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प्लासी युद्ध: नवाब सिराजुद्दौला से छल से जीते थे लार्ड क्लाइव

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आँचल प्रवीण

स्वतंत्र पत्रकार
आंचल पत्रकारिता एवं जनसंचार में पोस्ट ग्रेजुएट हैं, आंचल को ब्लोगिंग के अलावा फोटोग्राफी का शौक है, वे नियमित रूप से राष्ट्रीय और अंतरष्ट्रीय मुद्दों पर लिखती रहती हैं।

कहा जाता है प्यार और जंग में सब जायज़ है। इतिहास गवाह है की आजतक जितने भी युद्ध हुए उसमें किसी न किसी ने कोई न कोई धोखेबाज़ी और छल ज़रूर किया। अभी इन्ही दिनों 1757 में प्लासी का युद्ध लड़ा गया था। 23 जून को इसकी सालगिरह मनाई जाती है।

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आईये आज आपको बताती हूँ प्लासी युद्ध की कुछ विशेषताएं जो आपको जानना ज़रूरी है..

मुर्शिदाबाद के पास प्लासी में हुआ था युद्ध

प्लासी का युद्ध 23 जून 1757 को मुर्शिदाबाद के दक्षिण में 22 मील दूर नदिया जिले में गंगा नदी के किनारे 'प्लासी' नामक स्थान में हुआ था। इस युद्ध में एक ओर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना थी तो दूसरी ओर थी बंगाल के नवाब की सेना। कंपनी की सेना ने रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में नबाव सिराज़ुद्दौला को हरा दिया था। युद्ध को भारत के लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण माना जाता है इस युद्ध से ही भारत की दासता की कहानी शुरू होती है।

कौन थे रोबर्ट क्लाइव

राबर्ट क्लाइव (1725-1774 ई.) भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के संस्थापक थे| इनका मन पढाई लिखाई में तो लगता नहीं था बस इनके पिता जी इन्हें पढ़ाने के चक्कर में कभी किसी तो कभी किसी स्कूल में डाला करते थे | १८ वर्ष की आयु में मद्रास के बंदरगाह पर क्लर्क बनकर आये। यहीं से उसका ईस्ट इंडिया कंपनी का जीवन आरंभ होता है।

कौन थे नवाब सिराजुद्दौला

सिराज-उद्दौला (1733-2 जुलाई,1757) बंगाल, बिहार और उड़ीसा के संयुक्त नवाब थे। उनके शासन का अंत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन का आरंभ माना जाता है। अंग्रेज़ उसे हिन्दुस्तानी सही ना बोल पाने के कारण सर रोजर डॉवलेट कहते थे। इनका पूरा नाम मिर्ज़ा मोहम्मद सिराज उद-दवला था|

युद्ध के कारण

कम्पनी हर हाल अपने व्यापारिक हितों की रक्षा और उनका विस्तार चाहती थी। कम्पनी 1717 मे मिले दस्तक पारपत्र का प्रयोग कर के अवैध व्यपार कर रही थी जिस से बंगाल के हितों को नुकसान होता था। नवाब जान गया था की कम्पनी सिर्फ़ व्यपारी नही थी उसका नाना अलिवार्दी खान मरने से पहले उसको होशियार कर गया था।

हितों की रक्षा करे

1756 की संधि नवाब ने मजबूर हो कर की थी जिस से वो अब मुक्त होना चाहता था कम्पनी ख़ुद ऐसा शासक चाहती थे जो उसके हितों की रक्षा करे। मीर जाफर, अमिचंद, जगतसेठ आदि अपने हितों की पूर्ति हेतु कम्पनी से मिल कर जाल बिछाने मे लग गए।

क्लाइव को था हार का डर

रोबर्ट क्लाइव ये जानता था की आमने सामने का युद्ध हुआ तो एक घंटा भी नहीं लगेगा और हम युद्ध हार जायेंगे और क्लाइव ने कई बार चिठ्ठी लिख के ब्रिटिश पार्लियामेंट को ये बताया भी था। इन दस्तावेजों में क्लाइव की दो चिठियाँ भी हैं। जिसमे उसने ये प्रार्थना की है की अगर पलासी का युद्ध जीतना है तो मुझे और सिपाही दिए जाएँ। उसके जवाब में ब्रिटिश पार्लियामेंट के तरफ से ये चिठ्ठी भेजी गयी थी की हम अभी (1757 में) नेपोलियन बोनापार्ट के खिलाफ युद्ध लड़ रहे हैं और पलासी से ज्यादा महत्वपूर्ण हमारे लिए ये युद्ध है और इस से ज्यादा सिपाही हम तुम्हे नहीं दे सकते।

जासूस लगा कर पता किया

रोबर्ट क्लाइव ने तब अपने दो जासूस लगाये और उनसे कहा की जा के पता लगाओ की सिराजुदौला के फ़ौज में कोई ऐसा आदमी है जिसे हम रिश्वत दे लालच दे और रिश्वत के लालच में अपने देश से गद्दारी कर सके। उसके जासूसों ने ये पता लगा के बताया की हाँ उसकी सेना में एक आदमी ऐसा है जो रिश्वत के नाम पर बंगाल को बेच सकता है और अगर आप उसे कुर्सी का लालच दे तो वो बंगाल के सात पुश्तों को भी बेच सकता है। और वो आदमी था मीरजाफर और मीरजाफर ऐसा आदमी था जो दिन रात एक ही सपना देखता था की वो कब बंगाल का नवाब बनेगा।

छल से हराया था सिराजउददौला को

इस तरह से युद्ध से पूर्व ही नवाब के तीन सेनानायक, उसके दरबारी, तथा राज्य के अमीर सेठ जगत सेठ आदि से कलाइव ने षडंयत्र कर लिया था। और इस तरह से अंग्रेजों ने भारत में शासन की नींव डाली।

Comments
English summary
The Battle of Plassey was a decisive victory of the British East India Company over the Nawab of Bengal and his French allies on 23 June 1757. The battle consolidated the Company's presence in Bengal, which later expanded to cover much of India over the next hundred years.
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