डॉलर के मुकाबले अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंचा रुपया, येन और यूआन के गिरने से एशिया में गहराया संकट
नई दिल्ली, 26 सितंबर। अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर के मुकाबले रुपए में लगातार गिरावट जारी है। सोमवार को रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 81.50 के नए रिकॉर्ड निचले स्तर पर खुला है। वहीं, दुनिया भर में बढ़ती उधार दरों से वैश्विक मंदी के डर से अधिकांश प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले ग्रीनबैक तेजी से वैश्विक स्तर पर उच्च पर पहुंच गया। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक शुक्रवार को 80.9900 के बंद की तुलना में 81.5225 के सबसे कमजोर स्तर पर खुलने और 81.5587 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंचने के बाद रुपए को 81.5038 प्रति डॉलर पर पृथक किया।
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पीटीआई के मुताबिक शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले घरेलू मुद्रा 38 पैसे गिरकर 81.47 के सबसे निचले स्तर पर आ गई। संयुक्त राज्य अमेरिका में ब्याज दरों में बढ़ोतरी और फेडरल रिजर्व के आक्रामक नीतिगत रुख ने पिछले हफ्ते एक दर्जन अन्य देशों को भी ऐसा करने के लिए मजबूर किया। ऐसे में वैश्विक स्तर पर आर्थिक मंदी बढ़ने का खतरा बढ़ गया है। हालांकि, इसके कारण वैश्विक वित्तीय बाजारों में निरंतर बिकवाली और डॉलर में तेजी आई है।
वहीं, पिछले हफ्ते से भारतीय रिजर्व बैंक भी दरें बढ़ाने के लिए तैयार है, लेकिन अभी इसको लेकर ऐलान नहीं किया गया है। इधर डॉलर की अपेक्षा एशिया की दो सबसे बड़ी करेंसी येन और यूआन में भी गिरावट दर्ज की गई है। इसके चलते एशियाई बाजारों में निवेश को लेकर निवेशकों की भी चिंताएं बढ़ गई हैं। कहा जा रहा है कि येन और यूआन में गिरावट अल्ट्रा-हॉकिश फेडरल रिजर्व व चीन और जापान में नीति निर्माताओं के बीच जारी उठापटक के चलते हुआ है।
युआन (रॅन्मिन्बी) और येन में गिरावट सभी के लिए चिंता का विषय है। मिजुहो बैंक में अर्थशास्त्र और रणनीति के प्रमुख विष्णु वरथन ने ब्लूमबर्ग को बताया कि रॅन्मिन्बी और येन बड़े एंकर हैं। दोनों के कमजोर होने की वजह से एशिया में व्यापार और निवेश के लिए मुद्राओं को अस्थिर करने का जोखिम बढ़ गया है। वरथन के मुताबिक हम पहले से ही कई क्षेत्रों में वैश्विक वित्तीय संकट के तनाव के स्तर की ओर बढ़ रहे हैं। ऐसे में अगर एशियाई वित्तीय संकट होगा तो नुकसान और गहरा जाएगा। वहीं, अगर एशिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यावस्थाओं की मुद्राओं से निवेशक पैसा निकालते हैं, तो एक बड़ा संकट पैदा हो सकता है।
वरथन के मुताबिक गिरावट प्रतिस्पर्धी अवमूल्यन, मांग में गिरावट और उपभोक्ता विश्वास की हानि के दुष्चक्र को जन्म दे सकती है। वहीं, सिंगापुर में डीबीएस ग्रुप के मुख्य अर्थशास्त्री तैमूर बेग ने ब्लूमबर्ग को बताया कि ब्याज दरों की तुलना में एशियाई देशों के लिए मुद्रा जोखिम एक बड़ा खतरा है। दिन के अंत में पूरे एशिया निर्यातक हैं और हम बड़े पैमाने पर संपार्श्विक क्षति के बिना 1997 या 1998 का एक पुनरावर्तन देख सकते हैं।
उन्होंने कहा कि डॉलर की वैल्यू बढ़ने की वजह से सिर्फ एशियाई मुद्राओं ही नहीं कमजोर हुई हैं, बल्कि ब्रिटिश का पाउंड भी कमजोर हुआ है। सोमवार को प्रमुख मुद्राओं में पाउंड में भी गिरावट दर्ज की गई, जो रिकॉर्ड निचले स्तर तक गिर गया। वहीं, यूरो दो दशक के निचले स्तर $ 0.9660 पर आ गया है। इसके अलावा अन्य मुद्राएं भी घाटे में चल रही हैं। ऑस्ट्रेलियाई मुद्रा $ 0.6510 को छूने के साथ, 2020 के मध्य के बाद से सबसे कम है।
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