एक चाय, समोसे पर रेलवे स्टेशन रंगवा लिया!
रोज के रुपये मिलने थे, नहीं मिले. गिनीज़ बुक़ में नाम आना था, वो भी नहीं आया.
बिहार का मधुबनी स्टेशन बीते 14 अक्तूबर के बाद से बहुत खूबसूरत लग रहा है, लेकिन इसको सुंदर बनाने वाले कलाकारों के दिल में उदासी छाई है. वो खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं.
जैसा कि स्टेशन रंगने वाले कलाकारों में से एक अशोक कुमार भारती कहते हैं, "हम लोग दिन रात मेहनत किए. मेहनताना तो नहीं मिला जबकि तय यह हुआ था कि 100 रुपये रोज के मिलेंगे लेकिन वो नहीं मिले. ये भी कहा गया था कि गिनीज़ बुक़ ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में नाम जाएगा, लेकिन वो भी नहीं हुआ. हम कलाकारों का बहुत शोषण हुआ है."
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मधुबनी पेन्टिंग से रंगा पूरा स्टेशन
2 अक्तूबर को बिहार के मधुबनी स्टेशन पर 180 स्थानीय कलाकारों ने मिथिला चित्रकला (जिसे आम तौर पर मधुबनी पेन्टिंग कहा जाता है) करनी शुरू की थी. 14 अक्तूबर तक कलाकारों ने दिन रात यहां मेहनत की और मिथिला के लोकजीवन के अलग-अलग रंगों का चित्रण किया.
नतीजा ये कि मिथिला स्टेशन पर 7005 वर्ग फ़ीट की मधुबनी पेन्टिंग बनकर तैयार है. स्टेशन पर लगे एक बोर्ड में कलाकारों के प्रति आभार व्यक्त करते साफ़ तौर पर लिखा है कि कलाकारों के श्रमदान और अथक परिश्रम से ये संभव हो पाया है. लेकिन इस आभार के बावजूद कलाकार नाराज़ हैं.
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'रोजाना 100 रुपये मिलने थे'
कलाकारों से बातचीत में उनकी नाराज़गी की मुख्य तौर पर दो वजहें पता चलती है. बता दें कि स्थानीय संस्था 'क्राफ्ट वाला' ने मिथिला चित्रकला के इन कलाकारों को जुटाया था.
कलाकार मानते हैं कि ये बात तय हुई थी कि बिना किसी पारिश्रमिक पर कलाकार ये काम करेंगे, लेकिन कलाकारों को रोजाना 100 रुपये चाय आदि के ख़र्चे के लिए मिलेंगे.
पहली नाराज़गी की वजह ये है कि ये रुपये भी कुछ कलाकारों को मिले और कुछ को नहीं मिले. दूसरा ये कि कलाकारों को उम्मीद थी कि उनका नाम गिनीज़ बुक़ ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज होगा.
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गिनीज़ बुक में नाम दर्ज होना था
स्थानीय पत्रकार अभिजीत कुमार बताते हैं, "कलाकारों को ये उम्मीद थी कि उनका नाम गिनीज़ बुक़ ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज होगा जिसके चलते बहुत सारे कलाकार अपने खर्चे पर मधुबनी में रुके और महज़ चाय पानी पर काम किया. लेकिन रेलवे ने वर्ल्ड रिकॉर्ड्स के लिए ज़रूरी प्रक्रिया को समय रहते शुरू ही नहीं किया. इसलिए रेलवे की लापरवाही से अब तो मधुबनी स्टेशन, यहाँ का समाज और कलाकार...सब ठगे गए."
जहाँ स्थानीय पत्रकारों का कहना है कि अब रेलवे के हाथ में कुछ नहीं रहा, वहीं रेलवे अधिकारियों ने अभी भी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा है. समस्तीपुर रेल मंडल के डीआरएम रविंद्र जैन कहते हैं, "कलाकारों ने स्टेशन को बहुत सुंदर बना दिया है और हम अब इस पेंटिंग को गिनीज़ बुक़ ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भेजने की तैयारी कर रहे हैं."
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रेलवे से कोई सुविधा भी नहीं मिली
स्टेट अवार्डी उमा झा के नेतृत्व में 12 कलाकारों ने स्टेशन पर रामायण कथा का चित्रण किया है. वो भी बहुत मायूस है. उमा ने बीबीसी में बातचीत में कहा, "इतना काम अगर हम दिल्ली में करते तो हमें लाखों रुपये मिलते लेकिन यहाँ न तो हमारा नाम गिनीज़ बुक़ में दर्ज हुआ और न ही हमें रेलवे से कोई सुविधा मिली जिसकी हमें उम्मीद थी. और अब ये लोग कह रहे हैं कि बाकी और स्टेशन पर भी हमसे काम कराया जायेगा."
कलाकार सीमा निशांत भी कहती है, "इन सब लोगों ने अपना प्रचार प्रसार तो कर दिया लेकिन कलाकारों का क्या. उनको क्या मिला?"
हालाँकि यहाँ भी कुछ कलाकार ऐसे है जो कहते हैं कि उन्होंने अपनी मर्ज़ी से यहाँ काम किया है, ऐसे में शिकायतों का कोई मतलब नहीं है.
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प्रियांशु और कल्पना झा उन कलाकारों में से है जिन्हें रेलवे से कोई शिकवा नहीं. वो कहते है, "हमें कोई घर से तो उठाकर नहीं लाया था, हम यहाँ अपनी मर्ज़ी से आये थे तो शिकायत क्यों करें? हमें कुछ मिल जाय तो ठीक और कुछ नहीं भी मिले तो कोई गम नहीं."
इस बीच स्थानीय लोग और रेलयात्री स्टेशन पर हुए इस बदलाव से बेहद खुश हैं. मधुबनी स्टेशन की दीवारों पर जगह-जगह बनी इन पेंटिंग की लोग तस्वीरें खींच रहे हैं और अपने स्मार्ट फ़ोन से वीडियो भी बना रहे हैं.
बिस्फी के राम नारायण महतो कहते हैं, "2016 के एक सर्वे में मधुबनी को सबसे गन्दा स्टेशन बताया गया था. अब ये बदलाव अच्छा लग रहा है. छोटी से लेकर बुजुर्ग महिला का इसमें योगदान है. ऐसा अगर सब स्टेशन पर हो जाए तो कितना सुन्दर लगे."
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