डीएनए परीक्षण जबरन नहीं कराया जा सकता : सर्वोच्च न्यायालय (लीड-1)
सर्वोच्च न्यायालय सोमवार को वरिष्ठ कांग्रेसी नेता नारायण दत्त तिवारी की उस याचिका की सुनवाई कर रहा था, जिसमें उन्होंने रोहित शेखर द्वारा दायर याचिका पर दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले को चुनौती दी थी। रोहित शेखर का दावा है कि वह तिवारी का बेटा है।
रोहित शेखर की ओर से अदालत में पेश होते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता पी.एस. पटवालिया ने कहा, "मैं (रोहित) डीएनए परीक्षण के लिए तैयार हूं। इसलिए तिवारी को भी डीएनए परीक्षण के लिए तैयार होना चाहिए। यदि मैं गलत साबित हुआ तो मेरे खिलाफ कार्रवाई की जाएगी, अन्यथा तिवारी को कानूनी कार्रवाई का सामना करना होगा।"
पटवालिया के तर्क पर आपत्ति दर्ज कराते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा, "यह सस्ता प्रचार हासिल करने का तरीका है।" साल्वे ने आश्चर्य जताया कि भला कोई वरिष्ठ अधिवक्ता अदालत में इस तरह का तर्क कैसे दे सकता है। इस पर प्रधान न्यायाधीश के.जी.बालाकृष्णन ने कहा कि किसी का जबरन डीएनए परीक्षण नहीं कराया जा सकता।
तिवारी को हालांकि इसके बावजूद कोई राहत नहीं मिल सका, क्योंकि प्रधान न्यायाधीश बालाकृष्णन, न्यायमूर्ति दीपक वर्मा और न्यायमूर्ति बी.एस.चौहान की खण्डपीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय को निर्देश दिया कि वह तिवारी के खिलाफ पितृत्व अधिकार संबंधी मामले की सुनवाई जारी रखे और सभी मामलों को एकजुट करे।
साल्वे ने अदालत में कहा कि रोहित शेखर द्वारा दायर याचिका का मकसद उनके मुवक्किल की प्रतिष्ठा को धूमिल करना है। साल्वे ने कहा, "रोहित शेखर की रुचि सबूतों में नहीं है, बल्कि वह उनके मुवक्किल को बदनाम करना चाहता है।"
ज्ञात हो कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने 17 मार्च को रोहित के मामले को समाप्त करने संबंधी तिवारी की याचिका को खारिज कर दिया था। न्यायालय की खंडपीठ ने कहा था कि तिवारी को डीएनए जांच भी करवाना पड़ सकता है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।