Good News:भारत से निर्यात के लिए कम पड़ गए 15 लाख कंटेनर, सिर्फ 7 महीने में बदलाव की पूरी कहानी
मुंबई: पिछले 6 महीने में लगातार आयात घटने और निर्यात बढ़ने से भारत को शिपिंग कंटेनरों की भारी किल्लत झेलनी पड़ रही है। लेकिन, इस दिक्कत में ही बहुत ही अच्छी और सकारात्मक खबर शामिल है। गौरतलब कि मालवाहक जहाजों से सामानों के निर्यात और आयात के लिए बड़े कंटेनरों और खराब होने वाली चीजों के लिए रेफ्रिजेटेड कंटेनरों की आवश्यकता होती है। पहले तो भारत में विदेश से सामान लेकर जो कंटेनर आते थे, उसमें से ज्यादातर को तो खाली ही वापस जाते थे। लेकिन, अब आयात घटने लगा है और निर्यात में तेजी से इजाफा हो गया है, जिसके चलते कंटेनर कम पड़ने लगे हैं। लेकिन, भारत से विदेश में भेजे जाने वाले उत्पादों की कमीन नहीं पड़ रही है।
निर्यात में भारी इजाफा, माल भेजने के लिए कम पड़ रहे कंटेनर
कोविड-19 और लॉकडाउन की वजह से पैदा हुई परिस्थितियों के कारण पूरी दुनिया में आयात-निर्यात की स्थिति में बदलाव हुआ है। लेकिन, भारत में यह बदलाव खासकर आत्मनिर्भर भारत अभियान को मिली गति की वजह से हुआ है। डायरेक्टर जनरल ऑफ शिपिंग अमिताभ कुमार ने मुंबई मिरर से कहा है, 'भारत के पास करीब 15 लाख कंटेनर हैं। लेकिन, आत्मनिर्भर भारत अभियान के चलते अब आयात घट गया है और निर्यात बढ़ गया है। हम कंटेनरों की भारी किल्लतों का सामना कर रहे हैं। हमें अभी-अभी एक लाख और कंटेनर मिले हैं, लेकिन अभी भी बहुत ज्यादा की जरूरत है।' यह कितना बड़ा बदलाव है इसका अंदाजा इसी से लगता है कि शुरू में आयात ज्यादा होता था और निर्यात काफी कम, जिससे देश के पास हमेशा 10 से 15 फीसदी कंटेनर खाली ही पड़े रहते थे। कुमार के मुताबिक, 'पहले हमारे पास बहुत ज्यादा खाली कंटेनर होते थे, लेकिन अगस्त, 2020 के बाद से हालात पूरी तरह से बदल चुके हैं। एक्सपोर्ट में वी-शेप कर्व आ चुका है और निर्यात थोक में बढ़ा है।'
एक साल में 24 फीसदी कम हुआ आयात
शिपिंग मिनिस्ट्री के अधिकारियों ने भी बदलाव की गवाही दी है। उनका कहना है कि कोरोना महामारी से पहले जहाजों से कंटेनर खाली करने के लिए 5 दिन तक वेटिंग टाइम होता था। अब उन्हें 16 से 24 घंटों के अंदर उसे उतार देना होता है। कुमार ने एक बड़ी बात ये बताई है कि दुनिया भर में कंटेनर बनाने वाली कंपनियों ने इसका उत्पादन बंद कर दिया था। इसके चलते भी डिमांड और सप्लाई में गैप आ गया है। बीते महीनों में देश में बंदरगाहों पर कंटेनरों को चढ़ाने और उतारने की क्षमता को भी प्रभारी तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है, एक यह वजह भी है कि कंटेनर कम पड़ जा रहे हैं। भारत में निर्यात के लिए कंटेनरों की कमी का एक बड़ा कारण यह भी है कि पिछले महीनों में चीन से निर्यात बहुत ही कम हो गया है। अगर सिर्फ पिछले साल जुलाई और दिसंबर की बात करें तो देश से निर्यात की मात्रा 18 फीसदी बढ़ी है, जबकि इसी दौरान 2019 के मुकाबले आयात में 24 फीसदी की कमी दर्ज की गई है।
देश का व्यापार घाटा कम हो गया
कॉमर्स मिनिस्ट्री से जारी डेटा के मुताबिक इस साल जनवरी में भी निर्यात 6.16 फीसदी बढ़कर 2,745 करोड़ डॉलर हुआ है। इसमें भी फार्मास्युटिकल और इंजीनियरिंग की चीजों की निर्यात में क्रमश: 16.4 फीसदी (200 करोड़ डॉलर) और 19 फीसदी (740 करोड़ डॉलर) का इजाफा हुआ है। इनके अलावा जिन चीजों का निर्यात बढ़ा है उनमें खाने के तेल, आयरन ओर, तंबाकू, चावल, फल और सब्जियां, कारपेट, हैंडिग्राफ्ट, मसाले, चाय, काजू, प्लास्टिक और केमिकल। इसी का परिणाम है कि देश का व्यापार घाटा पिछले साल जनवरी के 1,530 करोड़ डॉलर के मुकाबले इस साल 1,475 करोड़ डॉलर रह गया है।
सीएसएलए ने देश में ही मरीन कंटेनर बनाने का दिया सुझाव
यही वजह है कि कंटेनर शिपिंग लाइंस एसोसिएशन (इंडिया), जिसे आमतौर पर सीएसएलए के नाम से ही जाता है, उसने देश में ही मरीन कंटेनर बनाने का सुझाव दिया है। इससे निर्यात के लिए कंटेनरों की सुरक्षित सप्लाई चेन को मेंटेन रखना आसान होगा। देश के अपने शिपयार्ड में ऐसे उपकरण हैं और ऐसी विशेषज्ञता भी है, जिससे यह काम कोई मुश्किल नहीं है। सीएसएलए एग्जिक्युटिव डायरेक्टर सुनील के वासवानी ने सरकार से इसपर विचार करने को कहा है।
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