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ऐसे छापे गए थे 500 रुपए के नए नोट, इसीलिए नोटबंदी के बाद बाजार में आने में हुई देरी

By Anujkumar Maurya
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नई दिल्ली। पिछले साल 9 नवंबर से 500 और 1000 रुपए के पुराने नोट मोदी सरकार ने बंद कर दिए थे। इसके बाद सरकार की तरफ से 500 रुपए और 2000 रुपए के नोट जारी किए थे। सरकार ने 2000 रुपए के नोट तो नोटबंदी के तुरंत बाद बाजार में उतार दिए थे, लेकिन 500 रुपए के नोट बाजार में आने में काफी लंबा समय लग गया, जिसके चलते देश के लोगों को काफी दिनों तक परेशानी का सामना करना पड़ा। आइए जानते हैं 500 रुपए के नोटों को बाजार में आने में देरी क्यों हुई।

इसलिए हुई थी देरी

इसलिए हुई थी देरी

इस मुद्दे से जुड़े एक शीर्ष अधिकारी ने बताया है कि जब नोटबंदी की घोषणा की गई थी, उस समय भारतीय रिजर्व बैंक के पास 2000 रुपए के नोटों का करीब 4.95 लाख करोड़ रुपए का स्टॉक था, लेकिन केन्द्रीय बैंक के पास 500 रुपए का एक भी नोट नहीं था। 500 के नोट के बारे में बाद में सोचा गया। यह कारण रहा कि 500 रुपए के नोट बाजार में देरी से आए।

कहां-कहां छप रहे थे 500 के नोट?

कहां-कहां छप रहे थे 500 के नोट?

देश में नोट छपाई की कुल 4 प्रिंटिंग प्रेस हैं। इनमें दो प्रेस भारतीय रिजर्व बैंक की हैं, जो मैसूर (कर्नाटक) और सालबोनी (पश्चिम बंगाल) में हैं। इसके अलावा सरकार की पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी भारतीय प्रतिभूति मुद्रण तथा मुद्रा निर्माण निगम लिमिटेड (एसपीएमसीआईएल) की दो प्रिंटिंग प्रेस हैं, जो नासिक (महाराष्ट्र) और देवास (मध्य प्रदेश) में हैं। नोटबंदी के समय 500 रुपए का डिजाइन मैसूर प्रेस के पास था, जहां नोटों की छपाई चल रही था, लेकिन वह नोटबंदी के बाद बढ़ी हुई मांग को पूरा नहीं कर पा रही थी। यूं तो एसपीएमसीआईएल की प्रेस भारतीय रिजर्व बैंक के आधिकारिक आदेश के बाद ही नोट छापती हैं, लेकिन इस बार एसपीएमसीआईएल की देवास प्रेस में नवंबर के दूसरे हफ्ते और नासिक प्रेस में नवंबर के चौथे हफ्ते में 500 के नोटों की छपाई शुरू की गई।

कुछ इस तरह जल्दी-जल्दी हुए सारे काम

कुछ इस तरह जल्दी-जल्दी हुए सारे काम

यूं तो नोट को छापने में 40 दिन लग जाते हैं, लेकिन नोटबंदी के बाद बढ़ी मांग को पूरा करने के लिए सिर्फ 22 दिनों का समय निर्धारित किया गया। नोटों की छपाई में जिस स्याही और कागज की जरूरत होती है, उसे विदेशों से लाने में करीब 30 दिन लगते हैं, लेकिन नोटबंदी के बाद सिर्फ 2 दिन में विमान से इन्हें मंगाया गया। भारतीय रिजर्व बैंक से दूर-दराज के चेस्ट में नोट पहुंचाने में करीब 10-11 दिन का समय लगता है, लेकिन नोटबंदी के चलते सिर्फ 1 से 1.5 दिन में हेलिकॉप्टर और जहाज की मदद से पैसे पहुंचाए गए।

देसी कागज से छपे 500 के नोट

देसी कागज से छपे 500 के नोट

यूं तो उच्च संवेदी सिक्योरिटी थ्रेड से लैस जिस कागज पर नोट छपता है, उसकी छपाई में 16 दिन लग जाएते हैं, लेकिन पहली बार ऐसा हुआ कि देश में ही छपे कागज पर 500 का नोट छापा गया। यह कागज होशंगाबाद और मैसूर पेपर मिल में छापे गए थे। आपको बता दें कि इनकी क्षमता 12000 मीट्रिक टन कागज सालाना छापने की है, जो पर्याप्त न होने की वजह से आयात भी करना पड़ता है।

स्याही भी थी देसी

स्याही भी थी देसी

यूं तो भारतीय रिजर्व बैंक की प्रेस में जिस स्याही का इस्तेमाल होता है वह विदेशों से आती है, लेकिन 500 रुपए के नोटों को छापने में एसपीएमसीआईएल की नासिक और देवास प्रेस ने खुद की बनाई गई स्याही से ही नोटों की छपाई कर दी। नोटों की छपाई में सरकार को रक्षा मंत्रालय से 200 लोग और प्रिटिंग प्रेसों से सेवानिवृत्त हुए करीब 100 कर्मचारियों की मदद भी लेनी पड़ी।

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English summary
why new 500 rupees notes become late to come to market after demonetisation
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