वृंदावन में टुकड़े-टुकड़े कर फेंक दिये जाते हैं विधवाओं के शव
वह जिंदा रहते अपने धर्म के अनुसार दाहसंस्कार का पैसा एकत्र कर सफाई कर्मियों को दे जाती हैं। इसके बावजूद उनकी लाश का अंतिम संस्कार नहीं किया जाता। यह कहना है जिला विधि सेवा प्राधिकरण का। जिसकी रिपोर्ट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट में दायर आवेदन में विधवाओं की इस दुर्दशा की जानकारी दी गई है।
ईसीपीएफ एनजीओ की ओर से यह आवेदन अधिवक्ता रविंदर बाना ने उस याचिका में शामिल करने के लिए दायर किया गया है जो देशभर से आकर वृंदावन में रहने वाली विधवाओं की स्थिति की सुधार की मांग को लेकर 2007 में दायर हुई थी।
सर्वोच्च अदालत ने नवंबर, 2008 में इस मामले में राष्ट्रीय महिला आयोग को सर्वेक्षण करने का आदेश दिया था और बाद में केंद्र व राज्य सरकारों को विधवाओं की दशा सुधारने के लिए कदम उठाने को कहा था। एनजीओ ने आवेदन में कहा है कि जिला विधि सेवा प्राधिकरण, जो कि राष्ट्रीय विधि सेवा प्राधिकरण का एक इकाई है और जिसके कार्यकारी चेयरमैन सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अल्तमस कबीर हैं, की ओर से 8 जनवरी को एक रिपोर्ट पेश की गई, जिसमें कहा गया है कि विधवाओं की लाश को उचित दाहसंस्कार तक नहीं मिलता।
आवेदन में उत्तर प्रदेश राज्य विधि सेवा प्राधिकरण से जिला स्तर की इकाई की ओर से पेश की गई रिपोर्ट को आधिकारिक तौर पर शीर्षस्थ अदालत में पेश करने का आदेश जारी करने की मांग की गई है। साथ ही इस मामले में उचित आदेश जारी करने की मांग की गई है, क्योंकि रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी रैनबसेरों में रहने वाली विधवाओं और वृद्ध महिलाओं की लाश को काटकर बोरे में भरकर फेंक दिया जाता है, जबकि ये महिलाएं जीवित रहते सफाई कर्मियों के पास अपने दाह संस्कार का खर्च जमा कर चुकी होती हैं।
हाल ही में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने इस मामले में शीर्षस्थ अदालत से कहा था कि वृंदावन की विधवाओं के लिए स्वाधर योजना के तहत यूपी महिला कल्याण निगम को 14 करोड़ 25 लाख की धनराशि जारी कर दी गई है। इस राशि से इन महिलाओं के लिए शरणगृह बनाए जाएंगे व अन्य जरूरी सुविधाएं मुहैया करायी जाएंगी। हलफनामे में बताया गया था कि बड़ी संख्या में इन विधवाओं को मंदिरों में भजन गाने के लिए बुलाया जाता है। प्रतिदिन कम से कम आठ घंटे गाने के एवज में 6 से 8 रुपये अधिकतम मजदूरी मिलती है।
इस शोषण को रोकने के लिए यह राज्य सरकार को तय करना है कि वह ऐसा नियम लागू करे, जिसके तहत विधवाओं को भजन गाने के बदले तय मजदूरी मिले। इसके अलावा गायन की अवधि भी उचित हो और भजन आश्रमों के खातों का समुचित लेखा-जोखा रखा जाए।