Chhattisgarh: 5 पॉइंट में जानिए, कैसे देशभर में प्रसिद्ध हुआ जशपुर का Agricultural मॉडल
छत्तीसगढ़ का जशपुर हमेशा से अपनी खूबसूरती के लिए अलग पहचान रखता है,लेकिन बीते कुछ सालों से यहां के किसान देशभर में नवाचार को लेकर सुर्खियां बटोर रहे हैं।
जशपुर, 04 अगस्त। छत्तीसगढ़ का जशपुर हमेशा से अपनी खूबसूरती के लिए अलग पहचान रखता है,लेकिन बीते कुछ सालों से यहां के किसान देशभर में नवाचार को लेकर सुर्खियां बटोर रहे हैं। दरअसल छत्तीसगढ़ सरकार से सहयोग मिलने के बाद जशपुर में किसान पारम्परिक खेती से अलग नवाचार कर रहे हैं,इस तरह से छत्तीसगढ़ का फेमस हिल स्टेशन जशपुर फलों की खेती समेत कई अन्य उपजो के लिए मशहूर हो चुका है।
जशपुर के नाशपती का स्वाद दिल्ली पहुंचा
खूबसूरत वादियों से घिरा छत्तीसगढ़ का जशपुर जिला कृषि क्रांति में काफी तेजी से अपनी पहचान गढ़ रहा है। जशपुर की पहाड़ियों में किसान खेती को लेकर नवाचार कर रहे हैं। वैसे तो यहां कई प्रकार की खेती हो रही है, लेकिन पहले हम नई उपलब्धि के बारे में बात करेंगे। मिली जानकारी के मुताबिक जशपुर में आदिवासी किसानों ने बीते कुछ समय से नाशपती की खेती शुरू की है,जिसका स्वाद देश की राजधानी दिल्ली को पसंद आ रहा है।
दिल्ली के अलावा उत्तरप्रदेश, रांची समेत देश के विभिन्न प्रदेशों में जशपुर की नाशपाती खरीदी जा रही है। यहां के बगीचा विकासखंड के पठारी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर नाशपाती की खेती की जा रही है। इस खेती से अंचल के किसानों को बेहतर मुनाफा मिल रहा है। जशपुर जिले में करीब रकबा 750.00 हेक्टेयर में 660 मीट्रिक टन नाशपाती का उत्पादन हो रहा है, जिससे 17 सौ से भी अधिक किसान फायदा ले रहे हैं।
सेब की खेती दे रही बंपर मुनाफा
जशपुर में किसान सेब की खेती भी कर रहे हैं। जशपुर के पहाड़ी इलाके में सेब की खेती का प्रयोग सफल साबित हुआ है। पहली बार यहां के करदना गांव में सेब के पौधे रोप गए थे, अब जशपुर के पिछड़े आदिवासी इलाके में भी ग्रामीण सेब की खेती करके बंपर मुनाफा कमा रहे हैं।
इस प्रकार छत्तीसगढ़ का सेब भी जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश की तरह देशभर के बाजारों में अपना स्थान बनाने लगा है। जशपुर की जलवायु में सेब की खेती को मिल रही सफलता को देखते हुए प्रशासन इसके विस्तार की योजना पर काम कर रहा है,ताकि कई अन्य स्थानों को चिन्हांकित करके सेब की खेती को बढ़ाया जा सके।
विदेशो में है जशपुर के टाऊ की डिमांड
जशपुर में टाऊ की फसल भी हो रही है। यहां का टाऊ तिब्बत से लेकर चीन तक निर्यात किया जा रहा है।एक समय तक इलाके में केवल टमाटर, आलू, सरसों, रामतिल, मिर्ची की खेती करने वाले किसान अब टाऊ की भी फसल लगाने लगे हैं। जिले बगीचा और मनोरा क्षेत्र के पहाड़ी गांवों में करीब 3 हजार हेक्टेयर में टाऊ की फसल की खेती हो रही है। इसके अतिरिक्त जशपुर से सटे किनकेल, आटापाठ में भी किसान टाऊ की फसल ले रहे हैं।बताया जा रहा है कि टाऊ की खेती पहले मैनपाट में रहने वाले तिब्बती समुदाय के लोग ही करते थे, शासन की योजनाओ में जिसका विस्तार किया।
जशपुर की चाय दुनियाभर में हुई फेमस
दरअसल
पर्वतीय
और
ठंडे
प्रदेशों
में
में
ही
चाय
की
खेती
होती
है।
छत्तीसगढ़
के
सरगुजा
अंचल
का
जशपुर
में
भी
जलवायु
की
स्थिति
ठन्डे
प्रदेशों
की
तरह
ही
है।
यह
जिला
ऐसे
ही
भौगोलिक
संरचना
पर
स्थित
है
,यहां
के
पठारी
इलाके
और
लैटेराइट
मिट्टी
की
होने
की
वजह
से
जशपुर
में
चाय
के
बागानों
को
विकसित
करने
के
लिए
अनुकूल
वातावरण
है।
जशपुर
की
इस
स्थिति
को
देखते
हुए
भूपेश
बघेल
सरकार
ने
यहां
चाय
की
खेती
के
लिए
पहल
करते
हुए
बागान
विकसित
किये
और
प्रसंस्करण
केंद्र
स्थापना
की
गयी
है।
लीची ,पपीता ने भी बनाई पहचान
जशपुर जिले के झिंकी नाम के एक गांव में किसान लीची की खेती करके मुनाफा कमा रहे है। खास बात यह है कि इस गांव के हर घर की बाड़ी में लीची के पौधे है।छत्तीसगढ़ सरकार ने ग्रामीणों को बाड़ी में रोजगारमूलक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया,जिसका लैह उठाकर झिंकी के किसान लाखों रुपये की आमदनी कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि इस छोटे गांव में होने वाली लीची को अम्बिकापुर के ठेकेदार खरीदकर दूसरे राज्यों में बेच देते हैं। इसके अलावा जशपुर में पपीता ,काजू समेत कई अन्य उपज का लाभ भी किसान ले रहे हैं।
भूपेश सरकार की योजनाओ ने बदली सूरत
जशपुर के किसान सरकारी भूपेश सरकार की योजनाओ का लाभ उठाकर काजू, टमाटर, मिर्च, आलू की खेती करके भी मुनाफ़ा कमा रहे हैं। दरअसल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल खुद एक किसान हैं,लिहाजा राज्य सरकार की अधिकांश योजनाओ में किसानों और खेती को बढ़ावा देने के प्रावधान हैं। इसी कारण बीते 3 सालों में खेती, बागवानी और वानिकी से जुड़े क्षेत्रों में उत्पादन से बेहतर आय देने वाली गतिविधियों को बढ़ावा मिला है। छत्तीसगढ़ सरकार की नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी योजना के मार्फत गांवों में साग-सब्जियों और स्थानीय जलवायु के आधार पर फलों के उत्पादन को भी बढ़ावा दिया जा रहा है।
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