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फोन टैपिंग बनाम निजता का अधिकार

By सतीश कुमार सिंह
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Nitish Kumar
अंग्रेजी पत्रिका 'आउटलुक' में बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार, कृषि मंत्री श्री शरद पवार, मार्क्‍सवादी नेता श्री प्रकाश करात एवं कांग्रेस नेता श्री दिग्विजय सिंह के फोन टेप होने की खबर प्रकाशित होने के बाद एक बार फिर से निजता के अधिकार का मुद्दा गर्म हुआ। सत्ता के गलियारों से लेकर हर गली मोहल्ले में फोन टैपिंग का मामला चर्चा का विषय बन गया। भाजपा नेता श्री लाल कृष्ण आडवाणी का कहना है कि यह घटना आपातकाल की याद दिलाती है। राजनीतिक पार्टियों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है, पर हकीकत में कोई भी पार्टी दूध की धुली हुई नहीं है।

गुजरात में नरेन्द्र मोदी की सरकार पर अक्सर अपने विरोधियों का फोन टैप करने के आरोप लगते रहे हैं। गुजरात के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक श्री आरवी श्रीकुमार ने नानावती आयोग के समक्ष अपने दाखिल हलफनामा में कहा था कि राज्य सरकार के गृह मंत्री ने उन्हें सरकार के ही एक दूसरे मंत्री और कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेष अध्‍यक्ष शंकर सिंह बघेला का फोन टैप करने के लिए कहा था। गुजरात के ही एक अन्य मंत्री श्री हरेन पंड्या ने भी अपनी हत्या से पहले फोन टैप करने की बात कही थी।

झारखंड भी इस मामले में बेहद बदनाम रहा है। अर्जुन मुंडा सरकार के जमाने में झारखंड के विरोधी नेता, व्यवसायी और उघोगपति इतने डरे हुए थे कि उन्हें जल्दी-जल्दी अपना सिम कार्ड बदलना पड़ता था। कर्नाटक में भी विपक्षी पार्टी भाजपा शासित सरकार पर फोन टैपिंग का आरोप लगाती रही है।

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इस बाबत दिलचस्प तथ्य यह है कि आमतौर पर राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन (एनटीआरओ) ही सरकार के आदेष पर फोन टैपिंग का कार्य करती है, पर उनके पास उपलब्ध यंत्र अब झारखंड, उत्तरप्रदेश, मघ्यप्रदेश, पूर्वोत्तर राज्यों सहित देष के 18 राज्यों की पुलिस के पास उपलब्ध है। हालांकि राज्य पुलिस इन अत्याधुनिक उपकरणों को खरीदने से परहेज करती है, क्योंकि वह जानती है कि इन उपकरणों का बेजा इस्तेमाल करने के लिए नेता उन्हें मजबूर कर सकते हैं। पंजाब में प्रकाश सिंह बादल और कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच राजनीतिक दुश्‍मनी के कारण इन उपकरणों का पंजाब में जमकर दुरुपयोग हुआ है।

राज्य पुलिस के अलावा बीएसएफ, एसआई, एमआई, रॉ एवं आईबी भी आंतकवादियों और घुसपैठियों पर नजर रखने के लिए फोन टैपिंग का कार्य करती है। उल्लेखनीय है कि ये ऐजेंसिया फोन टैप करने के लिए सरकार द्वारा अधिकृत की गई हैं। तकनीकी स्तर पर बदलाव के इस दौर में फोन टैप करना बहुत ही आसान प्रक्रिया है। इसके लिए तकनीकी रुप से बहुत सक्षम होने की आवश्‍यकता नहीं है। यदि आपके पास एक लैपटॉप के साथ कुछ संचार से जुड़ी हुई तकनीकी यंत्र हैं तो आप भी फोन टैप कर सकते हैं।

एंटीना, सर्विस प्रोवाइडर से इजाजत लेना तथा फोन इंटरसेप्सन की आवश्‍यकता इत्यादि अब गुजरे जमाने की बात हो गई है। इसके कारण आज लगभग सभी राजनीतिक पार्टियाँ इस तकनीक का जमकर फायदा उठा रही हैं। इन अधतन उपकरणों की सहायता से एक साथ 128 फोन को टैप किया जा सकता है। 4 फोन टैप करने वाले उपकरण की कीमत तकरीबन डेढ़ करोड़ है। उपकरण की कीमत फोन की संख्या पर निर्भर करता है।

अगर 4 से अधिक फोन टैप करना है तो आपको उपकरणों पर ज्यादा पैसे खर्च करने होंगे और ज्यादा कारिंदे भी इस काम में लगाने पडेंगे।
इस तरह के उपकरण को किसी कमरे या कार में बैठकर अंजाम दिया जा सकता है, पर इन उपकरणों से एक निश्चित रेंज के मोबाईल फोन को ही आप टैप कर सकते हैं। लैंडलाईन वाले फोन को आज भी बिना टेलीफोन एक्सचेंज की मदद से टैप नहीं किया जा सकता है।

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भले ही सीधे तौर पर निजता का अधिकार संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों की श्रेणी में नहीं आता है। फिर भी भारत का न्यायतंत्र खास करके सर्वोच्च न्यायलय अक्सर अपने फैसलों में निजता के अधिकार का स्रोत संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (अ) और 21 में ढू़ढ़ने का प्रयास
करता है। संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (अ) के तहत भारत के नागरिकों को बोलने या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान की गई है तथा संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतगर्त उन्हें जीवन जीने का अधिकार दिया गया है। इसी अनुच्छेद में यह भी कहा गया है कि वे निजी तौर पर स्वतंत्र रुप से रहने के लिए भी अधिकारी होंगे अर्थात कोई उनके जीवन में अनावष्यक रुप से हस्तक्षेप नहीं करेगा।

राज्यसभा में विपक्ष के नेता श्री अरुण जेटली का मानना है कि फोन टैपिंग सीधे-सीधे निजता के अधिकार का उल्लंघन है। फोन को सिर्फ सार्वजनिक आपातकाल या जन सुरक्षा के मामले में ही टैप किया जा सकता है। माक्र्सवादी नेता सीताराम येचुरी कहते हैं कि बिना अनुमति के फोन टैपिंग संविधान के अनुच्छेद 19 का सीधा-सीधा उल्लंघन है।

फोन टैपिंग का यह मामला कोई पहली घटना नहीं है। हमारे देश में फोन टैपिंग का भी एक इतिहास है। अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही 1885 के टेलीग्राफ कानून की नजरों में फोन टैपिंग पूरी तरीके से अवैध कार्यकलाप नहीं है। चूँकि एक अरसे से इस कानून में कोई संशोधन नहीं हुआ है। इसलिए आज से तकरीबन 3 साल पहले इस बाबत तफसील से दिशा-निर्देश भी जारी किये गये थे। इसके तहत यह व्यवस्था की गई थी कि टेलीफोन टैपिंग के लिए केंद्र या राज्य सरकार के गृह सचिव स्तर के अधिकारी से पूर्वानुमति लेना जरुरी होगा। यह अनुमति केवल 60 दिनों के लिए वैध होती है। इस अवधि को विषेष परिस्थितियों में 180 दिन से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता है।

भारतीय टेलीग्राफ कानून की धारा 5 (2) के अंतर्गत गृह सचिव की पूर्व में इजाजत लिये बिना विषेष परिस्थितियों में भी टेलीफोन टैपिंग नहीं की जा सकती है। इस मामले से अलग हटकर देखा जाये तो हमारे देष में निजी सूचनाओं का आदान-पादान बिना व्यवधान के काफी समय से परम्परा के रुप में चला आ रहा है। कोई भी कारण हो लेकिन हम अक्सर अपने निजी पलों और सूचनाओं को अपने यार-दोस्तों ही नहीं वरन् अजनबियों के साथ भी बाँटते हैं।

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बहुत से ऐसे संस्थान हैं जहाँ जब तक उनके द्वारा चाही गई निजी सूचना उनको आप नहीं उपलब्ध करवायेंगे तब तक वह संस्थान न तो आपका पंजीकरण करेगा और न ही आपको कोई सेवा मुहैया करवाएगा। ऐसे संस्थानों में हमारे लगभग सभी बड़े निजी अस्तपाल शामिल हैं। हालात ऐसे हो गये हैं कि आपको हर छोटी-छोटी जरुरतों के लिए अपनी निजी सूचना देकर उस संस्थान से सेवा लेना पड़ता है। यहाँ तक की रेल और हवाई जहाज से यात्रा करने के पहले भी आपको निजी जानकारियाँ उन्हें उपलब्ध करवानी पड़ती है। आजकल बहुत सारे परीक्षाओं के परिणाम आपके निजी जानकारी के साथ प्रकाषित की जाती है।

निजी क्षेत्र में तो आपके द्वारा उपलब्ध जानकारियों का कई प्लेटफार्मों पर इस्तेमाल किया जाता है, जिसकी जानकारी देने की जरुरत निजी संस्थान कभी जरुरी नहीं समझते हैं। कुछ दिनों से सरकारी परियोजनाओं के तहत नरेगा में आम आदमी की निजता में जमकर दखलंदाजी की जा रही है। वैसे जनगणना के दौरान इकट्ठा की गई निजी जानकारियों का भी दुरुपयोग किया जाता है। जनगणना विभाग इकट्ठा की निजी जानकारियों को अपने बेबसाईट के द्वारा सार्वजनिक रुप से प्रदर्षित भी करती है, जहाँ से कोई भी अपने फायदे को दृष्टिगत करते हुए उस निजी जानकारी का उपयोग कर सकता है।

होता यह है जब तक किसी व्यक्ति को निजी जानकारियों की चोरी से या उसके गलत उपयोग से कोई नुकसान नहीं पहुँचता है तब तक कोई विवाद नहीं पैदा होता है। आज बाजार में जासूसी के हर तरह के यंत्र आम आदमी के पहुँच के अंदर है। पेन कैल्क्यूलेटर टांªसमीटर, पेन कैमरा, रिकार्डर घड़ी, नाईट विजन दूरबीन व चश्‍मा वॉल माइक्रोफोन इत्यादि ऐसे यंत्र हैं जिसकी सहायता से किसी के निजी जीवन में आसानी से दखल दिया जा सकता है।

ताजा फोन टैपिंग विवाद सामान्य प्रकृति की घटना नहीं है। इस घटना से कोई आम आदमी नहीं जुड़ा हुआ है। 4 ख्याति प्राप्त नेताओं का इस परिघटना से जुड़ा होना निजता के अधिकार की जरुरत को तो जरुर रेखांकित करता है। इस मुद्दे पर राष्ट्रीय स्तर पर एक नई दृष्टि के साथ बहस-मुबाहिस की आवश्‍यकता है साथ ही साथ इस मामले में नये कानून बनाने की भी जरुरत है।

लेखक परिचय-
श्री सतीश सिंह वर्तमान में स्टेट बैंक समूह में एक अधिकारी के रुप में दिल्ली में कार्यरत हैं और विगत दो वर्षों से स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। भारतीय जनसंचार संस्थान से हिन्दी पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद 1995 से जून 2000 तक मुख्यधारा की पत्रकारिता में इनकी सक्रिय भागीदारी रही है। श्री सिंह से मोबाईल संख्या 09650182778 के जरिये संपर्क किया जा सकता है।

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