आईआईटी के फैसले से खुश नहीं है बिहार का सुपर 30
आपको बताते चलें की पटना में पत्रकारों से मुखातिब आनंद ने कहा कि यह फैसला गरीब विद्यार्थियों के विरुद्ध जाता है। उन्होंने कहा कि शीर्ष पायदान पर रहे निजी विद्यालयों और सरकारी विद्यालयों के बीच एक बड़ी खाई है। कई अवसरों पर 12वीं के परिणाम में हेरफेर के कारण कई संस्थाएं फंस गई हैं, ऐसे में 20 छात्रों का चयन शेष छात्रों की 'हत्या' के समान है।
साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि जुलाई महीने में आया यह फैसला आईआईटी की तैयारी कर रहे छात्रों को हतोत्साहित करने वाला है। आनंद द्वारा ये भी कहा गया कि अभी जो छात्र 12वीं में हैं, उनके लिए 12वीं का परिणाम भी महत्वपूर्ण हो गया है।
आनंद कहते हैं कि आईआईटी परिषद को यह महत्त्वपूर्ण निर्णय कम से कम २ वर्ष बाद यानी वर्ष 2014 से लागू करना चाहिए था, जिससे छात्रों को तैयारी के लिए कुछ समय मिल जाता। उन्होंने कहा कि ग्रामीण विद्यालयों में अब भी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है तथा शिक्षकों की गुणवता में कमी है। ऐसे में वहां के छात्रों को आईआईटी की प्रवेश परीक्षा की तैयारी करना आसान नहीं होगा।
उन्होंने यह भी कहा कि राज्य के बोर्डो के परिणाम हमेशा छात्रों की प्रतिभा को प्रतिबिम्बित नहीं करता है। अगर निजी, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों की शिक्षा प्रणाली एक समान हो तो यह फैसला समझ में आ सकता था परंतु देश में दुर्भाग्य से ऐसा नहीं है।
गौरतलब है कि आईआईटी के इस नए प्रारूप के मुताबिक वर्ष 2013 से आईआईटी की प्रवेश परीक्षा के लिए एक एडवांस परीक्षा आयोजित की जाएगी, जिसमें प्राप्त रैंक के आधार पर दाखिला दिया जाएगा।