'यूनियन कार्बाइड से समझौते के कारण सुनवाई में हुई देरी'
नई दिल्ली, 7 जून (आईएएनएस)। दुनिया की सबसे भीषण औद्योगिक दुर्घटना भोपाल गैस कांड के बारे में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने सोमवार को कहा कि केंद्र सरकार और यूनियन कार्बाइड कंपनी के बीच 1989 को हुए एक समझौते की वजह से इस मुकदमे की सुनवाई में देरी हुई।
इसके तहत कंपनी को दिसंबर 1984 की गैस त्रासदी से जुड़े सभी आपराधिक और नागरिक उत्तरदायित्वों से मुक्त कर दिया गया था।
दुनिया की भीषणतम औद्योगिक त्रासदी के 25 साल बाद सोमवार को इस मामले में एक स्थानीय अदालत ने सभी आठों आरोपियों को दोषी करार दिया।
अदालत ने आठ में से सात दोषियों को दो-दो साल की सजा सुनाई है और प्रत्येक पर 1,01,750 रुपये का जुर्माना लगाया जबकि इस मामले में दोषी करार दी गई कंपनी यूनियन कार्बाइड इंडिया पर 5,01,750 रुपये का जुर्माना लगाया गया।
इस त्रासदी के बाद जारी कानूनी जंग में साथ देते रहे कार्यकर्ताओं और वकीलों का कहना है कि त्रासदी के बाद के शुरूआती वर्षो में सरकार ने कंपनी और उसकी अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड कार्पोरेशन पर आपराधिक मामले दर्ज करने की बजाए उसके साथ करार कर उसे हर तरह के उत्तरदायित्व से मुक्त कर दिया।
'भोपाल गैस ट्रेजडी विक्टिम्स एसोसिएशन' के शशिनाथ सारंगी का कहना है कि 14-15 फरवरी 1989 को हुए इस करार के तहत यूनियन कार्बाइड के भारत और विदेशी अधिकारियों को 47 करोड़ डॉलर की एवज में हर प्रकार के नागरिक और आपराधिक उत्तरदायित्व से मुक्त कर दिया गया।
सारंगी के अनुसार इस करार में कहा गया कि कंपनी के खिलाफ सभी आपराधिक मामले खत्म करने के साथ-साथ सरकार इस त्रासदी के कारण भविष्य में होने वाली किसी भी खामी मसलन से उसके अधिकारियों की हर प्रकार के नागरिक और कानूनी उत्तरदायित्व से हिफाजत भी करेगी।
सर्वोच्च न्यायालय ने इस करार को अक्टूबर1991 में आंशिक रूप से खारिज कर दिया था। उसके फैसले में कहा गया था कि वित्तीय हर्जाने के भुगतान से सिर्फ नागरिक उत्तरदायित्व पूरा होता है, लेकिन इससे कंपनी के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले खारिज नहीं हो जाते।
इसके बाद जाकर कंपनी के खिलाफ नवंबर 1991 में आपराधिक मामले की सुनवाई शुरू हुई। निचली अदालत ने 1993 में आठ अधिकारियों को गैर इरादतन हत्या के प्रावधानों के तहत आरोपी बनाया। इसे आरोपियों ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की जबलपुर पीठ में चुनौती दी। उच्च न्यायालय द्वारा अपील खारिज कर दिए जाने पर उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। सर्वोच्च न्यायालय के 1996 के फैसले के बाद मामले की सुनवाई फिर से शुरू हुई।
कुल 178 गवाहों के बयान दर्ज कराए गए और सोमवार को 25 साल के अंतराल के बाद इसका फैसला आया।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।