राबड़ी देवी की मध्यस्थता के बाद भी खत्म नहीं हुई है तेजप्रताप और तेजस्वी की दूरियां
पटना, 16 अक्टूबर। तमाम कोशिशों के बाद भी तेजप्रताप और तेजस्वी में सुलह क्यों नहीं हो रही ? राबड़ी देवी के बीच-बचाव से तेजप्रताप उपचुनाव में राजद का विरोध नहीं करने के लिए मान गये। लेकिन उनकी नाराजगी बरकरार है।
तेजप्रताप बनाम तेजस्वी का मसला अभी भी परेशानी का शबब बना हुआ है। आखिर क्यों दोनों भाइयों के बीच की यह दूरी खत्म नहीं हो रही ?
तो दे दो केवल पांच ग्राम....
जब कोई दल वंशवाद की नींव पर खड़ा होता है तो उसमें पारिवारिक सम्पत्ति की तरह ही विभाजन की परिस्थितियां मौजूद रहती हैं। दल को पिता की पूंजी मान कर पुत्र उसमें बराबर की हिस्सेदारी चाहते हैं। जब यह हिस्सा नहीं मिलता है तो अंतर्संघर्ष शुरू हो जाता है। लालू यादव के बड़े पुत्र तेजप्रताप ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को छिपाया नहीं है। वे महाभारत के पात्र कृष्ण और अर्जुन से तो प्रेरित हैं ही, सत्ता संघर्ष की अवधारणा भी उन्होंने वहीं से ग्रहण की है। अगर कौरव, पांडवों को पांच गांव भी दे दिये होते तो महाभारत का विनाशकारी युद्ध नहीं हुआ होता। तेजप्रताप ने दो महीने पहले रश्मिरथी की पंक्तियों का उल्लेख किया था- "तो दे दो केवल पांच ग्राम, रखो अपनी धरती तमाम"। यानी तेजप्रताप, लालू यादव के पुत्र होने के नाते राजद में अपनी हिस्सेदारी चाहते हैं। वे थोड़ा सा अधिकार लेकर भी रहने को राजी हैं। लेकिन उन्हें 'पांच गांव' वाले अधिकार भी नहीं मिल रहे। तेज प्रताप कई मंचों से इस बात की नाखुशी जाहिर कर चुके हैं। फिर तो जैसा कि महाभारत में हुआ वैसा ही अब हो रहा है।
क्या चाहते हैं तेजप्रताप ?
तेजप्रताप खुद को दूसरा लालू मानते हैं। उन्होंने सेकेंड लालू के नाम से फेसबुक पेज भी बना रखा है। वे लालू यादव की तर्ज पर ही राजनीति करना चाहते हैं। लालू यादव ने छात्र राजनीति की सीढ़ियां चढ़ कर खुद को राष्ट्रीय राजनीति में स्थापित किया। तेजप्रताप भी अपने पिता की तरह छात्र राजनीति की डोर पकड़ कर आगे बढ़ना चाहते हैं। तेजप्रताप छात्र राजद के संरक्षक थे। वे चाहते थे कि छात्र राजद के कुछ ऊर्जावान नौजवानों को राजद में जगह मिले। राजद का पदाधिकारी बना कर उन्हें संगठन में बड़ी भूमिका निभाने का मौका दिया जाय। लेकिन राजद में तेजस्वी के प्रभाव के कारण तेजप्रताप की यह इच्छा पूरी नहीं हो पा रही थी। लोकसभा चुनाव के समय तेजप्रताप ने अपने लिए दो सीटों की मांग की। वे जहानाबाद और शिवहार में अपनी पसंद के उम्मीदवार को उतारना चाहते थे। लेकिन उनकी मांग ठुकरा दी गयी। वैसे ही जैसे पांडवों के 'पांच ग्राम' की मांग अस्वीकार कर दी गयी थी। इस आंतरिक संघर्ष का परिणाम ये हुआ कि राजद जहानाबाद की सीट हार गया। वह इसलिए क्यों कि तेजप्रताप ने विरोध किया था।
“तेजस्वी के लिए जरूरी है कि सबको साथ लेकर चलें”
राजद में लालू यादव के दो बेटों की लड़ाई तेज होती गयी। नाराज तेजप्रताप ने रामचंद्र पूर्वे, रघुवंश प्रसाद सिंह (अब दिवंगत), शिवानंद तिवारी और जगदानंद सिंह जैसे वरिष्ठ नेताओं पर सीधे हमला बोल दिया। जवाबी हमले में जब तेजप्रताप कमजोर पड़ने लगे तब उन्होंने बागी रूप अख्तियार कर लिया। उपचुनाव में उन्होंने राजद के विरोध का एलान कर सबको सकते में डाल दिया। आनन फानन में राबड़ी देवी को दिल्ली से पटना आना पड़ा। मां के मनाने पर वे मान तो गये लेकिन हक नहीं मिलने की कसक अब भी बरकरार है। राबड़ी देवी केे दिल्ली लौट जाने के बाद तेजप्रताप ने कहा है, "वे चाहते हैं कि तेजस्वी मुख्यमंत्री बनें। लेकिन तेजस्वी के लिए जरूरी है कि वे सबको साथ लेकर चलें। पार्टी में जो रुठे हैं उन्हें मना लेना चाहिए। संगठन में बहुत ऐसे लोग होते हैं जो आगे बढ़ने वालों का पैर खींचने लगते हैं। मेरा अंदाज मेरे पिता लालू यादव से मिलता-जुलता है। कुछ लोगों को इससे जलन होती है। ऐसे लोग पार्टी को तोड़ना चाहते हैं।" यानी तेजप्रताप अभी भी राजद में आंशिक अधिकार ही चाहते हैं। वे सीएम उम्मीदवार बनने की रेस में नहीं हैं। वे किंग नहीं किंगमेकर बनना चाहते हैं।
किंग नहीं, किंगमेकर बनना चाहते हैं तेजप्रताप
अक्सर वे खुद को कृष्ण और तेजस्वी को अर्जुन बताते रहे हैं। लेकिन राजद से निकाले जाने की अटकलों से तेजप्रताप की छवि का नुकसान पहुंचा है। तेजस्वी के समर्थक नेता उन्हें कमजोर और अक्षम बता कर आग में घी डाल रहे हैं। राबड़ी देवी मामला सुलझाकर कर दिल्ली गईं ही थीं कि पूर्व सांसद रामा सिंह ने तेजप्राताप के खिलाफ बयान दे दिया। तेज प्रताप फिर भड़क गये। वे छात्र जनशक्ति परिषद के जरिये अपनी राजनीति को अलग धार देने की कोशिश में हैं। लालू प्रसाद के कहने पर ही उन्होंने 'बांसुरी' को अपने संगठन का प्रतीक चिह्न बनाया है। मतलब लालू यादव ने तेजप्रताप के इस संगठन को अघोषित रूप से स्वीकार कर लिया है। वे लालू प्रसाद के नाम पर एलपी आंदोलन ( LP MOVEMENT) शुरू करने की योजना बना रहे हैं। अगर तेजप्राताप लालू यादव के नाम पर आंदोलन करेंगे तो इसका खामियाजा राजद को ही भुगतना पड़ेगा। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जब तक लालू यादव के दोनों बेटों में अधिकार को लेकर लड़ाई जारी रहेगी राजद की समस्या खत्म नहीं होने वाली।