Ballia : जेल में मुलाकात के दौरान पति-पत्नी ने खाया जहरीला बिस्कुट, दोनों की हालत गंभीर
उत्तर प्रदेश के बलिया जिला कारागार में बंद अपने कैदी पति से मिलने आई एक महिला ने पति के साथ मिलकर विषाक्त पदार्थ खा लिया । विषाक्त पदार्थ का सेवन करते ही पति-पत्नी दोनों जेल में ही अचेत हो गए। जेल नियमों के अनुसार नीलम जिला कारागार परिसर में बाकायदा चेकिंग के बाद अपने पति से मुलाकात करने पहुंची थी। चेकिंग के बावजूद यह घटना कैसे हो गई, इसको लेकर जिला कारागार की कार्य प्रणाली पर सवालिया निशान भी लग गए हैं।
पति-पत्नी ने खाया जहरीला बिस्कुट
बताया
जा
रहा
है
कि
जिले
के
बांसडीह
रोड
थाना
क्षेत्र
के
डुमरी
गांव
का
रहने
वाला
सूरज
साहनी
उम्र
करीब
25
वर्ष
जिला
कारागार
में
बंद
है।
बता
दें
कि
सूरज
यहाँ
धरा
302
और
धरा
324
के
आरोप
में
न्यायिक
हिरासत
में
हैं।
सूरज
की
पत्नी
नीलम
साहनी
उम्र
करीब
23
वर्ष
बुधवार
को
अपने
पति
से
जिला
कारागार
में
मिलने
आई।
मुलाकात
के
दौरान
दोनों
ने
विषाक्त
लगा
बिस्कुट
का
सेवन
कर
लिया
जिसके
बाद
उनकी
स्थिति
बिगड़ने
लगी
और
दोनों
जेल
में
ही
अचेत
हो
गए।
दोनों
को
आनन-फानन
में
उपचार
के
लिए
जिला
चिकित्सालय
में
भर्ती
कराया
गया
।
सूरज
साहनी
की
गंभीर
स्थिति
देखते
हुए
डाक्टरों
ने
वाराणसी
के
लिए
रेफर
कर
दिया
है।
कैदी
व
उससे
मिलने
आई
उसकी
पत्नी
द्वारा
विषाक्त
पदार्थ
का
सेवन
करने
की
घटना
को
जेल
कर्मियों
की
लापरवाही
से
जोड़कर
देखा
जा
रहा
है।
वहीं
थाना
कोतवाली
बलिया
के
प्रभारी
निरीक्षक
प्रवीण
कुमार
सिंह
ने
बताया
कि
इस
मामले
में
जेलर
द्वारा
नीलम
साहनी
के
विरुद्ध
तहरीर
दी
गई
है।
पुलिस
मुकदमा
दर्ज
करने
की
कार्यवाही
कर
रही
है।
सूरज
साहनी
जिला
कारागार
में
हत्या
के
आरोप
में
न्यायिक
हिरासत
में
है।
जिले
की
हल्दी
पुलिस
ने
उसे
गिरफ्तार
किया
है।
वर्तमान में जेलों की हालत
जेलों में क्षमता से अधिक कैदी होने की वजह से मुलाकात के लिए आने वालों की संख्या भी बढ़ जाती है। ऊपर से क्षमता से कहीं ज्यादा लोगों को अपने अंदर ठूंसे हुए, अव्यवस्था और गंदगी से बजबजाती तथा भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी जेलों में न तो कोई आधुनकि व्यवस्थाएं है न पर्याप्त संसाधन। तभी इस तरह से लोग खतरनाक चीज़ों को जेल के अंदर ले जाने में सक्षम हो पाते हैं। यह पहली बार नहीं है कि इस तरह का कोई मामला सामने आया है। बल्कि इससे पहले तो जेलों के अंदर कत्ल भी हुए हैं। पिस्टल, तमंचे या चाक़ू से जेल के अंदर हत्या के कई मामले पहले भी सामने आते रहे हैं।
जिनका वोट नहीं उनकी कोई जिम्मेदारी लेने वाला नहीं
अब सबसे अहम सवाल यह उठता है कि क्या कैदियों के अधिकार और उनकी सुरक्षा भारतीय संविधान के दायरे में नहीं आते? एक ऐसे समय में जब देश भर में मानवाधिकारों पर बहस छिड़ी हुई है, तब कैदियों के अधिकार के लिये सरकारें गंभीर क्यों नहीं दिख रही हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि सरकारें सिर्फ इसलिये खामोश रहती हैं कि कैदियों का मुद्दा किसी दल के वोट बैंक में इज़ाफा नहीं करता? या फिर यह मान लिया जाए कि हमारी सरकारें महँगे होते इंसाफ और जेल में कैदियों की बढ़ती भीड़ से होने वाले आर्थिक नुकसान से अंजान हैं।
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