दुर्ग: पानी में यूरेनियम तत्व को खत्म करेगा, आंवले की छाल से बना नैनो पार्टिकल, बार्क ने किया अनुमोदन
एजुकेशन हब भिलाई में (BIT Durg) के प्रोफेसर व शोधार्थियों की टीम ने अपनी एक नई खोल से एक बार फिर पूरे देश में अपनी पहचान बनाई है। शोधार्थियों ने पानी में यूरेनियम के तत्व को समाप्त करने वालऐसा नैनो पार्टिकल तैयार किया है
दुर्ग, 04 अगस्त। छत्तीसगढ़ के भिलाई को एजुकेशन हब कहा जाता है। भिलाई इस्पात संयंत्र के कारण इस्पात नगरी के नाम से देश भर में मशहूर है। लेकिन एजुकेशन हब भिलाई में भिलाई इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी(BIT Durg) के प्रोफेसर व शोधार्थियों की टीम ने अपनी एक नई खोल से एक बार फिर पूरे देश में अपनी पहचान बनाई है। शोधार्थियों ने पानी में यूरेनियम के तत्व को समाप्त करने वाले एक ऐसा नैनो पार्टिकल तैयार किया है, जो आंवले की छाल से बनता है।
भारत
सरकार
के
भाभा
एटॉमिक
सेंटर
से
मिला
था
प्रोजेक्ट
इस
खोज
की
जानकारी
देते
हुए
भिलाई
इंस्टीट्यूट
ऑफ
टेक्नोलॉजी
दुर्ग
के
पर्यावरण
विभाग
के
अध्यक्ष
डॉ.
संतोष
सार
ने
बताया
की
भारत
सरकार
के
डिपार्टमेंट
ऑफ
एटॉमिक
एनर्जी,
भाभा
एटॉमिक
सेंटर
से
साल
2018
में
"राष्ट्रीय
यूरेनियम
प्रोजेक्ट"
के
रूप
में
एक
प्रोजेक्ट
दिया
गया
था।
इस
प्रोजेक्ट
का
उद्देश्य
पूरे
देश
में
यूरेनियम
का
ब्लू
प्रिंट
तैयार
करना
था।
जब
इस
विषय
पर
शोध
शुरू
किया
गया
तो
पता
चला
कि
छत्तीसगढ़
के
बहुत
से
गांवों
के
उपयोग
हो
रहे
पेयजल
में
भी
यूरेनियम
के
तत्व
हैं।
इन
गांवो
के
पानी
में
मिले
यूरेनियम
के
तत्व
छत्तीसगढ़
के
दुर्ग
जिले
के
औंरी,
राजनांदगांव
जिले
के
बोदाल,
बालोद
जिले
के
देवतराई
और
कवर्धा
जिले
के
राका
गांव
के
पानी
में
यूरेनियम
के
तत्व
मिले।
इन
सभी
गांव
के
पानियों
को
लैब
में
जांच
करने
पर
पता
चला
कि
पानी
में
यूरेनियम
की
मात्रा
60
पार्ट्स
पर
बिलियन
(PPB)
है,
और
यह
पानी
पेयजल
योग्य
नहीं
है।
यूरेनियम
युक्त
पानी
पीने
से
यहां
के
ग्रामीणों
को
किडनी
में
साइड
इफेक्ट्स
के
साथ-साथ
सांस
लेने
में
तकलीफ
हो
रही
थी।
शोधार्थियों के सामने थी चुनौती
इसके बाद यहां के भू-जल की जांच 14 पैरामीटर पर की गई। यहां के पानी में पाए जाने वाले यूरेनियम की मात्रा की जांच की गई। अब शोधार्थियों के सामने पानी से यूरेनियम के साइड इफेक्ट को खत्म करने की एक बड़ी चुनौती थी। अब इस पर शोधार्थियों ने शोध शुरू किया और बहुत से पेड़ों व ऑर्गेनिक तत्वों को लेकर यूरेनियम के तत्व को समाप्त करने की कोशिश की जा रही थी। शोध के दौरान पाया गया कि आंवले की छाल से बने नैनो पार्टिकल आकृति में काफी छोटे होने के साथ-साथ पानी में जल्द घुल जाते हैं। इससे यह यूरेनियम के साइड इफेक्ट को आसानी से खत्म कर सकता है।
90
फीसदी
कारगर
रहा
नया
फार्मूला
इस
खोज
के
बाद
तय
हुआ
कि
पानी
में
यूरेनियम
की
मात्रा
को
अलग
करने
के
लिए
आंवले
के
छाल
का
उपयोग
किया
जाएगा।
शोधार्थियों
ने
बताया
कि
आंवले
के
छाल
में
आयरन
के
तत्व
पाए
जाते
हैं।
आयरन
के
संपर्क
में
आने
से
यूरेनियम
जल्दी
क्रिया
करने
लगता
है।
इससे
पानी
का
सरफेस
एरिया
बढ़
जाता
है।
इसमें
हाइड्रोजन
सांद्रता
सामान्य
हो
जाती
है।
बायो
एब्जार्वेंट
25
एमएम
प्रति
लीटर,
रूम
टेम्प्रेचर
28
डिग्री
तक
रखने
में
यह
90
फीसदी
कारगर
साबित
हुआ
है।
इसकी
आकृति
12
नैनो
मीटर
है।
इसकी
वजह
से
यह
पानी
में
जल्दी
और
ज्यादा
मात्रा
में
घुल
जाता
है।
इसे
पीने
से
शरीर
में
मेटाबोलिक
क्रिया
होती
है
और
विषैले
पदार्थ
उत्सर्जन
तंत्र
से
बाहर
निकल
जाते
हैं।
बार्क
ने
किया
अनुमोदन,
पेटेंट
की
तैयारी
इस
तरह
पूरे
प्रोजेक्ट
में
स्वामी
विवेकानंद
तकनीकी
विश्वविद्यालय
के
सहयोग
से
काम
शुरू
किया
गया
था।
यहां
के
चार
शोधार्थियों
पूनम
देशमुख,
विजिता
दीवान,
मनोज
जिंदल
और
मेघा
साहू
ने
इस
पर
काफी
मेहनत
किया।
इन्होंने
पानी
में
यूरेनियम
की
सांद्रता,
उसका
डिटरमिनेशन,
रेडिएशन,
बायो
एब्जार्वेंट,
नॉन
टॉक्सिक
केमिकल
आदि
विषय
पर
काम
किया
गया।
इनकी
मदद
से
पानी
से
यूरेनियम
को
निकालने
के
लिए
आंवले
की
छाल
से
नैनो
पार्टिकल
बनाया
गया।
शोधार्थी
पूनम
देशमुख
ने
छत्तीसगढ़
के
बायो
एब्जार्वेंट,
नॉन
टॉक्सिक
केमिकल
को
मिलाकर
नैनो
पार्टिकल
बनाया।
।बीआईटी
में
हुए
इस
शोध
का
अनुमोदन
भाभा
एटॉमिक
रिसर्च
सेंटर
(बार्क)
ने
कर
दिया
है।
अब
इसके
पेटेंट
की
तैयारी
की
जा
रही
है।
पानी
में
कितनी
होनी
चाहिए
यूरेनियम
की
मात्रा
शोधार्थियों
के
अनुसार
परमाणु
ऊर्जा
नियामक
बोर्ड
(AERB)
ने
पेयजल
में
यूरेनियम
के
अंशों
की
अधिकतम
स्वीकृत
सीमा
60
पीपीबी
तय
कर
रखी
है।
लोगों
को
ऐसे
स्त्रोतों
के
पानी
का
इस्तेमाल
नहीं
करना
चाहिये,
जिनमें
यूरेनियम
के
अंश
तय
सीमा
से
ज्यादा
मात्रा
में
हों।
उन्होंने
बताया
कि
यूरेनियम
एक
रेडियोऐक्टिव
तत्व
है।
अगर
किसी
जल
स्त्रोत
में
यूरेनियम
के
अंश
तय
सीमा
से
ज्यादा
हैं।
तो
इस
तरह
के
पानी
के
सेवन
से
थाइरॉयड
कैंसर,
रक्त
कैंसर,
बोन
मैरो
डिप्रेशन
और
अन्य
गंभीर
बीमारियां
हो
सकती
हैं।
इससे
बच्चों
को
भी
कैंसर
होने
का
खतरा
रहता
है।