स्कूली बस्ते के बोझ को घटाने की योजना पर चढ़ी धूल
नई दिल्ली, 1 जून (आईएएनएस)। स्कूली बच्चों के बस्ते के बोझ को कम करने का विचार यकीनन एक नेक खयाल था लेकिन दो वर्ष पूर्व संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन(यूपीए) सरकार द्वारा लाई गई इस योजना की जमीनी हकीकत कुछ और ही है।
नई दिल्ली, 1 जून (आईएएनएस)। स्कूली बच्चों के बस्ते के बोझ को कम करने का विचार यकीनन एक नेक खयाल था लेकिन दो वर्ष पूर्व संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन(यूपीए) सरकार द्वारा लाई गई इस योजना की जमीनी हकीकत कुछ और ही है।
चंडीगढ़ को छोड़ ऐसा कोई राज्य या केंद्र शासित प्रदेश नहीं है जहां इस योजना को प्रमुखता मिली हो।
चिकित्सा विज्ञान द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह बात समाने आई है कि भारी बस्ते ढोने की वजह से स्कूली बच्चे रीढ़ की दर्द से परेशान हैं। इसके अलावा कई दूसरी बीमारियों के शिकार हो रहे हैं।
इसके बावजूद बस्ते के बोझ को कम करने की दिशा में कोई प्रयास नहीं कर रहा है। केंद्रीय रिजर्ब पुलिस बल(सीआरपीएफ) द्वारा चलाए जा रहे पब्लिक स्कूल के प्रधानाचार्य सूरज प्रकाश ने कहा, "स्कूल बस्ते के बोझ से संबंधित कोई पत्र हमलोगों के पास नहीं पहुंचा है।"
उधर नए सत्र में स्कूल बस्ते का व्यापार तेजी से फल-फूल रहा है। दिल्ली में स्कूल बैग तैयार करने वाले व्यापारियों से बड़ी संख्या में बैगों की मांग की जा रही है।
टायकून सेल्स प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंधक सईद शाहनवाज आलम ने कहा, हमलोगों के पास विभिन्न स्कूलों और दुकानदारों से 150,000 बैगों के ऑर्डर आ चुके हैं।
शाहनवाज का मानना है कि स्कूली छात्रों को बस्ते के भार से मुक्त कराना फिलहाल संभव नहीं है। उन्होंने कहा, "इस व्यवस्था को लागू करने के लिए स्कूलों को योजनाबद्ध तरीके से स्कूल में ही छात्रों लिए दराजों की व्यवस्था करनी होगी। निकट भविष्य में ऐसा कुछ होगा मुझे इसकी उम्मीद नजर नहीं आ रही है।"
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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