इकनॉमिक कैपिटल फ्रेमवर्क को रिव्यू करने के लिए RBI ने बनाई एक्सपर्ट कमिटी, बिमल जालान बने अध्यक्ष
नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक ने केंद्रीय बैंक के आरक्षित कोष के उचित स्तर पर सुझाव देने के लिए एक छह सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया है। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर बिमल जालान इस समिति के अध्यक्ष होंगे, जबकि आर्थिक मामलों के पूर्व सचिव राकेश मोहन को समिति का उपाध्यक्ष बनाया गया है। केंद्रीय बैंक के बोर्ड ने एक माह से अधिक पहले इस बारे में विशेषज्ञ समिति के गठन का फैसला किया था। समिति में आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग और रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर एन एस विश्वनाथन भी शामिल हैं। रिजर्व बैंक ने बयान में कहा कि समिति के अन्य सदस्यों में भरत दोषी और सुधीर मांकड़ भी शामिल हैं।
समिति को इस बारे में वैश्विक स्तर पर अपनाए जाने वाले व्यवहार का अध्ययन करने और यह सिफारिश देने को कहा गया है कि क्या केंद्रीय बैंक के पास आरक्षित कोष और 'बफर' पूंजी आवश्यकता से अधिक है। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल तथा सरकार के बीच केंद्रीय बैंक के पास पड़े अतिरिक्त कोष को लेकर मतभेद थे। रिजर्व बैंक के पास उसके पिछले वित्तीय वर्ष के अंत में ऐसी 9.6 लाख करोड़ रुपये की पूंजी दिखाई गई है। वित्त मंत्रालय का विचार है कि रिजर्व बैंक अपनी कुल संपत्ति के 28 प्रतिशत के बराबर बफर पूंजी रखे हुए है, जो वैश्विक स्तर पर केंद्रीय बैंकों द्वारा रखे जाने वाली आरक्षित पूंजी की तुलना में बहुत ऊंचा है। इस बारे में वैश्विक नियम 14 प्रतिशत का है।
रिजर्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड ने 19 नवंबर की बैठक में इस बारे में सुझाव देने के लिए विशेषज्ञ समिति के गठन का फैसला किया था। हालांकि, इस समिति के स्वरूप की घोषणा नहीं की जा सकी थी, क्योंकि दोनों पक्षों में राकेश मोहन की भूमिका को लेकर मतभेद थे। हाल में गवर्नर पद से इस्तीफा देने वाले उर्जित पटेल ने मोहन की नियुक्ति के प्रस्ताव का विरोध किया था। पटेल ने 10 दिसंबर को गवर्नर पद से इस्तीफा दिया। एक दिन बाद आर्थिक मामलों के पूर्व सचिव शक्तिकांत दास को रिजर्व बैंक का गवर्नर नियुक्त किया गया।