप्पू' के खिलाफ जारी वारंट पर कार्रवाई करने की कोशिश की तो शहाबुद्दीन ने वहां अडंगा लगाया। यही नहीं, शहाबुद्दीन ने नेता को गिरफ्तार करने गए अधिकारी संजीव कुमार को थप्पड़ भी मारा, जबकि उनके साथियों ने पुलिसकर्मियों की पिटाई की। इसके बाद गुस्से में आई पुलिस ने तमाम यूनिटों को इकट्ठा किया और यूपी पुलिस को साथ लेकर शहाबुद्दीन के आवास का घेराव किया। इस दौरान दोनों ओर से हुई फायरिंग में दो पुलिसकर्मियों और आठ अन्य की मौत हुई थी। घटना में शहाबुद्दीन और उनके साथी मौके से भागने में कामयाब रहे। इसके बाद शहाबुद्दीन के खिलाफ कई और मुकदमे दर्ज हुए।
सीवान में चलती थी शहाबुद्दीन की कंगारू अदालत
शहाबुद्दीन का आतंक तेजी से बढ़ रहा था। साल 2000 के आसपास उनकी ताकत में इतना इजाफा हो चुका था कि वह खुद की अदालत बन चुके थे। शहाबुद्दीन सीवान में खुद अपना प्रशासन चलाते थे और कंगारू अदालतों का आयोजन भी होता था। इन अदालतों में पारिवारिक मुद्दों से लेकर जमीन के विवाद और शादी विवाह के विवाद भी सुलझाए जाते थे।
जेल से लड़कर जीता चुनाव
2004 के लोकसभा चुनावों से करीब आठ महीने पहले शहाबुद्दीन को 1999 में सीपीआई (एमएल) के एक कार्यकर्ता के अपहरण और हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी के बाद जेल में रहने के बजाय शहाबुद्दीन ने अपनी रसूख का इस्तेमाल कर खुद को अस्पताल में शिफ्ट करा लिया, जहां पूरा फ्लोर उनके नाम कर दिया गया। यहां उनकी चुनावी चौपाल चलती थी, जहां उनसे कोई भी मिल सकता था। रोजाना शाम चार बजे वह लोगों की शिकायतें सुनते थे। दिलचस्प बात ये थी कि इन्ही याचियों के बीच एक पुलिसवाला भी था जो अपने प्रमोशन की अर्जी लेकर पहुंचा था। कहा जाता है कि शहाबुद्दीन ने तुरंत अधिकारियों को फोन करके पुलिसकर्मी का प्रमोशन कराया।
पढ़ें: बेटे की चाह में मां ने किया 4 माह की मासूम का कत्ल
चुनाव के समय सीवान में किसी उम्मीदवार की हिम्मत नहीं थी कि वे प्रचार कर सकें। लोग शहाबुद्दीन के भय के कांपते थे। विरोधियों के पोस्टर और बैनर लगाने वाले कई लोगों की हत्या भी कर दी गई। चुनाव से कुछ दिन पहले पटना हाई कोर्ट ने सरकार को सख्त आदेश देते हुए कहा कि शहाबुद्दीन को जेल में ही रखा जाए, न कि अस्पताल में। चुनाव में जमकर धांधली जामने आई औप करीब 500 पोलिंग बूथों पर लूट और जहरन वोट डालने के मामले सामने आए। बाद में चुनाव आयोग ने वहां दोबारा वोटिंग का आदेश दिया था।
चुनाव में जीत और हत्याओं का सिलसिला
2004 लोकसभा चुनावों में शहाबुद्दीन की जीत हुई। शहाबुद्दीन के प्रतिद्वंद्वी जेडीयू नेता ओम प्रकाश यादव ने 33.5 फीसदी वोट हासिल किया। जबकि 1999 के चुनावों में जेडीयू का वोट प्रतिशत 7.5 था, जो कि उनके लिए खुशी की बात थी। चुनाव परिणाम आने के कुछ की दिन में जेडीयू के 9 कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गई और कई लोगों को सरेआम पीटा भी गया। जिस इलाके में ओम प्रकाश को ज्यादा वोट मिले वहां के मुखिया की भी हत्या कर दी गई। इसके बाद ओम प्रकाश की सुरक्षा कड़ी कर दी गई। चुनाव के बाद शहाबुद्दीन पर गलत हलफनामा देने की भी शिकायत दर्ज की गई। शहाबुद्दीन ने हलफनामे में कहा कि था उन पर 19 केस दर्ज हैं जबकि असल में 34 केस थे।
घर में मिले हथियार और ISI से लिंक होने का दावा
साल 2004 के बाद शहाबुद्दीन का बुरा वक्त आया और एक हार फिर उन्हें जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ा। अप्रैल 2005 में पुलिस ने उनके प्रतापपुर स्थित शहाबुद्दीन के आवास में छापेमारी की और भारी मात्रा में अवैध हथियार बरामद किए। इस दौरान सिर्फ सेना के लिए इस्तेमाल होने वाले हथियार भी वहां मिले। इनमें से कुछ हथियार पाकिस्तान में भी बने थे। बिहार के तत्कालीन डीजीपी डीपी ओझा ने रिपोर्ट में शहाबुद्दीन के आईएसआई से लिंक होने का भी संदेह जाहिर किया था। इसके बाद उनके खिलाफ आठ गैरजमानती वारंट जारी किए गए।
आखिरकार हुई गिरफ्तारी
तत्कालीन यूपीए सरकार में आरजेडी भी गठबंधन का हिस्सा थी। इसका फायदा भी शहाबुद्दीन को मिला और तमाम केसों में वारंट जारी होने के बावजूद वह दिल्ली स्थित आधिकारिक सांसद निवास में रह रहे थे। आखिरकार नवंबर 2005 में बिहार पुलिस की एक टीम ने बिना किसी को जानकारी दिए शहाबुद्दीन को उनके आधिकारिक आवास से गिरफ्तार कर लिया। शहाबुद्दीन ने सुप्रीम कोर्ट तक में जमानत याचिका दी, लेकिन कोर्ट ने यह कहकर खारिज दिया कि एक सांसद के पास जो हथियार मिले हैं वे पुलिस और सीआरपीएफ के पास भी नहीं हैं। क्या उन्होंने इसीलिए चुनाव जीता है।
अपराधों का पुलिंदा और तारीख पर तारीख
मई 2006 में बिहार की नीतीश सरकार ने अपराध खत्म करने के उद्देश्य से कई स्पेशल कोर्ट बनाईं। सांसद सूरज भान सिंह और प्रभुनाथ सिंह भी शामिल थे, जो नीतीश की पार्टी, जेडीयू से ही थे। हालांकि शहाबुद्दीन ने मेडिकल रिपोर्ट का हवाला दिया और चलने में समस्या बताकर कोर्ट में पेशी में खुद को असमर्थ बताया। इसके बाद सीवान जेल में ही दो स्पेशल कोर्ट स्थापित की गईं, ताकि शहाबुद्दीन के खिलाफ दर्ज मामलों की सुनवाई हो सके। उस समय शहाबुद्दीन के खिलाफ 30 से ज्यादा मामले दर्ज थे, जिनमें हत्या के 8 और 20 हत्या का प्रयास, अपहरण, वसूली के मामले थे।
पढ़ें: आईफोन 7 बेचने के लिए एप्पल ने चली नई चाल
कहा जाता है कि पुलिस ने जितने केस दर्ज किए उससे कहीं ज्यादा मामलों की रिपोर्ट ही नहीं हुई। मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया कि शहाबुद्दीन के प्रतापपुर पैलेस में कम से कम 100 लाशें दफना दी गईं थीं।
केस आते गए, सजा होती गई
मार्च 2007 में सीवान कोर्ट ने शहाबुद्दीन को सीपीआई-एमएल के दफ्तरों में तोड़फोड़ और मारपीट के आरोप में दोषी ठहराया और दो साल जेल की सजा सुनाई। कोर्ट ने उन पर एक हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया। मई 2007 में शहाबुद्दीन को सीपीआई-एमएल कार्यकर्ता छोटे लाल गुप्ता के अपहरण और हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया। इस मामले में शहाबुद्दीन को उम्रकैद की सजा सुनाई गई।
चुनाव
लड़ने
पर
लगी
रोक,
पत्नी
को
मैदान
में
उतारा
अदालत
ने
2009
में
शहाबुद्दीन
के
चुनाव
लड़ने
पर
रोक
लगा
दी.
इसके
आरजेडी
ने
शहाबुद्दीन
की
पत्नी
हिना
शहाब
को
टिकट
दिया।
हालांकि
इस
चुनाव
में
शहाबुद्दीन
का
जोर
काम
नहीं
आया
और
जेडीयू
नेता
ओम
प्रकाश
यादव
ने
हिना
को
63000
वोटों
से
हरा
दिया।
इस मामले में मिली है जमानत
शहाबुद्दीन को जून 2014 में हुए बहुचर्चित राजीव रौशन हत्याकांड में आरोपी बनाया गया। इस मामले में पटना हाई कोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी। मामले में शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा पर हत्या का आरोप लगा था। हालांकि बाद में शहाबुद्दीन पर साजिश रचने का आरोप लगा। इसके पहले पूर्व सांसद को दूसरे मामलों में भी जमानत मिल चुकी है। राजीव 16 अगस्त 2004 को सीवान में गिरीश राज और सतीश राज नाम के दो भाइयों की हत्या का चश्मदीद गवाह था। इन दोनों की हत्या का इल्जाम शहाबुद्दीन पर है।