25 वर्षो में सिर्फ 3,000 बांग्लादेशी निर्वासित
अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों का पता लगाने के लिए अवैध प्रवासी (अधिकरण के जरिये पहचान) कानून (आईएमडीटी) में खामियां गिनाई जाती रही हैं। उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2005 में इस कानून में बड़ी खामियों का हवाला देते हुए इसे खारिज कर दिया था और इसकी जगह 1946 में बने विदेशी कानून का उपयोग करने की बात कही थी।
असम छात्र संघ के 'बांग्लादेशी हटाओ आंदोलन' के बाद 1985 में आईएमडीटी कानून अवैध बांग्लादेशियों को चिन्हित करने के लिए बनाया गया था। असम समझौता भारत सरकार के प्रतिनिधियों और आल असम छात्र संघ के नेताओं के बीच 15 अगस्त 1985 को हुआ था।
असम समझौते के अनुसार 25 मार्च 1971 तक या उसके बाद असम में आए लोगों को कानून के तहत निर्वासित किया जाना था। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक समझौते के बाद अभी तक केवल 2900 बांग्लादेशियों को निर्वासित किया गया है।
राज्य गृह विभाग के एक अधिकारी ने कहा, "वर्ष 2005 से लेकर अभी तक असम में अवैध रूप से रह रहे 3000 बांग्लादेशियों को ही आईएमडीटी कानून के तहत यहां से निर्वासित किया गया है।" असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने अधिकरणों में बड़ी संख्या में मामलों के लंबित पड़े होने के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया है।
प्रधानमंत्री को लिखे एक पत्र में मुख्यमंत्री ने कहा, "गृह मंत्रालय द्वारा अनुमोदित प्रारूप इन अधिकरणों के लिए अपर्याप्त हैं। खाली पड़े पद भी मामलों के धीमी गति से हो रहे निपटारे के लिए जिम्मेदार हैं।" इस पत्र में राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि विदेशी कानून के तहत अधिकरणों को पूरी सुविधा मुहैया कराई जाए ताकि बड़ी संख्या में लंबित मामलों का निपटारा हो सके।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।