पुलिस आरोपपत्र के आधार पर अग्रिम जमानत से इंकार नहीं किया जा सकता
नई दिल्ली, 21 दिसम्बर (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि केवल पुलिस आरोपपत्र में किसी व्यक्ति को आरोपित किए जाने के आधार पर अदालत उसे अग्रिम जमानत देने से इंकार नहीं कर सकती।
न्यायमूर्ति तरुण चटर्जी और न्यायमूर्ति सुरिंदर सिंह निज्जर की खंडपीठ ने जयपुर के रविंद्र सक्सेना के मामले में यह फैसला सुनाया।
सक्सेना पर एक प्रोपर्टी डीलर के साथ धोखाधड़ी करने का आरोप था। उन पर आरोप था कि उन्होंने वादे के मुताबिक अपने दो फ्लैट डीलर को नहीं बेचे।
मामले की सुनवाई करने वाली खंडपीठ ने कहा कि सक्सेना मामले में राजस्थान उच्च न्यायालय का फैसला पूरी तरह से गलत था।
सर्वोच्च न्यायालय ने अंतत: सक्सेना को 15 दिसम्बर को जमानत दे दी। जमानत संबंधी फैसला शनिवार शाम जारी किया गया था। खंडपीठ ने फैसला अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 438 के तहत सुनाया।
सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने से पूर्व सक्सेना ने जयपुर की एक अदालत और राजस्थान उच्च न्यायालय में अपील की थी। उच्च न्यायालय ने दो बार और जयपुर की अदालत ने एक बार उनकी याचिका खारिज कर दी थी।
सक्सेना पर प्रोपर्टी डीलर करण सिंह ने आरोप लगाया था कि वर्ष 2007 में अनुबंध पर हस्ताक्षर करने के बाद भी उन्हें फ्लैट नहीं बेचा गया था। सक्सेना के वकील ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा कि सिंह ने सक्सेना के पिता और मां के खिलाफ भी धोखाधड़ी का आरोप लगाया था।
राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा अग्रिम जमानत नहीं दिए जाने पर खंडपीठ ने कहा, "हमारे विचार से उच्च न्यायालय ने कानून के अनुसार बड़ी गलती की है। न्यायालय ने मामले की परिस्थितियों को नहीं समझा। उच्च न्यायालय को परिस्थितियों और तथ्यों की जांच कर विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए था।"
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।