Vastu Tips: अगर जमीन खरीदने जा रहे हैं तो जरूर क्लिक करें
नई दिल्ली। जमीन खरीदना और उस पर अपनी पसंद का मकान बनवाना हर इंसान का सपना होता है। आखिर अपना मकान अपना जो होता है। यही वजह है कि हर व्यक्ति अपने सपनों का आशियाना बनाने के लिए हर चीज अच्छी तरह देख-परखकर लेना चाहता है, ताकि अपने घर में वह बिना किसी तकलीफ के रह सके, फल-फूल सके। मकान बनवाने के क्रम में सबसे पहली चीज है एक बढि़या सा प्लॉट यानि जमीन खरीदना। अगर मकान बनाने के लिए सही जमीन मिल गई, तो समझो कि शुभ काम का श्री गणेश हो गया।
मकान बनाते समय भूखंड का रखें विशेष ख्याल वरना हो सकती है मुसीबत
मकान के लिए जमीन पसंद करना आसान है, पर वह प्लॉट आपके लिए सही है भी या नहीं, यह जानना थोड़ा मुश्किल है। इसकी वजह यह है कि सही जमीन का निर्णय विशेषज्ञ के निर्देश के बिना मुश्किल है और हर कोई, हर वक्त किसी विशेषज्ञ को अपने साथ रखकर नहीं चल सकता।
जमीन की अच्छाई नापने के कई पैमाने
यूं तो जमीन की अच्छाई नापने के कई पैमाने सदियों से प्रचलन में हैं, पर हम आपको दो ऐसी विधियां बता रहे हैं, जिनका प्रयोग कर आप आसानी से जान सकते हैं कि आपका मनचाहा प्लॉट उन्नति दिलाने वाली जमीन पर है या उसकी प्रकृति आपके हरे-भरे जीवन को खा जाने वाली भूखी भूमि की है।
यह नाप कैसे करना है, आइए जानते हैं-
जमीन की प्रकृति मापने की अनूठी और आसान विधियां
दक्षिण भारत के महान शिल्पी गंगाधर ने अपने शिल्पदीपक नाम के ग्रंथ में जमीन की प्रकृति मापने की अनूठी और आसान विधियां बताई हैं। ये विधियां प्रयोग करने में आसान हैं और तर्कसम्मत भी हैं। इनमें से पहली विधि है जमीन पर गड्ढा खोदकर परखने की और दूसरी विधि है गड्ढे में पानी के प्रयोग की।
गड्ढा खोदकर परखना
- इस पद्धति में सर्वप्रथम परखी जाने वाली भूमि पर एक गहरा गड्ढा खोद लें। याद रहे कि गड्ढा सतही ना हो, यह कम से कम एक हाथ गहरा अवश्य हो। अब उस गड्ढे को वापस खोदी गई मिट्टी से भर दें। यदि गड्ढा पूरा भर जाए और थोड़ी मिट्टी बच जाए, तो ऐसी भूमि तृप्त भूमि कहलाती है। ऐसी भूमि पर निवास करने वाला व्यक्ति हर तरह से सुख समृद्धि से परिपूर्ण जीवन जीता है।
- यदि गड्ढा भरने में पूरी मिट्टी लग जाए और गड्ढा पूरी तरह से पहले जैसा भर जाए, तो ऐसी भूमि भी रहने के लिए श्रेष्ठ है। यह संतुष्ट भूमि कहलाती है। ऐसी भूमि पर निवास करने वाले के जीवन में कमियां नहीं आती, वह सुखी, संतुष्ट जीवन जीता है।
- यदि गड्ढे में खोद कर निकाली गई पूरी मिट्टी भर जाए और फिर भी वह पहले की तरह समतल ना हो, तो ऐसी भूमि बुभुक्षित या भूखी भूमि कहलाती है। ऐसी भूमि पर भूलकर भी मकान का निर्माण नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसी जमीन अपने स्वामी का सब कुछ निगल जाती है। ऐसी भूमि पर निवास करने वाला धन गंवा बैठता है। उसकी प्रगति रूक जाती है और सुख समृद्धि घटती जाती है।
- भूमि की गुणवत्ता की जांच के लिए प्रयोग में लाने की दूसरी विधि गड्ढे में पानी भरने की है। जिस भूमि को लेने का मन बना रहे हों, उसमें एक हाथ गहरा गड्ढा करें। दोनों ही प्रयोगों में गड्ढे की गहराई एक हाथ से अधिक ही होना चाहिए, इससे कम किसी भी स्थिति में ना हो। अब इस गड्ढे में पानी भर दें और 100 कदम टहलने चले जाएं। वापस आकर गड्ढे के पानी को नापकर देखें।
- अगर गड्ढे में पानी जस का तस भरा है, उसमें कोई कमी नहीं हुई है, तो जमीन निश्चिंत होकर लेने लायक है। यदि पानी एक चौथाई घट गया है, तो वह जमीन रहने के लिए मध्यम फलदायी रहती है। यदि गड्ढे का पानी आधा या उससे अधिक घट गया है, तो ऐसी जमीन किसी भी हालत में नहीं ली जानी चाहिए। ऐसी भूमि निवास के लिए अशुभ मानी जाती है। ऐसी भूमि अपने स्वामी का धन-मान सब निगल जाती है।
गड्ढे में पानी भरना
वैज्ञानिक आधार
इन दोनों ही विधियों के संबंध में पंडित गंगाधर ने वैज्ञानिक रूप से तर्क प्रस्तुत किए हैं। वास्तव में भूमि परीक्षण की दोनों ही विधियों का आधार जमीन के तल की कठोरता मापने की पद्धति पर टिका है। यही वजह है कि दोनों ही पद्धतियों में गड्ढे की गहराई अधिक रखने पर जोर दिया गया है। सतही या उपरी मिट्टी पोली ही होती है, इसीलिए कम गहराई का गड्ढा खोदने पर भूमि की गहराई को जाना नहीं जा सकता।
भूमि की आंतरिक संरचना कठोर
जब गहरा गड्ढा कर भूमि परीक्षण किया जाता है, तब पता चलता है कि भूमि की आंतरिक संरचना कठोर है या पोली। पोली जमीन पर मकान बनवाने पर वह मौसम के अनुरूप पानी पीती जाएगी और मकान धंस सकता है। इसी तरह यदि गड्ढा खोदी गई मिट्टी से नहीं भर रहा है तो भूमि को कठोर करने के लिए बाहर से मिट्टी मंगवाकर मकान की नींव में डालना पड़ेगी। दोनों ही स्थिति में मकान की मजबूती और स्थिरता कायम नहीं रहेगी।