नीतीश के धैर्य के सामने टिक न पाया लालू का बड़बोलापन
पटना। नीतीश कुमार के धैर्य के सामने लालू यादव का बड़बोलापन काम न आया। इसके पहले लालू यादव चुनाव में अपने बयानों से राजनीतिक फसल काटते रहे थे। लेकिन इस बार उनका यह टोटका काम न आया। 41 महीने के बाद वे पटना आये थे। वे बीमार हैं और उनका इलाज चल रहा है। लोगों को उम्मीद थी कि वे उपचुनाव में सिर्फ मुद्दों पर बोलेंगे। लेकिन वे अपने पुराने रिकॉर्ड से भी एक कदम आगे निकल गये। बयानों से विवाद का बवंडर खड़ा कर दिया। नीतीश ने धैर्य से लालू यादव का जवाब दिया। लालू के 'विसर्जन' वाले बयान पर नीतीश का 'गोली' वाला बयान भारी पड़ गया। कांग्रेस नेता भक्तचरण दास को भकचोन्हर कहना भी लालू यादव के लिए महंगा पड़ गया।
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लालू
यादव
की
शैली
अब
बेअसर
नीतीश
कुमार
के
खिलाफ
रटी
रटायी
बात
कहने
से
भी
लालू
यादव
रंग
नहीं
जमा
सके।
न
जाने
कितनी
बार
उन्होंने
'पलटू
राम'
वाले
वाकये
का
जिक्र
किया
होगा।
अरसे
बाद
पटना
आये
तो
फिर
पलटू
राम
वाली
कहानी
ले
कर
बैठ
गये।
वे
नीतीश
कुमार
को
गैरभरोसेमंद
बताते
रह
गये
लेकिन
जनता
ने
उनकी
बात
पर
ध्यान
नहीं
दिया।
जनता
कुछ
नया
सुनना
चाहती
थी।
वे
कुशेश्वरस्थान
में
पहली
बार
चुनाव
लड़
रहे
थे।
उन्हें
अपनी
जीत
के
लिए
मुद्दे
गढ़ने
चाहिए
थे।
लेकिन
उन्होंने
अपनी
सारी
ऊर्जा
नीतीश
कुमार
को
बेईमान
बताने
में
खर्च
कर
दी।
वे
यही
कहते
रह
गये
कि
जनता
ने
तेजस्वी
को
सत्ता
सौंप
दी
थी।
लेकिन
नीतीश
कुमार
के
इशारे
पर
प्रशासन
ने
कुछ
सीटों
पर
राजद
को
हरवा
दिया।
उन्होंने
हिलसा
में
राजद
उम्मीदवार
शक्ति
सिंह
यादव
के
12
वोट
से
हारने
का
जिक्र
भी
किया।
लेकिन
जनता
के
गले
ये
बात
भी
नहीं
उतरी।
अगर
राजद
कुछ
सीटों
पर
कम
वोट
से
हारा
था
तो
उसे
करीब
10
सीटों
पर
मामूली
मार्जिन
से
जीत
भी
मिली
थी।
2017
से
ही
लालू
यादव
नीतीश
कुमार
पर
निजी
हमले
कर
रहे
हैं।
लेकिन
उनकी
यह
राजनीतिक
शैली
अब
प्रासंगिक
नहीं
रह
गयी।
नीतीश
के
एक
बयान
से
बदल
गया
परिदृश्य
लालू
यादव
ने
कहा
था,
तेजस्वी
ने
अकेले
सबकी
हवा
निकाल
दी
है।
जो
बाकी
है
उसका
विसर्जन
वे
कर
देंगे।
जाहिर
है
लालू
यादव
के
इस
बायान
से
खलबली
मचनी
थी।
जब
पत्रकारों
ने
मुख्यमंत्री
से
पूछा,
लालू
जी
तो
कह
रहे
हैं
कि
वे
पटना
आये
ही
हैं
नीतीश
कुमार
का
विसर्जन
करने
के
लिए,
आप
क्या
कहेंगे
?
तब
नीतीश
कुमार
ने
हंसते
हुए
कहा,
"
छोड़िए
न,
कर
दें
?
फिर
ठहाका
लगा
कर
कहा,
गोलिये
मरवा
दें।
इसके
बाद
सब
लोगों
के
साथ
नीतीश
कुमार
जोर-
जोर
से
हंसने
लगे।
उनके
इस
गोली
बाले
बयान
ने
चुनाव
का
परिदृश्य
ही
बदल
दिया।
हालांकि
उन्होंने
यह
बात
बहुत
ही
हल्के-फुल्के
अंदाज
में
कही
थी।
लेकिन
उनके
समर्थकों
के
बीच
यह
संदेश
चला
गया
कि
लालू
यादव,
नीतीश
कुमार
को
गोली
मरवाने
की
बात
कह
रहे
हैं।
इससे
नीतीश
के
समर्थक
और
एननडीए
कोर
वोटर
मजबूती
से
एकजुट
हो
गये।
राजद
ने
तारापुर
में
वैश्य
उम्मीदवार
खड़ा
कर
भाजपा
के
वोटबैंक
में
सेंध
लगाने
की
कोशिश
की
थी।
लेकिन
वैश्य
समुदाय
मजबूती
के
साथ
जदयू
से
जुड़ा
रहा।
नीतीश
की
राजनीति
शैली
क्या
लालू
यादव
और
तेजस्वी
के
निजी
हमलों
से
नीतीश
विचलित
हुए
?
इस
सवाल
का
जवाब
खुद
नीतीश
कुमार
ने
ही
दिया।
उन्होंने
कहा
कि
अगर
मेरे
खिलाफ
बोलने
से
उन्हें
पब्लिसिटी
मिलती
है
तो
ठीक
है।
जो
इच्छा
है
वो
करें।
हम
लोगों
को
इसकी
फिक्र
नहीं
है।
इसकी
कोई
परवाह
नहीं।
नीतीश
कुमार
ने
बातों
में
उलझने
की
बजाय
अपना
सारा
ध्यान
चुनाव
प्रबंधन
पर
लगाया।
जीतन
राम
मांझी,
मुकेश
सहनी
और
भाजपा
के
नेताओं
ने
अपने
अपने
प्रभाव
क्षेत्रों
में
खूब
मेहनत
की।
अपने
संगठित
प्रयास
से
आखिरकार
जदयू
जीत
गया।
जीत
के
बाद
नीतीश
कुमार
ने
अपनी
कामयाबी
का
राज
बताया।
उन्होंने
कहा,
एनडीए
के
नेता
और
कार्यकर्ता
जनता
के
बीच
गये।
हमारे
लिए
जनता
ही
मालिक
है।
उनके
लिए
कोई
और(परिवार)।
विरोध
में
उनको
(राजद)
जो
करना
था
किया।
लेकिन
हमारा
भरोसा
जनता
पर
था।
अपने
काम
पर
था।
जनता
मेरे
काम
से
संतुष्ट
है
तभी
दोबारा
मौका
दिया
है।
इस
चुनाव
में
कुछ
लोगों
ने
मेरे
खिलाफ
क्या-क्या
नहीं
बोला।
लेकिन
हम
बोलने
में
नहीं
बल्कि
काम
करने
में
यकीन
रखते
हैं।
दरअसल
बिहार
की
यह
चुनावी
लड़ाई
दो
राजनीतिक
शैलियों
के
बीच
थी
जिसमें
नीतीश
कुमार
ने
बाजी
मार
ली।
पटनाः फैमिली के साथ दिल्ली लौटे लालू तो JDU प्रवक्ता ने कहा- जा रहे हैं तो आते रहिएगा बिहार