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मायूस आंखों में छलकी खुशियां, बनारस की विधवाओं ने मनाया राखी का त्यौहार

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वाराणसी। वर्षों के अकेलापन, दुख, परिवार से अलग रहने की पीड़ा और अपनों को तलाशती बनारस की विधवाओं ने दशकों बाद खुशी के दो पल बिताए। समाज की मुख्यधारा से दूर रह रहीं इन सैकड़ों विधवाओं ने भाई-बहन के पर्व राखी को बनाकर चंद पलों में ही संसार की सारी खुशियां पा ली।स्वंमसेवी संस्था की ओर से आयोजित राखी समारोह में बनारस की इन विधावाओं ने हिस्सा लिया और राखी का पर्व मनाया।

अपना तो कोई आया नहीं सो संत महात्माओं के साथ मिलकर ही राखी मनाई।गंगा को अपना जीवन समर्पित कर चुकी इन विधावाओं ने सुलभ संस्था के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक की कलाई पर राखी बांधकर अपने भाईयों की सलामती की दुआ मांगी।

Widows in Varanasi celebrate Raksha Bandhan.

विधावाओं के कल्याण के लिए काम करने वाली इस संस्था ने अपनों की आस में टकटकी लगाए इन विधवाओं के आंखों में कुछ क्षण के लिए ही सही, लेकिन चमक ला दी। समाज से उपेक्षित महिलाएं गंगा तट पर ही अपना प्राण त्यागकर मोक्ष की इच्छा रखती है। पति की मौत के बाद अपना घर-बार छोड़ बनारस में बसने वाली इन विधवाओं का हाल-चाल जानने वाला कोई नहीं।

लेकिन अब सुलभ आश्रम ने इनके कल्याण का जिम्मा उठा लिया है। सुलभ ने हाल ही में वाराणसी की 200 विधवाओं के लिए पेंशन और चिकित्सा की योजना शुरू की है। जिसके तहत वह हर विधवा को शहर के चार आश्रमों मे रहने के लिए 2,000 रुपये का भुगतान किया जाता है।

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English summary

 In a first, hundreds of widows -- considered cursed and inauspicious and shunned by the mainstream of society for decades celebrated the Hindu festival of Raksha Bandhan.
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