क्या है यूनिवर्सल बेसिक इनकम,जानिए राहुल गांधी के इस चुनावी वादे में क्या हैं चुनौतियां?
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2019 से पहले सभी पार्टियां गरीबों को साधने में जुटी है। राजनीतिक दल गरीब तबके को अपने चुनावी वादे से आकर्षित कर अपने पक्ष में करने की कोशिश में जुटा हुआ है। इसी मकसद से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सोमवार को छत्तीसगढ़ में रैली में बड़ा ऐलान करते हुए कहा कि अगर लोकसभा चुनाव 2019 में अगर कांग्रेस पार्टी की सरकार बनती है, तो हर गरीब को यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI) के तहत न्यूनतम आय की गारंटी मिलेगी। राहुल गांधी के इस वादे से देश के गरीबों को अपनी न्यूनतम जरूरतों को पूरा करने में मदद तो मिलेगी, लेकिन ये राह इतनी आसान नहीं है। इस चुनावी वादे को पूरा करना इतना आसान नहीं है, जितनी आसानी से राहुल गांधी ने इसकी घोषणा की।
क्या है यूनिवर्सल बेसिक इनकम
यूनिवर्सल बेसिक इनकम एक ऐसी स्कीम है, जो देश के गरीबों को एक निश्चित आय की गारंटी देता है। UBI देश के गरीब, अमीर, नौकरीपेशा, बेरोजगार को निश्चित आय की गारंटी देता है। सबसे खास बात ये है कि इस आय के लिए आपको किसी तरह का काम करने या किसी तरह की योग्यता की जरूरत नहीं होती है। देश के उन तमाम जरूरतमंदों को जीवन-यापन के लिए न्यूनतम आय का प्रावधान दिया जाता है। राहुल गांधी से पहले मोदी सरकार में पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन 'इकोनॉमिक सर्वे' में यूनिवर्सल बेसिक इनकम की वकालत की थी। माना जा रहा है कि 1 फरवरी को पेश किए जाने वाले अंतरिम बजट में यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम का ऐलान किया जा सकता है।
कहां से आया आइडिया
यूनिवर्सल बेसिक इनकम का सुझाव सबसे पहले लंदन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर स्टैंडिंग ने दिया था। इस योजना को देश के मध्य प्रदेश की एक पंचायत में पायलट प्रॉजेक्ट के तौर शुरू किया गया, जिसमें बेहद सकारात्मक नतीजे आए। लोगों के जीवनस्तर में सुधार हुआ। अमीर और गरीब के बीच का अंतर कम हुआ। सरकार ने पायलट प्रोजेक्ट को लेकर इंदौर के 8 गांवों में इस स्कीम को चलाया। इस स्कीम के तहत व्यस्कों को 500 और बच्चों को हर महीने 150 रुपए दिए गए। इस स्कीम से लोगों के जीवनस्तर में सुधार देखने को मिला।
क्यों है इस स्कीम की आवश्यकता
इस यूनिवर्सल बेसिक इनकम से लोगों के जीवनस्तर में सुधार होगा। इस स्कीम से गरीबी को खत्म करने में मदद मिलेगी। लोगों के जीवनस्तर में सुधार होगा। लोगों को अपनी न्यूनतम जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलेगी। महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान, ओडिशा, झारखंड और बिहार के कई इलाकों में सरकारी नीतियों की उपेक्षा के कारण लोगों को अपना बुनियादी हक नहीं मिल पाया है। भारत में ये स्कीम पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर चल रही है, लेकिन ब्राजील, कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, जर्मनी, आयरलैंड जैसे देशों में ये स्कीम लोगों को लाभ दे रही है।
भारत में लागू करना बड़ी चुनौती
भारत जैसे देश में इस स्कीम को लागू करना बड़ी चुनौती है। इस स्कीम को लागू करने में सबसे बड़ी चुनौती आंकड़े होंगे। भारत जैसे देश में जहां गरीबी रेखा की परिभाषा तय नहीं है, वहां इस स्कीम को लागू करना बड़ी चुनौती है। इस स्कीम के तहत 130 करोड़ की आबादी के लिए रोजाना 17,300 करोड़ रुपए खर्च करने होंगे! सालाना आधार पर यह काफी बड़ी राशि होगी, ऐसे में यह स्कीम सभी के लिए बजाय निचले और कमजोर तबकों को ध्यान में रखते हुए होगी। अगर यह स्कीम कुल आबादी के सिर्फ 20 फीसदी हिस्से के लिए होगी तो इस स्कीम की कुल लागत 12.6 लाख करोड़ या केंद्रीय बजट के कुल आकार की तकरीबन आधी रकम होगी, जो खर्च करना सरकार के लिए आसान नहीं होगा।