पड़ाव से मंजिल तक का सफर
ग्वालियर, 4 अगस्त (आईएएनएस)। समाज में कई ऐसी महिलाएं हैं, जिन्हें उनकी मंजिल नहीं मिल पाती है। समाज की ऐसी ही महिलाओं को ग्वालियर में 'हाफवे होम' नामक संगठन नई राह दिखा रहा है। हाफवे होम में रहने वाली महिलाओं को जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए एक नई राह दिखाई जा रही है। ऐसे ही है सुधा की कहानी जो अंधेरे में जीने को मजबूर थी लेकिन इस संस्था के प्रयासों से उसे अपनी मंजिल मिल गई।
पेशे से वकील 43 वर्षीया सुधा शादी से पूर्व वकालत करती थी, शादी हुई तो पति भी वकील थे। सुधा ने सोचा कि चलो दोनों मिलकर प्रैक्टिस करेंगे और एक दूसरे के काम में सहयोग भी। खुश काफी थी, शादी कर ससुराल गई तो आशा के विपरीत माहौल से उसका सामना हुआ। ससुराल में जेठानी का वर्चस्व था। जेठानी ने जाते ही कह दिया कि तुम कुछ काम नहीं करोगी, घर में रह कर उसे वकालत को भूलने के लिए कहा गया।
यह सुधा की आशा के विपरीत था लेकिन सुधा ने उसे अपनी किस्मत मानकर सर झुका लिया। जेठानी के अत्याचार बढ़ते जा रहे थे और सुधा घुटती जा रही थी। लेकिन कहे तो किससे, पति ने भी साथ नहीं दिया, मायके वाले भी सुनने को तैयार नहीं थे। अकेली सुधा क्या करे? लिहाजा वह मन ही मन बड़बड़ाने लगी घर वालों ने उसकी परेशानी न समझते हुए उसे पागल करार दे दिया और उसे ग्वालियर के मानसिक आरोग्यशाला में भेज दिया।
सुधा कुछ दिन यहां रही जब उसकी हालत में सुधार हुआ तो उसके सामने सबसे बड़ी समस्या थी कि वह कहां जाए। ऐसे में उसका आशियाना बना मानसिक आरोग्यशाला से लगा हाफवे होम। आज यहां के सदस्यों के प्रयासों से सुधा का भाई आकर उसे घर ले गया।
यह सिर्फ सुधा की ही कहानी नहीं है बल्कि यह हकीकत है उन महिलाओं की जो यहां रह रही हैं। यहां एक ओर जहां सुधा जैसी पढ़ी लिखी महिलाएं रह रही हैं तो दूसरी ओर सावित्री जैसी मासूम लड़कियां भी।
हाफवे होम अर्थात घर की ओर एक कदम। अखिल भारतीय सामाजिक स्वास्थ्य संघ की एक शाखा के रूप में यह संस्था उन महिलाओं का आशियाना है जिन्हें मानसिक विकृति के ठीक होने के बाद घर वाले लेने नहीं आते। संस्था के बारे में यहां की संयोजिका मीरा डाबर ने बताया कि उनका उदेश्य महिलाओं को उनके मंजिल तक पहुंचाना है।
डाबर ने बताया कि मई 2001 में मानवाधिकार आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष न्यायमूर्ति जी़ एस़ वर्मा ने हॉफवे होम का उद्घाटन किया था, तब से निरंतर यह संस्था इन महिलाओं को आश्रय दे रही है जिनका सब कुछ होते हुए भी कोई नहीं है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।